सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पत्नी की इजाजत के बिना नहीं ले सकते बच्चा गोद

बच्चे को गोद लेने के लिए व्यक्ति को पत्नी की इजाजत लेनी होगी। साथ ही कोर्ट ने साफ किया कि विधिवत समारोह के बगैर बच्चे को गोद लेने को ‘गोद लेना’ नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पत्नी की सहमति के बिना कोई व्यक्ति किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकता है।

suman
Published on: 8 March 2020 6:35 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पत्नी की इजाजत के बिना नहीं ले सकते बच्चा गोद
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नई दिल्ली: बच्चे को गोद लेने के लिए व्यक्ति को पत्नी की इजाजत लेनी होगी। साथ ही कोर्ट ने साफ किया कि विधिवत समारोह के बगैर बच्चे को गोद लेने को ‘गोद लेना’ नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पत्नी की सहमति के बिना कोई व्यक्ति किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकता है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि गोद लेना तभी वैध माना जा सकता है जब हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 की धारा 7 और 11 का पालन किया गया हो। किसी बच्चे को गोद लेने के लिए पत्नी की सहमति लेना जरूरी है। साथ ही गोद लेने के समारोह का प्रमाण भी होना चाहिए।

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आंध्र प्रदेश की महिला एम वानजा द्वारा गोद लिए जाने के समारोह का प्रमाण न देने पर कोर्ट ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उसे किसी ने गोद लिया था। यह कहते हुए पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। याचिकाकर्ता वानजा ने अपने मौसा को ही अपना पिता बताया था लेकिन उसकी मौसी का दावा था कि याचिकाकर्ता उसकी गोद ली हुई बेटी नहीं है।

इस मामले में कोर्ट का फैसला

बता दें कि, यह मामला संपत्ति विवाद से जुड़ा है। वानजा ने याचिका दायर कर अपनी मौसी के कब्जे वाली संपत्ति पर हिस्सेदारी मांगी थी। याचिकाकर्ता के जैविक माता-पिता की मौत उसके बचपन में ही हो गई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि माता-पिता की मौत के बाद उसकी मौसी व मौसा ने उसे गोद लिया था। 2003 में उसके मौसा की मौत हो गई। वह गोद ली हुई बेटी के नाते संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी मांग कर रही थी।

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उसकी मौसी ने अपनी संपत्ति का बंटवारा करने से इनकार कर दिया तो वानजा ने ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर की लेकिन कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज करते हुए उसके दावे को नकार दिया। इसके बाद आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज कर दी थी। लिहाजा उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के पास ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यह साबित करता हो कि तय प्रावधानों के तहत उसे गोद लिया गया था। यहां तक कि याचिकाकर्ता की दादी का भी यह कहना था कि उसके मौसा व मौसी ने उसे गोद नहीं लिया था बल्कि उसकी परवरिश की थी।

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