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मजदूरों को काम दिलाने पर होगी बातचीत, विदेश मंत्री जयशंकर करेंगे चर्चा
कई दशकों से कतर में कफाला रोजगार प्रणाली लागू थी जिसे इसी साल खत्म किया जा रहा है। कफाला एक तरह का वहां पर नौकरी देने वाले और नौकरी करने वाले के बीच समझौता होता था।
नई दिल्ली: कतर ने हाल ही में श्रम सुधार किया है, जिसकी वजह से वहां काम करने वाले भारतीय कामगारों को भारत वापस लौटना पड़ा था। विदेश मंत्री जयशंकर अपनी क़तर यात्रा के दौरान इस मसले पर बातचीत करेंगे।
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काफला सिस्टम
कई दशकों से कतर में कफाला रोजगार प्रणाली लागू थी जिसे इसी साल खत्म किया जा रहा है। कफाला एक तरह का वहां पर नौकरी देने वाले और नौकरी करने वाले के बीच समझौता होता था। इसमें जो व्यक्ति वहां कफाला के तहत नौकरी करने के लिए जा रहा है वो वहां पहुंचने के बाद सिर्फ वही काम करेगा जिसके लिए वो क़तर गया है। वह कोई दूसरा काम नहीं कर सकता है। अगर किसी वजह से श्रमिक वो काम नहीं करना चाहता तो उसे काम बदलने के लिए भी अपने मालिक की इजाजत लेनी होगी, उसके बाद ही वो कतर में कोई दूसरा काम कर पाएगा। इस सिस्टम के तहत कामगारों के पास रोजगार के अन्य विकल्प नहीं होते थे।
नौकरी बदलने के अलावा यदि श्रमिक को किसी वजह से देश छोड़ना पड़ रहा है, तो उसके लिए भी उसे अपने मालिक या कंपनी से इजाजत लेनी पड़ती है। 2018 में आंशिक तौर कफाला को खत्म कर दिया गया था। कफाला के तहत कतर में काम करने वाले सभी विदेशी कामगारों को एक स्थानीय प्रायोजक की जरूरत होती है। यह कोई व्यक्ति भी हो सकता है और कोई कंपनी भी।
बदल पाएंगे नौकरी
कफाला सिस्टम की समाप्ति के बाद अब श्रमिक अपने करार खत्म होने से पहले अपने मौजूदा मालिक की इजाजत लिए बिना नौकरी बदल सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक अब प्रवासी श्रमिक करार खत्म होने के पहले नौकरी बदल पाएंगे। आईएलओ का कहना है कि कतर ने श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन के रूप में एक हजार कतरी रियाल की राशि तय की है। न्यूनतम वेतन नियम के तहत नियोक्ताओं को अपने श्रमिकों को रहने और खाने का भत्ता भी देना होगा, अगर वे इन्हें मुहैया नहीं करा रहे हैं।
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पेंच भी है
काफला ख़त्म होने के बाद कुछ पेंच भी हैं। अगर कोई कामगार बिना इजाजत नौकरी बदलता है तो उसके पुराने मालिक के पास इतने अधिकार होंगे कि वो ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करा सकता है। ऐसे में काफला ख़त्म करने का कोई मतलब नहीं रह जाता। बाकी खाड़ी देशों की ही तरह कतर को भी लाखों प्रवासी मजदूरों पर निर्भर रहना पड़ता है। प्रवासी मजदूर ज्यादातार भारत, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आते हैं।
रिपोर्ट- नीलमणि लाल
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