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खूंखार पैरा कमांडो: आतंकियों की कांपती है इनसे रूह, जाने क्या है ऑपरेशन रूम

भारतीय सेना के पैरा कमांडो आतंकियों का खात्मा करने में हमेशा से अहम भूमिका निभाते आए हैं और निभा भी रहे हैं। आतंकवाद के विरोध में जारी ऑपरेशनों में पैरा कमांडोज का सबसे पहला प्रयास यही होता है कि ऑपरेशन में किसी नागरिक को कोई नुकसान न पहुंचे और ऑपरेशन भी सफल हो जाए।

Vidushi Mishra
Published on: 9 March 2021 2:38 PM IST
खूंखार पैरा कमांडो: आतंकियों की कांपती है इनसे रूह, जाने क्या है ऑपरेशन रूम
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पैरा कमांडो एक पेशेवर तरीके से ऑपरेशन को अंजाम देते हैं। किसी भी जगह आतंकियों के छिपे होने का इनपुट मिलने पर सबसे पहले पैरा टीम को एक ब्रीफिंग दी जाती है।

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना के पैरा कमांडो आतंकियों का खात्मा करने में हमेशा से अहम भूमिका निभाते आए हैं और निभा भी रहे हैं। आतंकवाद के विरोध में जारी ऑपरेशनों में पैरा कमांडोज का सबसे पहला प्रयास यही होता है कि ऑपरेशन में किसी नागरिक को कोई नुकसान न पहुंचे और ऑपरेशन भी सफल हो जाए। आतंकियों के बारे में कमांडोज को सारे इनपुट दिये जाते हैं, पूरी टीम को ब्रीफ किया जाता है, फिर ये ऑपरेशन को कामयाब करने की योजना से अंजाम देते हैं।

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एक योजना तैयार की जाती

भारतीय सेना के पैरा कमांडो एक पेशेवर तरीके से ऑपरेशन को अंजाम देते हैं। ऐसे में किसी भी जगह आतंकियों के छिपे होने का इनपुट मिलने पर सबसे पहले पैरा की कोर ऑपरेशन टीम को एक ब्रीफिंग दी जाती है, ताकि इलाके की ड्रोन इमेज के सहारे जवानों को ऑपरेशन को अंजाम देने के बारे में समझाया जाता है और एक योजना तैयार की जाती है।

इसके बाद ऑपरेशन रूम में बिना समय गवाए सेना के जवान दो टीमों में बंट जाते हैं। फिर एक टीम उस मकान व जगह के करीब 200-300 मीटर दूर इलाके के आस-पास आउटर कोर्डन स्थापित करती है जहां आतंकी के छुपे होने की सूचना मिलती है।

indian army फोटो-सोशल मीडिया

और दूसरी कोर टीम आगे बढ़ने से पहले लाउडस्पीकर से एलान कर आतंकी को सरेंडर करने को कहती है। ऑपरेशन को सफल करने के लिए इसके बाद टीम धीरे-धीरे टारगेट की ओर बढ़ती है और इस दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि जबतक अंदर से फायर न आए तब तक कोई यहां से फायर नहीं खोलता।

आतंकियों के टारगेट हाउस के ऊपर हर संदिग्ध हरकत पर नजर रखने के लिए ड्रोन भी उड़ाया जाता है। इसके बाद कोर टीम 5-6 बड़ी पेयर हिट्स में आगे बढ़ती है, जोकि रूम इंटरवेंशन के लिए एक्सपर्ट होते हैं।

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बात करने के लिए सिग्नल का इस्तेमाल

फिर एक-एक कर पूरी मुस्तैदी से रूम इंटरवेंशन किया जाता है और हर कमरे को सैनिटाइज करने के बाद इंजीनियर टीम को अंदर भेजा जाता है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कोई आतंकी वहां कोई आईईडी या अन्य विस्फोटक छोड़कर न भगा हो। इस दौरान एक-दूसरे से बात करने के लिए सिग्नल का इस्तेमाल किया जाता है जिसे कॉल सेंस कहा जाता है।

ऐसे में पैरा यूनिट के कंपनी कमांडर मेजर मलकीत ने बताया कि पैरा फोर्स एक वॉलेंटियरी फोर्स है। इसमें चाहे जवान हो या अधिकारी अपनी मर्जी से इसमें शामिल होते हैं और एक पैरा यूनिट का हिस्सा बनने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत कर अच्छे परिणाम देने की जरूरत होती है। ट्रेनिंग में सबसे पहले एयरबोर्न टास्क सिखाया जाता है जिसमें जम्प ट्रेनिंग दी जाती है।

आगे बताते हुए एक स्टैटिक लाइन जम्प जिसमें पैराशूट मैकेनिकल तरीके से खुलते हैं और दूसरा फ्री-फाल पैराशूट होते हैं जिनका कूदने का ऑलटिटयूड 12 हजार फीट या उससे अधिक का होता है। एलओसी(LOC) के ऑपरेशन अलग तरह के होते हैं जहां जंगल क्षेत्र में आतंकी घुसपैठ जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है इसलिए जंगल ट्रेनिंग कुछ और होती है।

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Vidushi Mishra

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