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राजीव गांधी हत्या की साजिशः प्रभाकरण का प्लान, शिवरासन ने दिया टारगेट और 21 मई 1991 को जो हुआ उससे दंग रह गया देश
राजीव गांधी हत्या की साजिशः प्रभाकरण के साथ बैठक और उसे अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट उपहार देते समय राजीव गांधी या उनके अपनों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि यही प्रभाकरण उनकी जान ले लेगा। 21 मई 1991 को राजीव गांधी को देशवासियों ने समय से पहले खो दिया था जब श्रीपेंरबदूर में एक धमाके में उनकी मौत हो गई थी।
Lucknow: पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की आज 32वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 21 मई 1991 को राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेंरबदूर में एक आत्मघाती धमाके में मौत हो गई थी। इस धमाके में कई और लोग भी मारे गए थे। देशवासियों ने ऐसे व्यक्ति को समय से पहले खो दिया जो राजनीति में लंबी रेस के नेता थे और उनकी सोच भी लाजवाब थी। भारत में संचार क्रांति, कंप्यूटर, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनका बड़ा योगदान रहा है।
यहां हम आज आपको बताएंगे कि आखिर राजीव गांधी की हत्या की साजिश को कौन रचा और कब, कैसे, कहां और किसने अंजाम दिया। जिस लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम) ने राजीव गांधी की हत्या की साजिश रची थी उसके चीफ प्रभाकरण को उन्होंने बुलेट प्रूफ जैकेट उपहार में दी थी।
श्रीलंका लौटते ही बात से मुकर गया प्रभाकरण-
दरअसल, श्रीलंका में अलगाववादी गुट लिट्टे के अध्यक्ष प्रभाकरण ने राजीव गांधी के साथ नई दिल्ली में एक बैठक की थी, जिसमें उसने आंदोलन खत्म करने का वादा किया था। हालांकि, उसने श्रीलंका लौटते ही उनको दगा दे दिया। प्रभाकरण के साथ बैठक और उसे अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट उपहार देते समय राजीव गांधी या उनके अपनों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि यही प्रभाकरण उनकी जान लेगा।
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जाफना (नवंबर 1990)-
घने जंगलों के बीच अपने आतंकी ठिकाने में एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरण की बैठक चल रही थी। इसमें उसके साथ चार साथी बेबी सुब्रह्मण्यम, मुथुराजा, मुरूगन और शिवरासन भी मौजूद थे। यहां एक बड़ी साजिश रची जा रही थी। तनाव के बीच घंटों चली बैठक में हर कोई अपनी राय रख रहा था। प्रभाकरण सबकी बातें बहुत ध्यान से सुन रहा था और प्लान तैयार कर लिया। आखिर साजिश पूरी हो गई और प्रभाकरण ने राजीव गांधी की मौत के प्लान पर अपनी फाइनल मुहर लगा दी। इस प्लान को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी चार लोगों को सौंपी गई।
-बेबी सुब्रह्मण्यमः लिट्टे आइडियोलॉग, हमलावरों के लिए ठिकाने का जुगाड़ करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
-मुथुराजाः प्रभाकरण का खास, हमलावरों के लिए संचार और पैसे की जिम्मेदारी दी गई।
-मुरुगनः विस्फोटक विशेषज्ञ, आतंक गुरू, हमले के लिए जरूरी चीजों और पैसे का इंतजाम करना।
शिवरासनः लिट्टे का जासूस, विस्फोटक विशेषज्ञ, राजीव गांधी की हत्या की पूरी जिम्मेदारी इसी पर थी।
दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी संगठन लिट्टे के प्रमुख प्रभाकरण से राजीव गांधी की हत्या का फरमान मिलते ही बेबी सुब्रह्मण्यम और मुथुराजा 1991 की शुरूआत में चेन्नई पहुंच गए। इनके जिम्मे चेन्नई में ऐसे लोग तैयार करने थे जो मकसद से अंजान होते हुए भी डेथ स्क्व्यॉड की मदद करें। खासतौर पर राजीव के हत्यारों के लिए हत्या से पहले रुकने का ठिकाना मुहैया कराएं और हत्या के बाद छिपने का।
पहले बनाया टारगेट फिर शुरू किया काम-
बेबी सुब्रह्मण्यम और मुथुराजा ने चेन्नई पहुंच कर पहले टारगेट बनाया और फिर काम शुरू कर दिया। दोनों शुभा न्यूज फोटो एजेंसी पहुंचे। एजेंसी का मालिक शुभा सुब्रह्मण्यम इलम समर्थक था। शुभा के पास दोनों की मदद का पैगाम उनके पहुंचने से पहले ही आ चुका था। शुभा को साजिश के तहत लोकल सपोर्ट मुहैया कराना था। बेबी ने सबसे पहले शुभा न्यूज फोटो एजेंसी में काम करने वाले भाग्यनाथन को अपने चंगुल में फंसाया। राजीव गांधी हत्याकांड में सजा काट रही नलिनी इसी भाग्यनाथन की बहन है जो उस समय एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करती थी। भाग्यनाथन और नलिनी की मां नर्स थी। मां को इसी समय अस्पताल से मिला घर खाली करना था। फिर क्या था मुसीबत में घिरे भाग्यनाथन और नलिनी को आतंकी बेबी ने पैसे और मदद के झांसे में ले लिया। बेबी ने एक प्रिंटिंग प्रेस भाग्यनाथन को सस्ते में बेच दिया। एक ओर तो जहां इससे परिवार सड़क पर आने से बच गया तो वहीं बदले में नलिनी और भाग्यनाथन बेबी के हाथ के खिलौने बन गए। साजिश का पहला चरण था समर्थकों का एक बड़ा नेटवर्क तैयार करना जो शातिर दिमागों में बंद साजिश को धीरे-धीरे अंजाम तक पहुंचाने में मददगार साबित हों और वो भी बिना कुछ जाने।
राजीव गांधी के खिलाफ भड़काया-
एक तरफ बेबी चेन्नई में रहने के सुरक्षित ठिकाने बना रहा था तो मुथुराजा बेहद शातिर तरीके से लोगों को अपनी क्रूर साजिश के लिए चुन रहा था। शुभा न्यूज फोटो एजेंसी में काम करने वाले लोग इन शैतानों के लिए वरदान बन गए थे। यहीं से मुथुराजा ने दो फोटोग्राफर रविशंकरन और हरिबाबू को चुना। दोनों शुभा न्यूज फोटोकॉपी एजेंसी में बतौर फोटोग्राफर काम करते थे। हरिबाबू को जब नौकरी से निकाल दिया गया तो मुथुराजा ने उनको विज्ञानेश्वर एजेंसी में नौकरी दिला दी। यही नहीं श्रीलंका से बालन नाम के एक व्यक्ति को बुलाया और उसे हरिबाबू का शागिर्द बना दिया गया। इससे हरिबाबू को काफी पैसा मिलने लगा और उसका झुकाव मुथुराजा की ओर बढ़ने लगा। मुथुराजा ने अहसानों से दबे हरिबाबू को राजीव गांधी के खिलाफ खूब भड़काया गया कि अगर वो 1991 के लोकसभा चुनाव में जीत कर सत्ता में आए तो तमिलों की और दुर्गति होगी।
किताब के जरिए किया ब्रेनवॉश-
प्रभाकरण के आदेश के बाद राजीव गांधी की हत्या के लिए साजिश की एक-एक ईंट जोड़ी जा रही थी। इसी बीच श्रीलंका में बैठे मुरूगन ने जय कुमारन और रॉबर्ट पायस को चेन्नई भेजा। ये दोनों पुरूर के साविरी नगर एक्सटेंशन में रुके। यहां जयकुमारन का जीजा लिट्टे बम एक्सपर्ट अरीवेयू पेरूलीबालन 1990 से छिप कर रह रहा था। इन दोनों को श्रीलंका से चेन्नई भेजने का मकसद था अर्से से चुपचाप पड़े कंप्यूटर इंजीनियर और इलेक्ट्रॉनिक एक्सपर्ट अरीवेयू पेरूलीबालन को इस साजिश में शामिल करना ताकि वो हत्या करने के लिए बम बना सके। आगे चलकर पोरूर का यही घर राजीव गांधी हत्याकांड के प्लान का हेडक्वार्टर बन गया और यहीं से चलकर पूरी साजिश श्रीपेरंबदूर तक पहुंची थी। शातिर सूत्रधार जुड़ने वाले हर शख्स के दिमाग में राजीव गांधी के खिलाफ भीषण नफरत भी पैदा कर रहा था। उन्हें पता था कि भयंकर नफरत के बिना भीषण घिनौनी साजिश को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता। जब बेबी और मुथुराजा ने अपने-अपने चार लोग जोड़ लिए तो साजिश में मुरूगन की एंट्री हुई। मुरुगन ने चेन्नई पहुंच कर साजिश को अंजाम की ओर लाने की कोशिशें तेज कीं। मुरूगन के इशारे पर जयकुमारन और पायस नलिनि-भाग्यनाथन-बेबी-मुथुराजा के ठिकाने पर पहुंच गए। राजीव गांधी विरोधी भावनाएं लोगों के दिमाग में भरी जाने लगीं। नलिनी राजीव गांधी के खिलाफ पूरी तरह तैयार हो गयी थी। नलिनि जिस प्रिटिंग प्रेस में नौकरी करती थी वहां छप रही एक किताब सैतानिक फोर्सेस ने उसके ब्रेनवॉश करने में अहम भूमिका निभाई। ब्रेनवॉश के साथ मुरूगन ने हत्यारों की नकली पहचान तैयार करने के लिए जयकुमारन और पायस की मदद से फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया।
ऐसी की गई मानव बम की तलाश?
मुरूगन, मुथुराजा और बेबी ने मिलकर चेन्नई में छिपने के तीन महफूज ठिकाने खोज लिए। अरिवू के तौर पर एक बम बनाने वाला तैयार था। राजीव के खिलाफ नफरत से भरे नलिनी पद्मा और भाग्यनाथन की ओट तैयार थी। शुभा सुब्रह्मण्यम जैसा आदमी मुहैया कराने वाला तैयार था। अब शिवरासन को संदेशा भेजा गया। मार्च की शुरूआत में वो समुद्र के रास्ते चेन्नई पहुंचा। वो पोरूर के इसी इलाके में पायस के घर में रुका। पोरूर ही राजीव गांधी की हत्या की साजिश का कंट्रोलरूम बन गया। शिवरासन के पोरूर पहुंचते ही जाफना के जंगलों की साजिश का जाल पूरा हो गया। शिवरासन ने कमान अपने हाथ में ले ली। बेबी और मुथुराज को श्रीलंका वापस भेज दिया गया। चेन्नई में नलनी, मुरूगन और भाग्यनाथन के साथ शिवरासन ने मानवबम खोजा पर वो नहीं मिला। शिवरासन ने अरीवेयू पेरुली बालन के बम की डिजायन को चेक किया, शिवरासन खुद अच्छा विस्फोटक एक्सपर्ट था। सारी तैयारी को मुकम्मल देख मानवबम के इतंजाम में शिवरासन फिर समुद्र के रास्ते जाफना वापस गया वहां वो प्रभाकरण से मिला। उसने प्रभाकरण को बताया कि भारत में मानवबम नहीं मिल रहा है। इसपर प्रभाकरन ने शिवरासन की चचेरी बहनों धनु और शुभा को उसके साथ भारत के लिए रवाना कर दिया।
बेल्ट में जमाए जा सकते थे 6 ग्रेनेड-
धनु और शुभा को लेकर शिवरासन अप्रैल की शुरूआत में चेन्नई पहुंच गया। धनु और शुभा को वो नलिनी के घर ले गया। यहां मुरूगन पहले से मौजूद था। शिवरासन ने बेहद शातिर तरीके से पायस-जयकुमारन-बम डिजायनर अरिवू को इनसे अलग रखा और खुद पोरूर के ठिकाने में रहता रहा। वो समय-समय पर सबको सही कार्रवाई के निर्देश देता था। अब चेन्नई के तीन ठिकानों में राजीव गांधी हत्याकांड की साजिश चल रही थी। शिवरासन ने टारगेट का खुलासा किए बिना बम एक्सपर्ट अरिवू से एक ऐसा बम बनाने को कहा जो महिला की कमर में बांधा जा सके। शिवरासन के कहने पर अरिवू ने एक ऐसी बेल्ट डिजाइन की जिसमें छह आरडीएक्स भरे ग्रेनेड जमाए जा सकें। हर ग्रेनेड में अस्सी ग्राम सी-4 आरडीएक्स भरा गया। हर ग्रेनेड में दो मिलीमीटर के दो हजार आठ सौ स्पिलिंटर हों। सारे ग्रेनेड को सिल्वर तार की मदद से पैरलल जोड़ा गया। सर्किट को पूरा करने के लिए दो स्विच लगाए गए। इनमें से एक स्विच बम को तैयार करने के लिए और दूसरा उसमें धमाका करने के लिए था और पूरे बम को चार्ज देने के लिए 9 एमएम की बैटरी लगाई गई। ग्रेनेड में जमा किए गए स्प्रिंटर कम से कम विस्फोटक में 5000 मीटर प्रतिसेकेंड की रफ्तार से बाहर निकलते यानी हर स्प्रिंटर एक गोली बन गया था। बम को इस तरह से डिजायन किया गया था कि आरडीएक्स चाहे जितना कम हो अगर धमाका हो तो टारगेट बच न सके और वही हुआ भी। शिवरासन के हाथ में बम भी था और बम को अंजाम तक पहुंचाने वाली मानवबम धनु भी। इतंजार था तो बस राजीव गांधी का पर इससे पहले वो अपनी साजिश को ठोक बजाकर देख लेना चाहता था।
करुणानिधि-वीपी सिंह की रैली में की रेकी-
1991 के आम चुनावों के दौरान चेन्नई के मरीना बीच में जयललिता और राजीव की रैली हुई जिसमें शिवरासन राजीव की सुरक्षा का जायजा लेने पहुंचा। यहां उसने राजीव की जनता से खुल कर मिलने और लचर सुरक्षा की खामियों को भांप लिया पर शिवरासन यहीं नहीं रुका। इस रैली के अनुभव को पक्का करने के लिए वो एक और सियासी रैली में मानवबम धनु को साथ लेकर पहुंचा। 12 मई 1991 को शिवरासन-धनु ने पूर्व पीएम वीपी सिंह और डीएमके सुप्रीमो करूणानिधि की रैली में फाइनल रेकी की।
तिरुवल्लूर के अरकोनम में हुई इस रैली में धनु वीपी सिंह के बेहद करीब तक पहुंची उसने उनके पैर भी छुए। बस बम का बटन नहीं दबाया। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की रैली में सुरक्षा का स्तर राजीव की सुरक्षा के बराबर न सही तो कम भी नहीं था पर शिवरासन और धनु के शातिर इरादे कामयाब रहे। इससे शिवरासन के हौसले बुलंद हो गए और उसे अपना प्लान कामयाब होता दिखने लगा। लोकसभा चुनाव का दौर था राजीव गांधी की रैली 21 मई को श्रीपेरंबदूर में तय हो गई। शिवरासन ने पलक झपकते ही तय कर लिया कि 21 को ही साजिश पूरी होगी। 20 की रात शिवरासन नलिनि के घर रैली के विज्ञापन वाला अखबार लेकर पहुंचा और तय हो गया कि अब 21 मई को ही साजिश पूरी होगी।
और नहीं मानी महिला सब इंस्पेक्टर की बात-
नलिनी के घर 20 मई की रात धनु ने पहली बार सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देने के लिए चश्मा पहना। शुभा ने धनु को बेल्ट पहना कर प्रैक्टिस करवाई और श्रीपेरंबदूर में किस तरह साजिश को अंजाम तक पहुंचाना है इसकी पूरी तैयारी मुकम्मल कर ली गई। सभी पूरी तरह शांत और मकसद के लिए तैयार थे। 20 मई की रात को सभी ने साथ मिलकर फिल्म देखी और सो गए। सुबह हुई तो पांच लोग शिवरासन-धनु-शुभा-नलिनी और हरिबाबू साजिश को पूरा करने के लिए तैयार थे। श्रीपेरंबदूर में रैली की गहमागहमी थी। राजीव गांधी के आने में देरी हो रही थी। बार-बार ऐलान हो रहा था कि राजीव किसी भी वक्त रैली के लिए पहुंच सकते हैं। पिछले छह महीने से पक रही साजिश अपने अंजाम के बेहद करीब थी। एक महिला सब इंस्पेक्टर ने उसे दूर रहने को कहा पर राजीव गांधी ने उसे रोकते हुए कहा कि सबको पास आने का मौका मिलना चाहिए। उन्हें नहीं पता था कि वो जनता को नहीं मौत को पास बुला रहे हैं। नलिनी ने माला पहनाई, पैर छूने के लिए झुकी और बस साजिश पूरी हो गई और इस तरह देशवासियों ने असमय ही अपने चहेते नेता राजीव गांधी को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया।