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पतंजलि की रफ्तार थमी, उत्पादों की बिक्री में आई 10 फीसदी की गिरावट

raghvendra
Published on: 14 Jun 2019 9:02 AM GMT
पतंजलि की रफ्तार थमी, उत्पादों की बिक्री में आई 10 फीसदी की गिरावट
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नई दिल्ली: तीन साल पहले योग गुरु बाबा रामदेव के ‘पतंजलि’ ब्रांड की धूम थी। उपभोक्ता पतंजलि आयुर्वेद के प्रोडक्ट्स के दीवाने थे। 2017 में रामदेव ने एलान किया था कि ‘पतंजलि के टर्नओवर आंकड़े ऐसे होंगे कि मल्टीनेशनल कंपनियां कपालभाती करने को मजबूर हो जाएंगी।’ उन्होंने दावा किया था कि मार्च 2018 तक कंपनी की बिक्री दोगुनी हो कर 20000 करोड़ रुपए के पार हो जाएगी।

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रायटर की एक खबर के अनुसार, 2018 में असली तस्वीर कुछ और ही रही। कंपनी की सालाना वित्तीय रिपोर्ट बताती है कि पतंजलि की बिक्री 10 फीसदी गिर कर 8100 करोड़ रुपए पर आ गई। कंपनी स्रोतों और विश्लेषकों के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष के आंकड़े आएंगे तो तस्वीर और भी खराब नजर आएगी। अनुमानित आंकड़े बताते हैं कि 31 दिसंबर 2018 तक के नौ महीनों में पतंजलि की बिक्री मात्र 4700 करोड़ रुपए की रही। इसके पीछे अस्थिर क्वालिटी, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कई कारण गिनाए जाते हैं। हालांकि कंपनी का कहना है कि उसके तीव्र विस्तार के कारण शुरुआती समस्याएं आईं लेकिन सब ठीक हो गया है। 2017-18 के वित्तीय ब्यौरे में पतंजलि ने शिकायत की थी कि नोटबंदी से उपभोक्ताओं की खर्च करने की आदतें प्रभावित हुई हैं और बिक्री कर से लागत और कीमत निर्धारण प्रभावित हुए हैं।

दस्तावेजों के अनुसार पतंजलि कंपनी के मालिक आचार्य बालकृष्ण हैं जिनके पास पतंजलि के 98.55 फीसदी शेयर हैं। ‘फोब्र्स’ के अनुसार 46 वर्षीय बालकृष्ण की हैसियत करीब साढ़े तीन खरब रुपए की है। रायटर के अनुसार जब बालकृष्ण से चालू वित्तीय वर्ष में बिक्री के आंकड़ों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कोई आंकड़ा देने से इनकार कर दिया।

कंपनी के एक सप्लायर और पूर्व कर्मचारियों का कहना है कि पतंजलि के इस समय ढाई हजार से ज्यादा प्रोडक्ट हैं। इसने क्वालिटी के ऊपर वॉल्यूम को तरजीह दी है और इसके लिए अन्य कंपनियों को उत्पादन का काम दे दिया है जिससे क्वालिटी को धक्का पहुंचा है। हालांकि बालकृष्ण कहते हैं कि क्वालिटी कोई समस्या नहीं है। उनका कहना है कि गेहूं, दालें और चावल समेत कुछ ही प्रोडक्ट बाहर से लिए जाते हैं। पतंजलि का दावा है कि उसके 3500 डिस्ट्रीब्यूटर देश भर में 47 हजार रिटेल काउंटरों को प्रोडक्स्ट्स सप्लाई करते हैं।

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रायटर ने मुम्बई स्थित पतंजलि के एक स्टोर में 81 आइटम्स की पड़ताल की। इनमें 27 के लेबल पर लिखा था कि वह आंशिक या पूरी तरह अन्य निर्माताओं द्वारा बनाए गए हैं। पतंजलि के कारखानों का निर्माण भी लटका हुआ है। महाराष्ट्र में एक फूड प्लांट अप्रैल 2017 में शुरू होना था, दिल्ली के पास आयुर्वेदिक व हर्बल आइटम्स की एक फैक्ट्री 2016 में शुरू होनी थी लेकिन अब इनहें 2020 में शुरू करने की बात कही जा रही है।

पतंजलि से मिल रही चुनौती को देखते हुए हिन्दुस्तान यूनीलीवर और कॉलगेट पामोलिव इंडिया लिमिटेड ने अपने भी आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स लांच किए जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। इस बीच पतंजलि ने विज्ञापन पर होने वाला खर्च कम कर दिया। बार्क (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में पतंजलि भारतीय टेलीविजन पर सबसे बड़ा विज्ञापनदाता था लेकिन पिछले साल रह टॉप 10 विज्ञापनदाताओं में भी नहीं पहुंच पाया।

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पतंजलि को नागपुर के मल्टी मॉडल इंटरनेशनल पैसेंजर एंड कार्गो हब एयरपोर्ट के निकट सरकार द्वारा सस्ते दामों में दी गयी 300 एकड़ जमीन को महाराष्ट्र सरकार वापस ले सकती है। बाबा को यह जमीन फूड प्रोसेसिंग प्लांट के लिए दी गयी थी जिस पर कुछ साल पहले बड़े ही जोर-शोर से काम शुरू करने की घोषणा हुई थी मगर तीन साल के भीतर कुछ शेड डालने के अलावा इस प्रोजेक्ट पर और कोई खास काम नहीं हुआ। सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि यहां संतरे के जूस के संवर्धन एवं प्रसंस्करण का प्लांट लगना था। बाबा रामदेव ने घोषणा की थी कि छह माह के भीतर प्रोजेक्ट को चालू कर दिया जायेगा। पतंजलि को बार-बार चेताने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। सूत्रों का दावा है कि फूड प्रोसेसिंग के लिये रखे अधिकांश कर्मचारी नौकरी छोड़ गए हैं।

2017 में कंप्यूटर विज्ञानी अदिति कमल ने रामदेव को भारत में निर्मित मैसेजिंग एप बनाने का सुझाव दिया। कमल के अनुसार जब उसने कहा कि ये एप व्हाट्सअप को टक्कर देगा तो रामदेव ने कहा कि हमने पहले इसके बारे में क्यों नहीं सोचा। कमल को ये काम दिया गया और 6 महीने में उसके नीचे 100 कर्मचारी काम कर रहे थे। 2018 में ‘किंभो’ नामक एप लांच किया गया लेकिन इसमें प्राइवेसी संबंधी ढेरों कमियां थीं। पतंजलि ने ये प्रोजेक्ट रोक दिया। बालकृष्ण का कहना है कि ये प्रोजेक्ट पूरी तरह समाप्त नहीं किया गया है।

पतंजलि का कहना है कि उसके 25 हजार कर्मचारी हैं। उसने पिछले साल भारत भर में सेल्समैन रखने के लिए विज्ञापन दिए थे। एक पूर्व कर्मचारी का कहना है कि 2017 के मध्य से अब तक पतंजलि ने सैकड़ों पद खत्म कर दिए हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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