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दिल्ली से घर वापसी की मजबूरी, सीएम सिटी में भी घुट रही सांस
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर। देश की राजधानी दिल्ली की जहरीली आब-वो-हवा परेशान हो कर घर वापसी कर रहे पूर्वांचल के लोगों को यहां भी खास राहत नहीं मिल रही है। गोरखपुर में निर्माण कार्यों में मानकों की ऐसी-तैसी, एनजीटी के आदेश के बाद भी अस्पताल से लेकर पॉलीथिन मिश्रित कचरे को खुले में जलाने और किसानों द्वारा पराली खेतों में जलाने का नतीजा है कि प्रदूषण का स्तर सामान्य से चार गुना अधिक पहुंच चुका है। दूसरी तरफ अफसर सिर्फ बैठकें कर प्रदूषण पर अंकुश की योजनाएं बना रहे हैं। महराजगंज और सिद्धार्थनगर में पराली जलाने से लेकर बिना रिपर के कंबाइन के खिलाफ कार्रवाई तो हुई लेकिन यह नाकाफी ही दिख रही है। दिल्ली समेत एनसीआर में प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए पूर्वांचल के अभिभावकों ने अपने पाल्यों को वापस घर बुला लिया है।
दिवाली पर जबर्दस्त प्रदूषण
दिवाली की आतिशबाजी और खेतों में पराली जलाने के मामलों में बढ़ोतरी के बाद गोरखपुर में प्रदूषण का स्तर चार गुना तक बढ़ गया है। वर्ष 2018 में दिवाली पर हवा में पीएम-10 (10 माइक्रॉन से छोटे धूल के कण) की मात्रा जहां दोगुनी बढ़ी थी, इस बार यह चार गुनी तक बढ़ गई है। यही नहीं, ध्वनि प्रदूषण भी सामान्य से तीन गुना तक बढ़ गया। मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी)व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के विशेषज्ञों की जांच में इसकी तस्दीक हुई है। सामान्य तौर पर पीएम -10 की मात्रा 80 से 100 आरएसपीएम रहती है लेकिन दिवाली से एक दिन पहले गोलघर में यह 278.7 आरएसपीएम, जबकि दिवाली के दिन 317 रहा। जो पिछले वर्ष की तुलना में दोगुना है। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने भी गोरखपुर के प्रमुख बाजार गोलघर में 20 नवम्बर को पीएम 10 की मात्रा 134 माइक्रोग्राम घन मीटर थी, जो दिवाली की रात 217.86 पहुंच गई। दिवाली की रात मदन मोहन मालवीय टेक्निकल यूनिवर्सिटी की टीम ने 12 कॉलोनियों में ध्वनि प्रदूषण की जांच की। यह हर जगह सामान्य से ज्यादा मिला। सबसे खराब स्थिति शांत क्षेत्र में शामिल जिला अस्पताल की थी। यहां ध्वनि प्रदूषण 125 डेसिबल तक पहुंच गया, जबकि रात में इसे 40 डेसिबल ही होना चाहिए। दिवाली के बाद भी प्रदूषण की मात्रा में कमी नहीं आई है। 4 नवम्बर को गोरखपुर शहर में दिन में 11 बजे एक्यूआई 160 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया जबकि सामान्य स्थिति में यह 0 से 50 माइक्रोग्राम होना चाहिए। यानी प्रदूषण सामान्य मानक के तीन गुने से अधिक है।
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खुलेआम जला रहे कूड़ा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का निर्देश है कि कूड़ा सार्वजनिक रूप से कहीं नहीं जलाया जा सकता है। मुख्यमंत्री के शिकायती पोर्टल पर गोरखपुर से 100 से अधिक शिकायतें खुले में कूड़ा जलाने को लेकर हैं। खुद नगर निगम के सफाई कर्मचारी कामचोरी में कूड़े को जला रहे हैं। तमाम लोग रात के अंधेरे में कूड़ा जलाते हैं। नगर निगम के पास कूड़ा निस्तारण के लिए कोई स्थान नहीं है। फिलहाल एकला बंधे समेत दर्जन भर स्थानों पर कूड़ा गिराया जा रहा है। प्रतिदिन करीब 700 मिट्रिक टन कूड़ा शहर में निकलता है जिसमें से बड़ा हिस्सा सफाई कर्मचारियों द्वारा जला दिया जाता है। एकला बंधे पर दिन-रात कूड़े में से धूंआ निकलता रहता है। मेडिकल रोड, बेतियाहाता में बड़ी संख्या में नर्सिंग होम संचालित हो रहे हैं। इनके पास अस्पताली कचरा के निस्तारण का कोई इंतजाम नहीं है। आम तौर पर नर्सिंग होम के पास के कूड़ेदान में अस्पताली कचरा जलता हुआ नजर आता है।
50 से अधिक किसानों पर जुर्माना, फिर भी जल रही पराली
खेतों में पराली न जलाई जाए इसके लिए जिला प्रशासन ने बाकायदा एक कमेटी गठित कर दी है। पराली जलाने पर महराजगंज में सर्वाधिक 40 किसानों पर जुर्माना हुआ है। आपदा विशेषज्ञ गौतम गुप्ता का कहना है कि पराली जलाने से खेतों को तो नुकसान होता ही है, आबो-हवा भी खराब होती है। किसानों को चाहिए कि पराली को रोटावेटर से खेत में कटवा दें ताकि वह खाद बन जाए।
नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मुकेश रस्तोगी का कहना है कि सुपरवाइजर से लेकर सफाई कर्मचारियों को निर्देश दिया गया है कि कूड़ा न जलाएं। दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।
पर्यावरणविद और टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गोविन्द पांडेय का कहना है कि स्टेटस सिंबल बन रहे पटाखा जलाने के शौक ने शहर की आबो-हवा खराब कर दी है।
सांस रोग विशेषज्ञ डॉ. बीएन अग्रवाल कहते हैं कि 'तमाम लोगों ने अपने बच्चों को दिल्ली से वापस बुला लिया है। दिल्ली में प्रदूषण से प्रभावित छात्र बीमार हैं। ओपीडी में इनकी संख्या में काफी इजाफा हुआ है।
आसमान में जहर, सड़क पर कहर
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर : पंजाब में प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि सड़क पर चलते समय आंखों में जलन और सांस लेने में परेशानी की शिकायतें आम हैं। यही परेशानियां किसान भी झेल रहे हैं फिर भी वह बदस्तूर पराली जलाने में लगे हैं। पंजाब में इस साल अब तक पराली जलाने के 20729 मामले सामने आए हैं। जिनमें से 2923 किसानों पर कार्रवाई की जा चुकी है। सरकार को उम्मीद है कि इस बार पराली जलाने के मामलों में 20 प्रतिशत कमी आएगी। पिछले साल पराली जलाने के 49000 से अधिक केस आए थे। इस बार अब तक 20729 केस आए हैं, जबकि 70 प्रतिशत फसल काटी जा चुकी है। लेकिन ये आंकड़े सरकारी हैं। अभी तो न जाने कितने ऐसे किसान हैं जो बदस्तूर पराली जला रहे हैं।
41 लाख रुपए का जुर्माना
संबंधित विभागों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार की टीमों ने एक नवंबर तक पराली जलाने वाले 11,286 घटनास्थलों का दौरा किया और 1585 मामलों में 41.62 लाख रुपए जुर्माना किसानों पर लगाया। 1136 मामलों में खसरा गिरदावरी में रेड एंट्री की गई है। वहीं, 202 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है। बाकी घटनाओं की तस्दीक करने और मुआवजा वसूलने की प्रक्रिया जारी है। पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने बिना स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम के चल रहीं 31 कंबाइनों पर 62 लाख रुपए जुर्माना किया है। विभागीय अधिकारियों का कहना है पराली जलाने वाले किसानों में सरकारी मुलाजिमों से लेकर नंबरदार तक शामिल है।
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जागरूकता के प्रयास बेअसर
सरकारी की सख्ती के बावजूद किसानों द्वारा पराली जलाए जाने की घटनाएं बता रही हैं कि जागरूकता के सभी प्रयास बेअसर साबित हो रहे हैं। बठिंडा में तो डीसी कार्यालय के परिसर में ही पराली रख कर किसानों ने उसमें आग लगा दी। किसानों का कहना है कि लोग धुंए परे शान हो रहे हैं तो होते रहें। पराली जलाने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। उनका कहना है कि पराली निस्तारण के लिए सरकार सस्ती मशीनरी उपलब्ध करवाए या फिर मुआवजा दे।
अब तक 20 से अधिक लोगों की मौत
पराली के धुंए और धुंध की वजह से सड़क हादसों में अब तक 20 से अधिक लोग जान गांव बैठे हैं। हादसों की तो संगरूर में एक बच्ची सहित 6 लोगों की मौत हो चुकी है। लुधियाना में भी पराली के धुएं की वजह से अलग-अलग जगहों पर हुए हादसों में 4 लोगों की मौत हो गई थीं। खन्ना में खेत में पराली की आग और धुएं की वहज से एक बच्चा पराली की आग में गिर पड़ा। पराली को जलाने से किसान खुद के लिए ही मुसीबत खड़ी कर ही रहे हैं। जमीन की उपजाऊ क्षमता कम होती जा रही। आंखों में जलन, सांस और चमड़ी के रोगी बढ़ रहे हैं। जब तक बरसात नहीं होती तब तक सूरज भी स्मॉग की चादरों में ढंका रहेगा।
क्या है समस्या की जड़
कृषि वैज्ञानिक डॉ गुरमीत सिंह कहते हैं कि पंजाब में करीब 1.37 लाख एकड़ जमीन पर खेती होती है। करीब दो करोड़ टन से अधिक पराली पंजाब के खेतों से हर साल निकलती है। इस बार पंजाब में करीब 29 हेक्टेयर जमीन में धान की फसल लगाई गई थी। इनमें से 70 फीसदी धान काटा जा चुका हैं। पराली को आग लगाने के मामले कमी आई है, लेकिन आशा के अनुरूप नहीं। दरअसल, पशुपालन के प्रति लोगों का रुझान कम हो रहा है। पराली और गेहूं के नाड़ की खपत के लिए पशुपालन को बढ़ावा देना होगा। आज से 10 साल पहले भी तो खेती होती थी। तब पराली जाने की प्रवृत्ति इतनी नहीं थी। सरकार को चाहिए को वह पशुपालन को बढ़ावा दे, ताकि पराली का इस्तेमाल पशुओं के लिए किया जा सके।
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू ) के कृषि विशेषज्ञ डॉ अनिल शर्मा कहते हैं कि पराली की आग और धुएं से होने वाले नुकसान की जानकारी देने के लिए गांवों में कैंप लगाए जा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिक किसानों को जागरूक करने के साथ ही यह भी बता रहे हैं कि पराली जलाए बिना भी अगली फसल की बुवाई की जा सकती है। जागरूकता बढ़ भी रही है और पिछले साल से इस बार पाराली जलाने के केसेज कम हुए हैं।
वरिष्ठ भू वैज्ञानिक डॉ राजीव गुप्ता कहते हैं कोई भी चीज एकदम से खत्म नहीं हो जाती है। पराली जलाने के मामले धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं। वे कहते हैं कि जागरूकता से ही पराली की आग को बुझाया जा सकता है। गांवों में कैंप लगा कर खेती के नए नए गुर सिखाए जा रहे हैं। पराली प्रबंधन के तरीके भी बताए जा रहे हैं।
मेरठ में खतरा बरकरार
सुशील कुमार
मेरठ में धुंध और धुएं ने हर किसी की चिंता बढ़ा दी है। पिछले एक सप्ताह में प्रदूषण का स्तर जिस तरीके से बढ़ा, इसे लेकर हर कोई हतप्रभ है। छठ पूजा से ही स्थिति और विकराल हो गई है. जम्मू कश्मीर से सटे हिमालय क्षेत्र में जब-जब पश्चिम विक्षोभ सक्रिय होता है, तब-तब मेरठ और एनसीआर की फिजा में बदलाव आता है। हालांकि हालात पहले के मुकाबले सामान्य हुए हैं। , लेकिन जिला प्रशासन इस मामले में किसी तरह की ढील देने के मूड में नही है। जिलाधिकारी का कहना है कि उनके द्वारा क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मेरठ को प्रतिदिन रिपोर्ट देने के निर्देश दिये गए हैं। एनसीआर क्षेत्र में हॉट मिक्स प्लांट व स्टोन क्रेशर बंद रखने के निर्देश दिये गए हैं।
बेरोकटोक कूड़ा जलाया जा रहा
कूड़ा जलाने पर प्रतिबंध होने के बावजूद नगर निगम शहर में कूड़ा जलाने पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। जुर्माने और एफआइआर दर्ज करने का प्रावधान है, लेकिन इसके बाद भी शहर में कई स्थानों पर कूड़ा जलाया जाता है. मोहकमपुर में स्पोट्र्स गुड्स काम्पलेक्स वाले मार्ग किनारे डस्टबिन और सड़क पर फैले कूड़े में किसी ने आग लगा दी। पास में ही आइआइए भवन के समीप पड़ा कूड़ा भी दिनभर सुलगता रहा। जसवंत राय हॉस्पिटल के पास डस्टबिन में भरे कूड़े में आग लगने से धुआं फैला रहा। बिजली बंबा बाईपास किनारे भी कूड़ा जलने से धुएं के गुबार उठते रहे। लेकिन नगर निगम की टीम इससे बेखबर बनी रही। मामला जब जिलाधिकारी के संज्ञान में आया तब जाकर नगर निगम द्वारा चार अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआइआर कराई गई। सहायक नगर आयुक्त ब्रजपाल सिंह कहते हैं,चार एफआइआर दर्ज कराई गई हैं। जो सफाई निरीक्षक अपने-अपने क्षेत्र में कूड़ा जलने की जानकारी नहीं दे रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए नगर आयुक्त को लिखा जाएगा।
वेस्ट यूपी में पराली का सदुपयोग
हरियाणा, पंजाब के किसान बासमती की पराली को जलाकर प्रदूषण फैला रहे हैं, जबकि मेरठ समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसान ऐसे भी हैं जो कि पराली को चारे में मिलाकर दुधारू पशुओं को खिला रहे हैं। इससे पशुओं की सेहत दुरुस्त रहने के साथ दूध की गुणवत्ता भी बढ़ती है। बासमती निर्यात अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम के प्रधान वैज्ञानिक डा. रितेश शर्मा पिछले एक महीने में विभिन्न प्रदेशों में बैठक कर किसानों को पराली न जलाने की सलाह के साथ इसकी विशेषता से भी अवगत करा चुके हैं। डा. रितेश शर्मा का कहना है कि उत्तर भारत में करीब 62 लाख हेक्टेयर रकबे में 200 लाख टन चावल पैदा होता है। इसमें से निकलने वाली लाखों टन पराली को वेस्ट यूपी की तर्ज पर इस्तेमाल किया जाए तो दोहरा फायदा होगा। शर्मा के अनुसार कृषि विवि के पास स्थित बासमती अनुसंधान संस्थान से हर साल पांच हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से किसान बासमती की पराली खरीदते हैं। इसे वह दुधारू पशुओं को खिलाते हैं। हरियाणा और पंजाब के अधिकांश किसान बासमती धान की 60-70 प्रतिशत पराली खेतों में ही जला देते हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। दोनों राज्यों के किसान बची हुई पराली को पश्चिम यूपी के देहात क्षेत्र में ट्रैक्टर-ट्राली, ट्रकों में भरकर लाते हैं और यहां के किसानों को बेचते हैं। इसकी सर्वाधिक बिक्री सरधना, बागपत, बड़ौत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, हापुड़ आदि में होती है।
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- डॉ.एन के पाहवा(वरिष्ठ फिजीशियन) - प्रदूषण बढऩे परऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इससे सांस लेने में परेशानी होने लगती है। सांस के मरीजों को अस्थमा अटैक तक हो सकता है। प्रदूषण से हार्टऔर ब्रैन अटैक का खतरा बढ़ गया है।
-अदिति शर्मा (जिला वन अधिकारी) - पर्यावरण संरक्षण केलि सभी को जागरुक होने के साथ अपनी-अपनी जिम्मेदारीनिभानी होगी। ध्वनिऔर वायु प्रदूषण का स्तर बढऩा स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।
-अनीता राणा (निदेशक जहित फाउंडेशन) - प्रदूषण नियन्त्रण के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। लोगों को भी पर्यावरण जागरुक होकर आगे आना होगा।
-डॉ.मधु वत्स (पर्यावरणविद) - वायु और ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए अभी जागरुकता बढ़ानी होगी। हम जागरुक नही हुए तो फिर हालात हमारे नियन्त्रण से भी बाहर हो जाएगे।