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POCSO आदेशों को लेकर सुर्खियों में आईं बॉम्बे हाईकोर्ट की जज की मुश्किलें बढ़ी
15 जनवरी के फैसले में, जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला ने फैसला सुनाया था कि कोर्ट के विचार में नाबालिग का हाथ पकड़ना और उसके सामन पैंट उतारना यौन शोषण की परिभाषा में फिट नहीं बैठता।
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बॉम्बे हाईकोर्ट की जज जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला को परमानेंट जज के रूप में पुष्टि को होल्ड पर रखा है।
कॉलेजियम ने 20 जनवरी को स्थायी न्यायाधीश के रूप में उनकी पुष्टि की सिफारिश की थी, लेकिन बच्चों के साथ यौन शोषण के दो मामलों में उनके निर्णयों के बाद, एससी कोलेजियम ने अपनी सिफारिश को वापस लेते हुए अपने फैसले को पलट दिया है।
बता दें कि पुष्पा गनेदीवाला के हाल ही में लिए गए दो फैसलों ‘स्किन टू स्किन’ जजमेंट और नाबालिग का हाथ पकड़ना या आरोपी का पैंट उतारना यौन उत्पीड़न नहीं, को लेकर काफी हो हल्ला मचा था। इस पर अभी भी बहस छिड़ी हुई है। कोई इस फैसले के साथ में है तो कई लोग इसके विरोध में भी हैं।
सूत्रों के मुताबिक, "जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला के खिलाफ कुछ भी पर्सनल नहीं है। उनको एक्सपोज़र की ज़रूरत है और हो सकता है कि जब वह वकील थीं, तो इस प्रकार के मामलों से निपटा नहीं गया हो। जज को ट्रेनिंग की आवश्यकता है।"
Pocso आदेशों को लेकर सुर्खियों में आईं बॉम्बे हाईकोर्ट की जज की मुश्किलें बढ़ी(फोटो: सोशल मीडिया)
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इन दो फैसलों पर आज तक छिड़ी हुई है बहस
15 जनवरी के फैसले में, जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला ने फैसला सुनाया था कि कोर्ट के विचार में नाबालिग का हाथ पकड़ना और उसके सामन पैंट उतारना यौन शोषण की परिभाषा में फिट नहीं बैठता।
हालांकि उन्होंने लिब्रस कुजूर नाम के व्यक्ति को आरोपी बनाए रखा, क्योंकि बच्चे की उम्र 12 साल से कम थी। इसके अलावा बच्चियों से छेड़छाड़ के एक मामले में सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'नो स्किन टच, नो सेक्सुअल असॉल्ट' का फैसला सुनाया था।
Pocso आदेशों को लेकर सुर्खियों में आईं बॉम्बे हाईकोर्ट की जज की मुश्किलें बढ़ी(फोटो: सोशल मीडिया)
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नाबालिग पीड़िता के स्तन को स्पर्श करना यौन अपराध नहीं
इसका मतलब था कि त्वचा से त्वचा का संपर्क हुए बिना नाबालिग पीड़िता के स्तन को स्पर्श करना यौन अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। बंबई उच्च न्यायालय ने इस मामले को पॉक्सो एक्ट के तहत मानने से इनकार कर दिया था।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग ने हाईकोर्ट के 19 जनवरी के फैसले को गंभीरता से लिया है। महिला आयोग ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।
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