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Rahul Gandhi Convicted: राहुल गांधी ही नहीं अब तक इन नेताओं ने गंवाई सदस्यता, जानिए क्या था मामला

Rahul Gandhi Convicted: केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद राहुल के लिए राहत की बात ये है कि इससे उनकी संसद सदस्यता चली गई। इससे पहले भी कई नेता अपनी सदस्यता गंवा चुके हैं।

Krishna Chaudhary
Published on: 23 March 2023 8:21 PM IST (Updated on: 24 March 2023 8:42 PM IST)
Rahul Gandhi Convicted: राहुल गांधी ही नहीं अब तक इन नेताओं ने गंवाई सदस्यता, जानिए क्या था मामला
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Rahul Gandhi (photo: social media )

Rahul Gandhi Convicted: पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आपराधिक मानहानि केस में गुरुवार को दोषी करार दिए गए हैं। उन्हें सूरत की एक अदालत ने दो साल की सजा सुनाई है। केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद राहुल के लिए राहत की बात ये है कि इससे उनकी संसद सदस्यता खत्म कर दी गई है।

अब तक इन नेताओं ने गंवाई सदस्यता

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 107(1) ने देश के कई सियासी धुरंधरों को अपना शिकार बनाया है। कुछ के तो सियासी भविष्य पर ही ग्रहण लग चुका है। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिन बड़े नामों को इस कानून का खामियाजा भूगतना पड़ा उनमें राजद सुप्रीमो और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव और तमिलनाडु की दिवंगत पूर्व सीएम जयललिता शामिल हैं।

चारा घोटाले में सजा का ऐलान होते ही लालू यादव की संसद सदस्यता चली गई थी और उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई। लालू अभी तक इस सजा से उबर नहीं पाए हैं और चुनाव मैदान से एक तरह से गायब हो चुके हैं। वहीं, तमिलनाडु की छह बार की मुख्यमंत्री जयललिता को साल 2016 में आय से अधिक संपत्ति मामले में कोर्ट ने दोषी करार दिया था। उन्हें जब सजा सुनाई गई थी, तब वो राज्य की मुख्यमंत्री हुआ करती थीं। लिहाजा उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उनके चुनाव लड़ने पर 10 साल के लिए रोक लगाई गई थी।

यूपी में सजा पाने वाले चर्चित नेता

उत्तर प्रदेश के कई चर्चित सियासतदां जन प्रतिनिधित्व कानून के शिकार हो चुके हैं। इनमें सबसे ताजा नाम है, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान और उनके पुत्र अब्दुल्ला आजम का। दोनों बाप बेटे अपनी विधायकी से हाथ धो चुके हैं। आजम खान जहां हेट स्पीच के मामले में दोषी पाए गए थे। वहीं, उनका बेटा अब्दुल्ला फर्जी प्रमाण पत्र मामले में दोषी ठहराया गया। आजम की सीट रामपुर पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की। वहीं, अब्दुल्ला की स्वार टांडा सीट पर फिलहाल खाली है, उपचुनाव का ऐलान नहीं हुआ है।

कुलदीप सेंगर – चर्चित उन्नाव रेप केस में दोषी करार दिए गए बांगरमऊ से बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की भी सदस्यता 20 दिसंबर 2019 को चली गई थी। उन्हें उम्रकैद की सजा मिली हुई है।

रशीद मसूद – कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रशीद मसूद भी इस कानून का शिकार हो चुके हैं। एमबीबीएस सीट घोटाले में साल 2013 में कोर्ट ने उन्हें 4 साल की सजा सुनाई थी। उस दौरान वे यूपी से राज्यसभा एमपी हुआ करते थे। सजा के ऐलान के बाद उनकी संसद सदस्यता चली गई थी।

अशोक चंदेल – हमीरपुर से बीजेपी विधायक अशोक चंदेल की विधायकी साल 2019 में चली गई थी। उन्हें उस साल अप्रैल में हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

खब्बू तिवारी – अयोध्या की गोसाईंगंज सीट से बीजेपी विधायक रहे खब्बू तिवारी की सदस्यता भी साल 2021 में चली गई थी। उन्हें फर्जी मार्कशीट मामले में अदालत ने दोषी ठहराया था। उन्हें इस मामले में पांच साल की सजा सुनाई गई थी।

मित्रसेन यादव – 2009 में फैजाबाद सीट से समाजवादी पार्टी के सांसद बने मित्रसेन यादव को धोखाधड़ी के मामले में दोषी पाया गया था। उन्हें सात साल की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद उनकी संसद सदस्यता चली गई। हालांकि, यादव का 2015 में निधन हो गया था।

विक्रेम सैनी – मुजफ्फरनगर जिले की खतौली सीट से बीजेपी विधायक विक्रम सैनी को पिछले साल यानी 2022 में कवाल दंगे में दोषी पाया गया था। सजा के ऐलान के साथ ही उनकी विधायकी चली गई। पिछले साल हुए उपचुनाव में रालोद ने यह सीट बीजेपी से छिन ली थी।

इसी तरह पड़ोसी बिहार में बाहुबली अनंत सिंह को एक मामले में सजा मिलने के बाद विधायकी गंवानी पड़ी थी, जिसके बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी ने जीत हासिल की। इसके अलावा महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, झारखंड में भी माननीयों को अपनी विधायकी गंवानी पड़ी है।

क्या है जनप्रतिनिधित्व कानून ?

साल 2013 के जुलाई माह में सुप्रीम कोर्ट ने देश और राज्य की विधायिका में बैठे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले माननीयों के खिलाफ सख्त रूख अपनाते हुए एक फैसला सुनाया था। जिसके तहत किसी मामले में दो साल से अधिक सजा पाने वाले माननीयों की संसद या विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो जाएगी। इतना ही नहीं सजा की अवधि के दौरान उन्हें न तो चुनाव लड़ने का अधिकार होगा और न ही वोट डालने का। हालांकि, किसी जनप्रतिनिधि को किसी आपराधिक मामले में ऊपरी अदालत से राहत मिल जाती है तो उसकी संसद या विधानसभा की सदस्यता स्वतः वापस भी हो जाएगी।



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