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सावधान! अगरबत्ती, मच्छरमार क्वाइल ले रहा है जान
नई दिल्ली। जीने के लिए सांस लेना जरूरी है। और जिस हवा में हम सांस लें उसको भी शुद्ध होना चाहिए। दुर्भाग्य से शुद्ध हवा दुर्लभ चीज होती जा रही है - खास कर शहरों में जहां वाहनों, कारखानों का धुंआ, धूल, गर्द हवा में हमेशा घुला मिला रहता है। ऐसे में घर के भीतर की हवा सबसे साफ और प्रदूषण से मुक्त प्रतीत होती है। लेकिन सच्चाई इससे विपरीत है। हमारे घर के भीतर का प्रदूषण बाहर के प्रदूषण से ज्यादा खतरनाक है।
भारत जैसे कम आमदनी वाले देश में मौतों का सबसे बड़ा कारण कार्डियोवैस्कुलर या दिल की बीमारियां (सीवीडी) हैं जिसके पीछे एक प्रमुख कारण घर के भीतर की जहरीली हवा होती है। कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों में हार्ट फेल्योर, एन्जाइना, हार्ट अटैक और स्ट्रोक शामिल हैं।
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साइंस की प्रमुख पत्रिका 'लांसेट' की एक रिसर्च के अनुसार, गरीब देशों में सभी कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों में १२ फीसदी का कारण घरेलू वायु प्रदूषण है। इसके अलावा सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर है। इसके बाद हाई कोलेस्ट्रॉल और घरेलू वायु प्रदूषण का नंबर आता है। भारत के संदर्भ में बात की जाए तो डाइबिटीज, तंबाकू और खराब खान पान से ज्यादा बड़ा रिस्क फैक्टर घरेलू वायु प्रदूषण का है। रिसर्च बताती है कि जिन २१ देशों का अध्ययन किया गया उनमें भारतीयों के फेफड़ों की कार्यक्षमता सबसे कम पाई गई।
रिसर्च के अनुसार भारत में ६५ फीसदी घरों में खाना पकाने और घर की गर्म रखने के लिए लकड़ी, कोयले, कंडे जैसे बायोमास ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं शहरी इलाकों में मच्छरमार क्वाइल, धूप बत्ती और अगरबत्ती का घरेलू वायु प्रदूषण में बड़ा योगदान है।
अभी तक माना जाता रहा है कि कारखानों और वाहनों के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और इसी से निपटने पर फोकस किया जाता है। अब समय आ गया है कि घर के भीतर के प्रदूषण पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जाए। आजकल घरों में तरह तरह के स्प्रे भी इस्तेमाल किए जाते हैं चाहे वो कॉक्रोच, मच्छर, मक्खी मारने के लिए हों, फर्नीचर साफ करने के लिए हों या बालों को सेट करने के लिए, ये सभी स्प्रे विभिन्न प्रकार के केमिकल हवा में छोड़ कर वायु प्रदूषण बढ़ाने में योगदान करते हैं।
नंबर वन किलर हो जाएगा कैंसर
अमीर देशों में सबसे ज्यादा मौतें कैंसर से हो रही हैं। पहले दिल की बीमारियां मौतों का नंबर वन कारण थीं। जो ट्रेंड चल रहा है उससे ताज्जुब नहीं कि विश्व में नंबर वन किलर कैंसर बन जाएगा।
फिलहाल अभी दुनिया भर में अधेड़ उम्र के लोगों में मौतों का सबसे बड़ा कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां हैं। आंकड़ों में बात करें तो इस उम्र के लोगों की मौत के कारणों में ४० फीसदी हिस्सा हृदय रोग का है। लेकिन अमीर देशों में ट्रेंड कुछ अलग है। वहां दिली की बीमारियों की बनिस्बत दोगुनी मौतें कैंसर से होती हैं।
'लांसेट'पत्रिका की रिसर्च में पता चला है कि विश्व में मौतों का दूसरे सबसे कॉमन कारण कैंसर है। २६ फीसदी मौतें इसी वजह से होती हैं। रिसर्च बताती है कि दिल की बीमारियों से मौतों की दर घटती जा रही है जिससे चंद दशकों में कैंसर नंबर वन किलर बन जाएगा।
रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों ने बताया है कि २०१७ में विश्व में करीब साढ़े पांच करोड़ मौतों में से १ करोड़ ७७ लाख मौतें कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों से हुईं हैं। समस्त कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों में से ७० फीसदी हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल, खान पान, धूम्रपान और खराब लाइफ स्टाइल के कारण होती हैं। ये ऐसे कारण हैं जिनको स्वयं बदला जा सकता है।
अमीर देशों में कोलेस्ट्रॉल घटाने की दवा स्टैटिन और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने वाली दवाओं के कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों की दर बीते दशकों में बहुत नीचे आई है। गरीब या कम आमदनी वाले देशों में हृदय रोग से मौतों की बड़ी दर की वजह स्वास्थ्य सेवाओं की बुरी स्थिति है।
व्यापक रिसर्च
लांसेट की रिसर्च जनवरी २००५ से दिसम्बर २०१६ तक २१ देशों में की गई। इस दौरान ३५ से ७० वर्ष की उम्र के डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों का अध्ययन किया गया जिनमें भारत के ३५,७९३ लोग शामिल थे। रिसर्च में शामिल अमीर देश थे - कनाडा, सउदी अरब, स्वीडन और यूएई। मध्यम आय वर्ग वाले देश थे - अर्जेन्टीना, ब्राजील, चिली, चीन, कोलम्बिया, ईरान, मलेशिया, फिलिस्तीन, फिलीपींस, पोलैण्ड, तुर्की और दक्षिण अफ्रीका। कम आय वर्ग वाले देशों में बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, तंजानिया और जिम्बाब्वे शामिल थे।