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चीन के लिए मुसीबत बना 22 साल का जवान
इन दिनों पूरी दुनिया की मीडिया में हांगकांग में चल रहे आंदोलन की चर्चा है। इस आंदोलन ने चीन जैसे ताकतवार माने जाने वाले देश के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। कम ही लोगों को पता है कि इस आंदोलन के जरिये चीन की नाक में दम करने वाला कोई बड़ा नेता नहीं बल्कि 22 साल का एक नवजवान है। जोशुआ वांग नामक यह युवक इन दिनों सोशल मीडिया पर सबका चहेता बना हुआ है। चीन इस युवक को मिल रहे भारी जनसमर्थन से इतना घबराया हुआ है कि आंदोलन को कुचलने के लिए उसने वांग को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि बाद में वांग को कोर्ट से जमानत मिल गई। चीन ने एक दिन बाद होने वाली बड़ी रैली से घबराकर यह कार्रवाई की थी।
हांगकांग में प्रत्यर्पण बिल का जबर्दस्त विरोध
हांगकांग में यह आंदोलन प्रत्यर्पण बिल को लेकर शुरू हुआ। पिछले दिनों हांगकांग प्रशासन एक बिल लेकर आया था जिसके मुताबिक वहां के प्रदर्शनकारियों व अपराधियों को चीन लाकर मुकदमा चलाने की बात थी। हांगकांग को ब्रिटेन ने 1997 में एक समझौते के तहत चीन को सौंपा था। माना जा रहा है कि चीन के खिलाफ उठ रहे विरोध के स्वर को दबाने के लिए यह बिल लाया गया था। इस बिल के आते ही वांग ने अपने समर्थकों के साथ इसका विरोध शुरू कर दिया और सड़कों पर उतर गए।
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वांग को युवाओं का भारी समर्थन
हांगकांग के हजारों लोग वांग के सुर में सुर मिलाने लगे और उनकी अगुवाई में चीन के खिलाफ आवाज बुलंद की। वांग को खास तौर पर युवाओं का समर्थन हासिल हुआ। आंदोलन ने इतनी तेजी पकड़ ली कि प्रदर्शनकारियों ने हांगकांग के प्रमुख एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया और तमाम उड़ानें रद्द हो गईं। हांगकांग की सरकारी एयरलाइंस कैथे पैसिफिक ने अपने कर्मचारियों को सख्त चेतावनी दी है कि विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा सकता है। एयरलाइंस के 27000 कर्मचारी हैं।
टाइम मैगजीन में भी छा चुके हैं वांग
आंदोलनकारियों के नेता 22 साल के जोशुआ वांग डेमिस्टोस पार्टी के महासचिव हैं। इससे पूर्व वे हांगकांग स्टूडेंट एक्टिविस्ट ग्रुप स्कॉलरिज्म की भी स्थापना कर चुके हैं। जोशुआ 2014 में भी चर्चा में आए थे। हालांकि उस समय तो उनकी उम्र काफी कम थी। उस समय हांगकांग में मताधिकार की मांग को लेकर आंदोलन चला था। अंब्रेला मूवमेंट में भी जोशुआ काफी सक्रिय रहे थे। यह उनकी लोकप्रियता का ही नतीजा था चर्चित मैगजीन टाइम ने 2014 में उन्हें दुनिया के प्रभावशाली किशोरों में स्थान दिया था। जनवरी 2018 में जोशुआ को कोर्ट के आदेश का पालन न करने के सिलसिले में जेल भेज गया था।
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बिल विरोध से शुरू हुआ आंदोलन अब काफी व्यापक
हांगकांग में चल रहे इस आंदोलन ने अब बड़ा रूप अख्तियार कर लिया है। वांग की अगुवाई में चल रहे इस आंदोलन में शामिल लोग अब न केवल बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं बल्कि अब देश में लोकतंत्र बहाली की भी मांग करने लगे हैं। अब लोकतंत्र और पुलिस पर बर्बरता के आरोपों की जांच कराए जाने की मांग को लेकर भी प्रदर्शन हो रहे हैं। यह आंदोलनकारियों की ताकत का ही नतीजा है कि स्थानीय सरकार ने फिलहाल इस बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। 2014 में भी हांगकांग में एक बड़ा आंदोलन चला था। 79 दिनों तक चले इस आंदोलन की प्रमुख मांग मताधिकार की थी मगर चीन सरकार ने इस आंदोलन को सख्ती से दबा दिया था।
कोर्ट से मिली जमानत
वांग इस मांग को खारिज किए जाने के पांच साल बाद इसी मुद्दे को लेकर रैली करने जा रहे थे जब उनकी गिरफ्तारी की गयी। इस रैली पर पुलिस ने प्रतिबंध लगा दिया। इसके पीछे यह दलील दी गयी कि रैली के हिंसक होने की आशंका थी। आंदोलन को कुचलने के लिए वांग के साथ ही लोकतंत्र समर्थक एंडी चान को भी हांगकांग एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने वांग और चॉ की गिरफ्तारी की निंदा की। हालांकि बाद में दोनों को कोर्ट से जमानत मिल गई। जून से अब तक लगभग साढ़े आठ सौ लोगों को आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तार किया जा चुका है।
चीन बिल वापस लेने को तैयार नहीं
आंदोलनकारियों ने चीन पर दमनकारी नीतियां अपनाने का आरोप लगाते हुए रैली तो रद्द कर दी मगर यह सच्चाई है कि चीन के खिलाफ लोगों का गुस्सा अब जन आंदोलन का रूप ले चुका है। इसके आगे और विस्फोटक होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसका कारण यह है कि आंदोलनकारियों की प्रत्यर्पण बिल को वापस लेने की प्रमुख मांग मानने से चीन ने इनकार कर दिया है। लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए हांगकांग की मुख्य कार्यकारी कैरी लाम ने विवादास्पद प्रत्यर्पण बिल को वापस लेने के प्रस्ताव रखा था मगर चीन सरकार ने उसे खारिज कर दिया। उल्टे चीन ने लाम से कहा कि वे प्रदर्शनकारियों से सख्ती से निपटें और उनकी किसी भी मांग के आगे न झुकें। चीन सरकार का आरोप है कि आंदोलनकारियों को विदेश ताकतों से मदद मिल रही है और उन्हीं की शह पर यह आंदोलन चल रहा है।
आंदोलन कुचलने को चीन ने भेजे सैनिक
हांगकांग में चल रहे आंदोलन को कुछलने के लिए चीन ने कमर कस ली है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के काफी संख्या में जवान हांगकांग भेजे गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक करीब दस हजार चीनी सैनिक हांगकांग भेजे गए हैं। चीन के अखबार चाइना डेली ने भी इसकी पुष्टि की है। अखबार का कहना है कि अगर हांगकांग में हालात बेकाबू होते हैं तो चीनी सैनिक हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेंगे। वे तमाशबीन की भूमिका निभाने के लिए हांगकांग नहीं भेजे गए हैं। हालात बेकाबू होने वे कार्रवाई करने से नहीं चूकेंगे। हालांकि चीनी संसद के बेसिक लॉ कमेटी की उप निदेशक मारिया टाम का कहना है कि हांगकांग में अभी आपात कानूनों को लागू करने का समय नहीं है। वैसे उन्होंने यह भी साफ किया कि इसके लिए स्थानीय सरकार को चीन से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।