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राहुल की गलतीः संघ प्रमुख पर किया गया हमला कर गया 'बूमरैंग'
संघ प्रमुख मोहन भागवत पर आरोप लगाने की जल्दबाजी में राहुल गांधी बड़ी चूक कर बैठे। उन्होंने संघ प्रमुख के हिंदी में दिए भाषण पर गौर नहीं किया। भाषण के जिस अंश को आधार बनाकर ट्वीट किया गया है, उसमें उन्होंने एक बार भी यह नहीं कहा है कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया है।
योगेश मिश्र
विदेश से पढ़ाई करके लौटने के बाद महात्मा गांधी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, " दुनिया से कह दो गांधी अंग्रेज़ी नहीं जानता है।" डॉ राम मनोहर लोहिया लोहिया को भी शायद ही किसी ने सार्वजनिक तौर पर अंग्रेज़ी में बात करते हुए सुना हो। दीनदयाल उपाध्याय भी संवाद के लिए हिंदी भाषा का ही प्रयोग करते थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सार्वजनिक तौर पर अंग्रेज़ी का देश में इस्तेमाल करने वालों में जिन्ना व डॉ. भीमराव अम्बेडकर का नाम आता है।
हिन्दी अंग्रेजी साथ नहीं
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की पढ़ाई के दौरान हमारे एक प्रोफ़ेसर थे, आनंद जी, वह कहा करते थे कि हिंदी और अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र एक साथ मत बैठा करो। दोनों को अलग अलग पढ़ाना हमारे लिए आसान है। एक साथ बैठने पर हिंदी-अंग्रेज़ी, अंग्रेज़ी- हिंदी करते समय हमें दिक़्क़त होती है। कई बार गलती हो जाने का ख़तरा रहता है। यह बात सही है।
यह गलती कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने बीते दिनों कर दी। एक अंग्रेज़ी समाचार एजेंसी के एक ट्विट को अंग्रेज़ी- हिंदी करने में उनसे ऐसी चूक हुई कि वह संघ प्रमुख मोहन भागवत के विजया दशमी के दिन दिये गये भाषण की ग़लत व्याख्या कर बैठे।
उन्होंने इसी को आधार बना कर संघ और केंद्र की मोदी सरकार पर भारत की जमीन पर चीनी कब्जे को लेकर हमला बोल दिया। कहा, "चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा किया। प्रधानमंत्री व संघ प्रमुख चुपचाप देखते रहे। दोनों की मौन सहमति से ही चीन ने भारत की जमीन कब्जाई है।"
राहुल की बड़ी चूक
पर संघ प्रमुख पर आरोप लगाने की जल्दबाजी में राहुल गांधी बड़ी चूक कर बैठे। उन्होंने संघ प्रमुख के हिंदी में दिए भाषण पर गौर नहीं किया। भाषण के जिस अंश को आधार बनाकर ट्वीट किया गया है, उसमें उन्होंने एक बार भी यह नहीं कहा है कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया है।
क्या कहा था संघ प्रमुख ने
" कोरोना ने हमको रोक दिया। लेकिन जीवन को तो नहीं रोक सका। जीवन की अनेक बातें चलती रहीं। अब यह सारी कोरोना महामारी में चीन का नाम आता है। यह पुष्ट नहीं है। संदेह किया जा रहा है। पता नहीं सत्यता कितनी है। शंकाएं हैं। लेकिन चीन ने इस कालावधि में अपने और सामरिक बल के गर्व में, अभिमान में, हमारी सीमाओं का जो अतिक्रमण किया और जिस प्रकार व्यवहार किया, और कर रहा है, केवल हमारे साथ नहीं, सारी दुनिया के साथ। वह तो सारी दुनिया के सामने स्पष्ट है। उसका स्वभाव विस्तारवादी है, यह सब लोग जानते हैं। लेकिन इस बार जैसे उसने एक साथ ताइवान, अमेरिका, जापान, भारत के साथ -साथ ही, एक साथ झगड़ा मोल लिया है। कुछ उसके अपने कारण होंगे। लेकिन और एक अंतर ऐसा है कि इस बार भारत ने जो प्रतिक्रिया दी उसके कारण वह सहम गया, धक्का मिला उसे। क्योंकि भारत तन के खड़ा हो गया। भारत की सेना ने अपनी वीरता का परिचय दिया। भारत के नागरिकों ने अपनी देशभक्ति का परिचय दिया। सामरिक व आर्थिक दोनों दृष्टि से वह ठिठक जाए, इतना धक्का तो उसे मिला। उसके चलते दुनिया के बाकी देशों ने भी चीन को अब डांटना शुरू किया है।"
अंग्रेजी भाषा से समस्या
अंग्रेज़ी भाषा ऐसी समस्या खड़ी कर सकती है। यह इत्तिला स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ रहे लोगों को ज़रूर रही होगी। इसलिए स्वतंत्रता सेनानियों की मातृ भाषा चाहे जो रही हो पर उन्होंने हिंदी को ही बातचीत का आधार बनाया।
वह जानते थे कि गोरे इतने चतुर सुजान हैं कि वह अंग्रेज़ी में की जाने वाली बातचीत का कोई शरारतपूर्ण तर्जुमा पेश कर सकते हैं। जिससे नेता की छवि आम जनता की निगाह में खऱाब हो जाये।
वैसे भी भारत जैसे बहुभाषी देश में अंग्रेज़ी संप्रेषण की भाषा नहीं बन सकती। जिन देशों ने तरक़्क़ी के कीर्तिमान बनाये हैं, उन्होंने अपनी मातृ भाषा को ही आधार बनाया है।
कब होती है विफलता
विदेशी भाषा देशी विचार व संस्कार को व्यक्त करने में कई बार विफल होती है। जैसे हमारे यहाँ धर्मनिरपेक्षता को सेकुलरिज्म बताया गया। धर्म को रिलीजन।
बीते दिनों यानी 22 अक्टूबर, 2020 को इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र ने पेज 7, कालम 8 में भारत के संविधान की प्रस्तावना पर प्रोफेसर राजमोहन गांधी का एक लेख भारत के संविधान की प्रस्तावना में समानता और स्वतंत्रता के साथ अग्रेंजी शब्द ‘फ्रेटर्निटी’ (fraternity) लिखे जाने पर प्रकाशित किया।
राजमोहन गांधी ने लिखा है कि यह अधूरे अर्थवाला है। यह पुल्लिंग वाला शब्द हैं। स्त्री इसमें समाहित नहीं हैं। इसके शाब्दिक अर्थ हैं ‘भाई-चारा।’बहनों के लिए शब्द होगा "Sorority"।
बंधुत्व का अंग्रेजी पर्याय क्या
संविधान की नागरी लिपि में लिखी प्रस्तावना में शब्द ‘बंधुत्व’ज्यादा समावेशी हैं। अब शब्द फ्रेटर्निटी का सही विकल्प अथवा शब्द ‘बन्धुत्व’का अंग्रेजी पर्याय खोजना होगा।
यें शब्द ‘फ्रेटर्निटी’ भारतीय राष्ट्रीय काग्रेंस के 1931 में कराची में हुए सम्मेलन में पारित मौलिक अधिकार वाले प्रस्ताव में नहीं था। इसे 1948 में डाँ भीमराव अम्बेडकर ने ‘लिबर्टी’और ‘इक्वालिटी’शब्दों के साथ जोड़ दिया था।
इसका हिन्दी अनुवाद ‘बन्धुत्व’ किया गया। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के अग्रेंजी- हिंन्दी शब्दकोष, 2012, में ‘फ्रेटर्निटी’ का अर्थ "भ्रातृ-भाव" दिया हैं । इसमें भी भगिनी का जिक्र नहीं हैं।
काशी नागरी प्रचारिणी सभा के हिन्दी शब्द सागर, सातवां भाग, पृष्ट 3334 में ‘बन्धुत्व’ की समावेशी परिभाषा हुई हैं। इन सबको राहुल गांधी को समझने की ज़रूरत है।
2020 मील का पत्थर
संघ प्रमुख ने अपने भाषण में 2020 को मील का पत्थर बताया। इसी साल 370 को नख दंत हीन किया जा सका। इसी साल नागरिकता संशोधन क़ानून आया, इसी साल अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शुरूआत हो गयी।
यह सब दब गया कोरोना आने के कारण। अधिक चर्चा कोरोना की ही रही। कोरोना से होने वाला प्रत्यक्ष नुकसान भारत में कम है। कोरोना से होने वाले नुकसान का आकलन कर शासन –प्रशासन ने जनता को इसके बारे में बताया। उपाय लागू किए।
फायदा भी हुआ
इसका परिणाम रहा कि जनता में जरूरत से ज्यादा भय आ गया लेकिन इसका फायदा हुआ कि जनता ज्यादा सावधान रही। सभी इसके प्रतिकार में लग गए। पहली बार देखने को मिला कि लोगों ने अपने लिए मदद लेने से पहले दूसरों की परवाह की और उनको सहायता दिलाई।
समाज के लोगों ने आगे बढक़र सहायता का दायित्व भी संभाला। जो लोग रोजगार के लिए लौट रहे हैं उनको रोजगार देना और रोजगार का प्रशिक्षण व रोजगार सृजन करना बड़ी जिम्मेदारी है।
संकट सभी ओर है। इस अवधि में जो विद्यालय बंद रहे उनके संचालकों के समक्ष भी संकट है। जितना बड़ा संकट कोरोना से आया उससे बड़ा समाज का सेवा रूप देखने को मिला।
बनावटी बातें बंद हुईं
कोरोना की वजह से हमारे जीवन में तमाम कृत्रिम बातें बंद हुई, इससे फायदा मिला। लोगों को पता चला कि इसके बगैर भी जीवन चल सकता। विवाह संस्कार में भीड़ कम हुई। लाखों रुपये के खर्च की बचत हुई।
हवा में ताजगी महसूस हुई, नदी –नाले स्वच्छ हुए। अनके प्रकार के पक्षी पशु हमने घर की खिडक़ी के बाहर देखे। अपने सांस्कृतिक रीति रिवाज, संस्कार, पुराने व्यवहार का ध्यान आया।
इससे ध्यान में आया कि पुराना जो उपयोगी है हमने छोड़ दिया था। अब वह वापस हमें मिल गया है। कुटुंब व्यवस्था की महत्ता, पर्यावरण के साथ मिल बनकर रहने की समझ की ओर हमारा ध्यान गया और यह हमें मिल गया। कोरोना की मार ने कुछ सार्थकता की ओर हमारा ध्यान किया है।
चीन से बड़ा बनना होगा
जहां तक चीन का भारत के साथ व्यवहार है तो चीन से हमें बड़ा होना पड़ेगा, दूसरा उपाय नहीं है। इसलिए हमें अधिक सजग रहने की आवश्यकता है क्योंकि यह जो नहीं सोची थी उसने ऐसी परिस्थिति सबके सामने खड़ी कर दी। उसकी प्रतिक्रिया में वह क्या करेगा कोई नहीं जानता।
इसलिए इसका उपाय क्या है सतत सावधानी, सजगता और तैयारी। सामरिक तैयारी में, आर्थिक अपनी स्थिति में, अंतरराष्ट्रीय राजनय में अपने संबंधों में और पडोसी देशों के साथ अपने संबंधों में हमको चीन से शक्ति में, व्याप्ति में, हमें बड़ा होना पड़ेगा। दूसरा उपाय नहीं है।
हमको यह करते रहना पड़ेगा। ऐसा करेंगे तो हम चीन को रोक सकते हैं। पड़ोसी देश, ब्रहम देश ( म्यांमार) है । श्रीलंका है। बांग्लादेश, नेपाल है। यह केवल हमारे पड़ोसी थोड़े हैं यह तो हजारों वर्षों से हमसे संबंधित, हमारी प्रकृति वाले, हमारे स्वभाव वाले देश हैं। तो इनको साथ जल्दी हमें जोड़ लेना चाहिए।
चीन को मिला सबक
मतांतर तो होते हैं , मतभेद होते हैं विवाद के विषय भी होते हैं। सीमाएं जब लगती हैं तो विवाद होते ही हैं। घर एक-दूसरे के साथ लगता है तो कुछ तो विवाद थोड़ा बहुत रहता है। इन सारी समस्याओं से मनमुटाव न होने देते हुए हमको इनको दूर करने का प्रयास अधिक गति से करना होगा। क्योंकि हम तो सभी से मित्रता करने वाले हैं।
हमारा स्वभाव किसी से लड़ाई करने का नहीं है। लेकिन हम मित्रता करने वाले हैं, इसका मतलब हम दुर्बल नहीं हैं। हमारी मित्रता की वृत्ति को दुर्बलता समझकर और जो लोग ऐसा सोचते हैं कि हम इनको चाहे जैसे झुका सकते हैं इनको, हम चाहे जैसे इनको मोड़ सकते हैं उनकी गलतफहमी कम से कम अब तो दूर हो गई होगी।
हमारी सेना की देशभक्ति, वीरता , हमारे शासनकर्ताओं की आज की स्वाभिमानी नीति और भारत के लोगों का ऐसे प्रसंगों में एकजुट खडा होकर नीति, धैर्य के साथ आने वाली परिस्थिति का मुकाबला करना, चीन को यह पहली बार अनुभव मिला होगा। उससे उसको समझ जाना चाहिए।
इतने कच्चे हम नहीं
ऐसा मानस जो रखते हैं उनको सबको समझ जाना चाहिए कि इतने कच्चे हम नहीं है। ऐसी कोई भी परिस्थिति आएगी तो हम लोगों की तैयारी, सजगता और दृढ़ता किसी प्रकार कम नहीं पडेगी।
सारे राष्ट्र में आज यह हवा चल रही है। हमको उस सजगता को, उस सावधानी को उस एकता को बनाए रखना पडेगा और अपनी तैयारी को बढ़ाकर रखना पडेगा। क्योंकि एक चीन ही नहीं है जिससे हमें सावधान रहना पडेगा।
अपनी सीमाओं की वाह्य सुरक्षा जितनी महत्वपूर्ण है उसकी उसी दृष्टि से देशी की सुरक्षा की दृष्टि से ही आंतरिक सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। समाज की सावधानी, शासन –प्रशासन की तत्परता कितनी महत्वपूर्ण है सब ध्यान में आता हे। अपने यहां प्रजातंत्र है तो अनेक दल है। दल है तो विरोध है। परंतु इसमें भी एक विवेक है।
बात चुनाव की
चुनाव कोई दुश्मनों की लड़ाई नहीं है। लेकिन इन दांव पेच की वजह से समाज में दूरी बढ़ती है। विभाजन होता है। समाज के दो वर्गों में कटुता बढ़ती है। तो यह ठीक नहीं है। यह राजनीति नहीं है।
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ऐसी परिस्थिति का लाभ लेकर भारत को दुर्बल बनाने के लिए खंडित रखने के लिए , भारत के समाज को विभाजित मन –मुटाव भरा, भेदों से जर्जर समाज बनाने के लिए उत्सुक ऐसी शक्तियां है। भारत में भी हैं। दुनिया में भी हैं। भारत में उनके समर्थक भी हैं।
अपनी विविधताओं को बेहतर बताते हैं और आपस में झगड़ा लगाते हैं। समाज में ऐसी घटनाएं होनी नहीं चाहिए। अगर कभी हो भी तो शासन को ऐसे मामलों में तुरंत अपराधियों को पकड लेना चाहिए। उनको कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए समाज का इसमें सहयोग होना चाहिए।
मर्म को समझना होगा
जब संघ प्रमुख इस तरह की बातें कर रहे हों तो उन्हें पूरी तरह से सुनकर और कही बातों को मर्म समझे बगैर राहुल गांधी अगर अंग्रेजी की रिपोर्ट के आधार पर देश की विदेश नीति और आंतरिक स्थितियों पर टिप्पणी करेंगे तो इसका उलटा असर होना स्वाभाविक ही है। संघ प्रमुख पर बयान देकर राहुल ने ऐसा ही बूमरैंग कर डाला है जो उनकी गंभीरता पर सवाल खड़े कर गया है।