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Yoga Day: जब हिट हो गया पीएम मोदी का यह ‘आइडिया‘, भारतीय योग शिक्षकों पर बरसने लगे डॉलर, जानें इसके पीछे की कहानी

Yoga Day: इंटरनेशनल फाउंडेशन ऑफ योगा प्रोफेशनल्स (आईएफवाईपी) जैसे बड़े संगठन को खड़ा करने में यूपी के ओरैया जिले में स्थित गेल में कार्यरत सदानंद की अहम भूमिका है, वे मानना है कि आज योग एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है।

Ashish Pandey
Published on: 21 Jun 2023 11:46 PM IST
Yoga Day: जब हिट हो गया पीएम मोदी का यह ‘आइडिया‘, भारतीय योग शिक्षकों पर बरसने लगे डॉलर, जानें इसके पीछे की कहानी
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पीएम नरेन्द्र मोदी का योग का ‘आइडिया‘ से भारतीय योग शिक्षकों की डालर में हो रही कमाई: Photo- Social Media

Yoga Day: 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस‘ के रूप में आज दुनिया भर में मनाया जाने लगा है। आज योग दिवस है। भारत समेत दुनिया के कई देशों में योग दिवस धूमधाम से मनाया गया। आखिर इस योगी दिवस की शुरुआत कैसे हुई इसके पीछे भी पीएम मोदी ही हैं। पीएम मोदी का वह आडिया काम कर गया जिसके तहत 2015 में ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस‘ की शुरुआत हुई। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र में पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस‘ का विचार सदस्य राष्ट्रों के सामने रखा था। 11 दिसंबर, 2014 को यूएन के 193 सदस्य देश, 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस आयोजित करने पर अपनी सहमति दे दिए। जब 21 जून, 2015 को पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया, तो उसके बाद दुनिया के विभिन्न देशों में भारतीय योग शिक्षकों की मांग बढ़ने लगी।

अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई देशों में योग की है धूम-

आज अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जापान, अफ्रीका, हंगरी, बुल्गारिया और स्पेन सहित अनेक देशों में बड़ी तादाद में लोग योग सीख रहे हैं। उन्हें योग सीखाने के लिए भारतीय शिक्षकों की जरूरत है। इसी कारण से भारतीय योग शिक्षकों पर डॉलर बरसने लगा है। हर साल सैंकड़ों भारतीय योग शिक्षक, किसी न किसी देश में पहुंच रहे हैं और वहां योग की शिक्षा देकर जहां उनके सेहत को अच्छा कर रहे हैं तो वहीं अच्छी कमाई भी कर रहे हैं।

कुछ इस तरह हुई अंतरराष्ट्रीय संगठन की शुरुआत

इंटरनेशनल फाउंडेशन ऑफ योगा प्रोफेशनल्स (आईएफवाईपी) जैसे बड़े संगठन को खड़ा करने में यूपी के ओरैया जिले में स्थित गेल में कार्यरत सदानंद का अहम योगदान रहा है। एक वेवसाइट से बातचीत में उन्होंने इसके बारे में बताया। उनकी मानें तो, आज योग एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है। ‘योग से बरस रहे डॉलर‘ की बाबत वे कहते हैं, इसके पीछे एक बड़े संघर्ष की कहानी है।

मां की पीड़ा कर गई प्रेरणा का काम-

2003 की बात है, जब उनकी मां को गठिया ने जकड़ लिया था। डॉक्टर, वैद्य और योगचार्यों से संपर्क किया गया। पतंजलि योगपीठ जैसे बड़े संगठनों के यहां भी गए, मां को आराम भी मिला, लेकिन उनकी पीड़ा मेरे लिए एक प्रेरणा का काम कर गई। फिर क्या था सदानंद ने देश में योग की थोड़ी बहुत जानकारी रखने वालों को एकत्र करना शुरू कर दिया। उन्होंने छोटी-छोटी वर्कशॉप आयोजित करना शुरू किया। विभिन्न संस्थानों से संपर्क किया गया और इस तरह योग सिखाने एक प्लेटफार्म तैयार हुआ। शुरुआत में आर्थिक समस्याएं भी बहुत आईं। चार साल पहले तक दिल्ली में स्थायी आफिस तक नहीं ले सके थे। एक योगाचार्य ने नजफगढ़ में एक कमरा दिला दिया था। वह दफ्तर बाहरी दिल्ली में था, इसलिए उसका ज्यादा इस्तेमाल नहीं हो सका। जब कोई बैठक, वर्कशॉप या सम्मेलन होता है, तो गांधी पीस फाउंडेशन का हॉल किराए पर ले लेते थे। सात-आठ वर्ष पहले ऐसी ही एक जगह पर इंटरनेशनल फाउंडेशन ऑफ योग प्रोफेशनल (आईएफवाईपी) की स्थापना की गई। उसके बाद आज धीरे-धीरे यह बढ़ता गया।

पीएम मोदी के प्रयासों से बदली तस्वीर-

जब संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में पीएम मोदी ने दुनिया के सामने ‘योग‘ का विचार रखा और 21 जून 2015 को पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया, तो उसके बाद तस्वीर बदलती चली गई। सदानंद बातते हैं कि 2015 में एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और धीरे-धीरे लोग इससे जुड़ने लगे। अक्टूबर 2016 में आयुष मंत्रालय के साथ बैठक हुई, जिसमें फंड को लेकर मंत्रालय ने कहा, देखिये इस तरह तो डायरेक्ट फंड नहीं मिलेगा। इसके लिए रजिस्टर्ड बॉडी बनानी होगी। इसके बाद आईएफवाईपी को पंजीकृत कराया गया।

आईएफवाईपी बनने के बाद अगला कदम योग को सर्वसुलभ बनाना था और देश-विदेश हर जगह पर योग को पहुंचाने का लक्ष्य तय कर दिया। इसके लिए देश-विदेश के उन सभी लोगों को साथ में लेने का काम शुरू किया गया, जिन्हें योग की थोड़ी बहुत जानकारी थी। योग के लिए बहुत से लोगों को ‘डिप्लोमा-डिग्री इन योग‘ कराया गया और इंडस्ट्री के लोगों से बातचीत की गई। शिक्षण संस्थानों और अस्पतालों को आईएफवाईपी से जोड़ा। पंजाब, चंडीगढ़, यूपी, राजस्थान गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल सहित कई राज्यों के अस्पतालों में योग शिक्षक उपलब्ध कराया गया। अब केंद्रीय मंत्रालयों और कोरपोरेट जगत के दिग्गजों से बातचीत चल रही है। यहां पर योग की नियमित क्लास शुरू करने का प्रयास है।

जुड़े 35 हजार से ज्यादा योगाचार्य-

सदानंद के मुताबिक, जब आयुष मंत्रालय ने क्यूसीआई द्वारा योग प्रोफेशनल प्रमाणन की योजना शुरू की, तो उसके बाद 35 हजार से ज्यादा योगाचार्य प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर आईएफवाईपी से जुड़ चुके हैं। लोगों को योग की ट्रेनिंग दी गई और उन्हें विदेश में योगाचार्य की जॉब भी दिलवाई गई। इसका फायदा हुआ कि भारतीय योग शिक्षकों पर डॉलर की बरसात होने लगी और उन्हें रोजगार मिला।

अब लक्ष्य यह है कि...

उनका कहना है कि अब लक्ष्य यह है कि अपने देश के हर गांव-शहर और सरकारी-गैर सरकारी संगठन, सब जगह पर कम से कम एक योगाचार्य रहे, जो लोगों को मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ रख सके। इसके लिए छात्र, डॉक्टर, प्रोफेसर और एमएनसी कर्मी भी हमारे संगठन के साथ जुड़ रहे हैं। आईएफवाईपी द्वारा योग शिक्षकों को ट्रेनिंग देकर अमेरिका, ब्राजील, जापान, श्रीलंका, भूटान, रूस, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, अफ्रीका, हंगरी, बुलगारिया, स्पेन व फिजी आदि देशों में योगाचार्यों को भेजा जा चुका है। कुछ योगाचार्यों दो-तीन सप्ताह यानी शॉर्ट टर्म तो कुछ दो साल की लॉंग टर्म के लिए विदेश जाते हैं।

प्रति माह कमा रहे दो से ढाई लाख-

केंद्र सरकार के सहयोग से हर साल सौ से अधिक योग शिक्षकों को विदेश भेजा जा रहा है। लेकिन कोविड के दौरान यह सिलसिला थम गया था।

2016 में पहला बैच विदेश गया था-

मोदी सरकार ने जब से योग को अपने प्राइम एजेंडे में शामिल किया है, तब से योग के प्रति दुनिया का झुकाव हुआ है। अब तो इस फील्ड में आईटी व मेनेजमेंट वाले लोग भी आ रहे हैं। 60 से अधिक देशों में योग शिक्षक अपनी सेवा दे रहे हैं। 2015 से पहले कोई सामान्य योग शिक्षक विदेश नहीं जा पाता था केवल किसी अप्रोच वाले का ही नंबर लगता था। इसके बाद सामान्य लोग, योग सिखाने की ट्रेनिंग लेकर विदेश पहुंचने लगे। 2016 में पहला बैच विदेश गया था। इस साल भी स्क्रीनिंग के बाद सौ लोगों को विदेश भेजा गया है। योग शिक्षक, दो वर्ष के लिए विदेश जाते हैं और प्रति माह दो से ढाई लाख रुपये कमा लेते हैं। कई योग शिक्षकों को दोबारा से दो वर्ष के लिए विदेश में रहने का अवसर मिल जाता है।

इस माध्यम से ही भेजे जाते हैं विदेश-

सभी योगाचार्य आईसीसीआर-विदेश मंत्रालय के माध्यम से ही दूसरे देशों में भेजे जाते हैं। रिपब्लिक ऑफ कोरिया सियोल में सोमा दत्ता, बहरीन में रुद्रीश कुमार सिंह, सेशेल्स हाईकमीशन विक्टोरिया में ललिता संचेती, यूएसए में एंजेला माजरेकर, पापुआ न्यूगिनी में अजित सिंह अहलावत, नेपाल में संजय माचे और पीपी कृष्णन व हंगरी में अंकिता सूद आदि योग शिक्षक अपनी सेवाएं दे चुके हैं। विदेश जाने के लिए किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से योग में डिग्री, डिप्लोमा का प्रमाण-पत्र व अनुभव होना चाहिये। चयन इंटरव्यू प्रक्रिया के तहत ही होता है। संस्कृत और अंग्रेजी जानने वालों को प्रमुखता दी जाती है।

योग एक तरफ जहां लोगों को स्वस्थ्य जीवन दे रहा है तो वहीं रोजगार भी दे रहा है। योग को अपना कर लोग हेल्दी जीवन तो जी ही रहे हैं साथ ही कई बीमारियां भी योग से दूर हो रही हैं।



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Ashish Pandey

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