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अब एआई पढ़ सकेगा कानूनी दस्तावेज
आईआईटी खडगपुर के शोधकार्ताओं ने अदालती निर्णयों को पढऩे की एक तरकीब निकाली है। जिसमें ऑटोमेटेड-रीडिंग मशीन लगाई गई है। जो पुराने अदालती फैसले को पढऩे, तलाशने, वर्गीकरण करने के काम को आसानी से कर सकती है।
लखनऊ: आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) ने अदालती कामकाम में भी दखल शुरू कर दिया है। कल तक अदालती फैसले समझना जितना मुश्किल होता था। लेकिन एआई की दखल के बाद अब यह काम बहुत आसान हो गया है। आईआईटी खडगपुर के शोधकार्ताओं ने अदालती निर्णयों को पढऩे की एक तरकीब निकाली है। जिसमें ऑटोमेटेड-रीडिंग मशीन लगाई गई है। जो पुराने अदालती फैसले को पढऩे, तलाशने, वर्गीकरण करने के काम को आसानी से कर सकती है।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मशीन
आईआइटी के कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग विभाग ने इस मशीन को दो भागों में विकसित किया है। एक भाग में गहन तंत्रिका (डीप न्यूरल) तैयार किया गया है। इसका काम जजों के लिखवाये गये वाक्यों में मौजूद शब्दों के सही मायने, वाकपटुता और कटाक्ष को समझना है। इसके लिए सर्वोच्च अदालत के 50 निर्णयों को आधार बनाया गया है।
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आईटी खडगपुर के सप्तऋषि घोष के मुताबिक बौद्घिक सम्पदा के राजीव गांधी स्कूल के तीन वरिष्ठ छात्रों की मदद से अदालती फैसलों के वर्गीकरण का खाका तैयार किया गया। इसमें यह तैयार किया जाता है कि निर्णय किस हिस्से से जुड़े हैं। निर्णय का वर्गीकरण कैसा किया गया है। इसी के माध्यम से विश्लेषण मशीन न्यायिक निर्णयों को पढऩे और सीखने का आर्दश मानक बन पाई।
एआई ऐसे पढ़ सकेगा कानूनी दस्तावेज
प्रो. घोष के अनुसार आईआईटी का मॉडल इसलिए भी अलग है। क्योंकि पहले बनाये गये ऐसे मॉडल में मानव की भूमिका ज्यादा होती है। वे अदालती निर्णयों में लिखे गये वाक्यों का कई बार वर्गीकरण करते थे। नया मॉडल वर्गीकरण खुद करता है। जज ने निर्णय में क्या कहा है और चर्चा में क्या कहा, यह पहचानना मुश्किल नहीं होता।
इसे तैयार करने वाली टीम के अनुसार भारत में न्यायिक निर्णय लिखने की संरचना तय नहीं है। कानूनो को लेकर ऊंची अदालतों में दिये गये निर्णयों को प्रमुखता दी जाती है। ऐसे में निर्णयों को समझना मशीन के लिए मुश्किल काम है। यही एआई काम आया।
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अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदि में एआई प्रोग्राम कानूनी दस्तावेज पढऩे में मदद कर रहे हैं। मुकदमे दायर करने, कॉन्टै्रक्ट का विश्लेषण करने, नियमों का पालन करने आदि में एआई खूब काम आ रहा हैं। यही नहीं, आज वे मुकदमों को पढ़कर संभावित निर्णय भी दे सकते हैं। कई दफा मुकदमा करने वाले व्यक्ति पहले इनके जरिए संभावित परिणाम को जानकर आगे कदम बढ़ा रहे हैं।