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जरा संभल के! प्लास्टिक नहीं ज़हर है ये, हर साल लेता है लाखों की जान

आज-कल प्लास्टिक को लेकर सब जगह जागरूकता फैली हुई है। क्योंकि इससे बड़ी-बड़ी समस्या होती है या ये बोले कि हो रही है। हवा, पानी और जमीन में मौजूद ये प्लास्टिक हमारी रगों तक पहुंच रहा है।

Roshni Khan
Published on: 21 Jun 2023 7:48 AM GMT (Updated on: 21 Jun 2023 8:00 AM GMT)
जरा संभल के! प्लास्टिक नहीं ज़हर है ये, हर साल लेता है लाखों की जान
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लखनऊ: आज-कल प्लास्टिक को लेकर सब जगह जागरूकता फैली हुई है। क्योंकि इससे बड़ी-बड़ी समस्या होती है या ये बोले कि हो रही है। हवा, पानी और जमीन में मौजूद ये प्लास्टिक हमारी रगों तक पहुंच रहा है। ये धीरे-धीरे कैंसरकारक तत्व को जीवन दीमक की तरह चाट रहे हैं। पानी में होने से ये समुद्री जीवों के पेट से निकल रहा है। वहीँ धरती पर इंसानों और जानवरों के शरीर में पहुंच जा रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक, घरों को आपूर्ति किए जाने वाले दुनिया के कई हिस्सों के पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए जा रहे हैं।

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हर साल पांच लाख करोड़ सिंगल यूज प्लास्टिक बैग

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दुनिया भर में हर मिनट दस लाख पेयजल के लिए प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं। हर साल दुनिया में पांच लाख करोड़ सिंगल यूज प्लास्टिक के बैग इस्तेमाल होते हैं। दुनिया में जितना प्लास्टिक बनता है उसके आधे हिस्से का सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल हो पाता है। बाकी कचरे में फेका जाता है। वर्ष 1950-70 के दौरान दुनिया भर में बहुत कम मात्र में प्लास्टिक का उत्पादन होता था जिससे इसके कचरे का तुलनात्मक प्रबंध आसान था। 1970-90 दो दशकों के दौरान प्लास्टिक उत्पादन तीन गुना बढ़ा। इसी अनुपात में इसके कचरे में भी बढ़ोतरी हुई।

हर साल 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा

आपको बता दें कि आंकड़े के हिसाब से हर साल 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। यह वजन दुनिया की इंसानी आबादी के वजन के बराबर है। शोधकर्ताओं के अनुसार, 1950 के बाद से अब तक 8.3 अरब टन प्‍लास्टिक दुनिया में पैदा किया गया है। इसका 60 फीसद हिस्सा या तो लैंडफिल में जमा हुआ या फिर किसी प्राकृतिक स्थल को तबाह करने का काम किया। भारत की बात करें तो 25,940 टन प्‍लास्टिक कचरा हर रोज पैदा होता है। यह नौ हजार एशियाई हाथियों के वजन के बराबर है।

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पर्यावरण के लिए घातक

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प्लास्टिक को मिला लंबे जीवन का वरदान इंसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। लंबे समय तक टिकाऊ रहने के चलते इसका कचरा भी प्राकृतिक रूप से नष्ट नहीं होता है। अधिकतर प्लास्टिक खुद ब खुद नष्ट नहीं होते, वे खुद को छोटे से छोटे रूपों में तोड़ते रहते हैं। इन्हीं सूक्ष्म प्लास्टिक को जानवर और मछलियां चारे के भ्रम में खा लेते हैं। इस तरह प्लास्टिक हम लोगों के भोजन तक पहुंच जा रहा है। नालों को जाम करके ये प्लास्टिक मच्छरों और कीटों को पनपने का अनुकूल माहौल देते हैं जिससे मच्छरजनित रोगों का प्रकोप बढ़ता है।

ऐसे कम होगा उत्‍पादन

स्वैच्छिक तरीकों को प्राथमिकता में लाकर रिसाइकिलिंग और रिकवरी पर जोर दिया जाए साथ ही सस्टेनेबल इनोवेशन और नई तकनीकी विकास को हमसफर बनाया जाए तो नए प्लास्टिक के निर्माण की मात्र बहुत कम हो जाएगी। बनयान नेशन भारत की पहली एकीकृत प्लास्टिक रिसाइकिलिंग कंपनी है। प्लास्टिक से मुक्ति की दिशा में इसके प्रयासों के चलते 2018 का पीपुल्स च्वाइस अवार्ड जीत चुकी है। इसने एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है जिसमें प्लास्टिक के कचरे को उच्च गुणवत्ता वाले छोटे-छोटे दानों में तब्दील कर दिया जाता है।

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सिर्फ नौ फीसदी हिस्‍से की रिसाइकिलिंग

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नीदरलैंड की कंपनी परपेचुअल पीईटी बोतलों से उच्च गुणवत्ता वाले टिकाऊ (पॉली) ईस्टर तैयार करती है। इससे नए बोतल बनते हैं। जल के कारोबार से जुड़ी दिग्गज कंपनी एवियन 2025 से हर बोतल रिसाइकिल प्लास्टिक से तैयार करेगी। यह उच्च गुणवत्ता वाले प्लास्टिक रेजिन को बनाने में कामयाब हुई है। इससे नई प्लास्टिक नहीं बनानी होगी। आंकड़े बताते हैं कि सभी उत्पादित प्लास्टिक कचरे का सिर्फ नौ फीसदी हिस्‍सा ही रिसाइकिल हो पाता है। 12 फीसदी को नष्ट कर दिया जाता है जबकि 79 फीसदी लैंडफिल या किसी खुले स्थान में पड़े रहते हैं।

11 लाख जीवों की मौत होती है हर साल

जीवों की विविधता का सबसे बड़ा स्थान महासागर हैं। लेकिन यह स्थान भी प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से अब अछूता नहीं है। हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंचता है। दुनिया की दस बड़ी नदियों से समुद्र में 90 फीसद प्लास्टिक पहुंचता है। एक अध्‍ययन के अनुसार, विश्व के समुद्रों व महासागरों में करीब 80 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा भूमि से जाता है, जिसमें 50 प्रतिशत एकल उपयोग वाला होता है। इसको गलने में 500 से 1000 वर्ष का समय लगता है। यही कारण है कि समुद्रों व महासागरों में प्रतिवर्ष करीब 10 लाख समुद्री पक्षी व एक लाख स्तनधारी प्लास्टिक प्रदूषण के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं।

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समस्या ही समाधान

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महासागरों के प्रत्येक वर्ग किमी क्षेत्र में करीब 13 हजार प्लास्टिक के टुकड़े मौजूद हैं। अगर कोई निर्माता प्लास्टिक की चार बोतलें बनाता है तो ये वायुमंडल में उतनी मात्र में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है जितनी औसत आकार की पेट्रोल कार से एक मील दूरी तय करने से होगा। 2014 में दुनिया में हर साल 31.1 करोड़ टन सालाना प्लास्टिक का उत्पादन होता था। विशेषज्ञों का अंदाजा है कि 2050 तक इस उत्पादन में तीन गुना वृद्धि हो जाएगी। तब वैश्विक तेल खपत का 20 फीसद सिर्फ प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होगा।

Roshni Khan

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