Rahul Gandhi: वह अध्यादेश जो बचा सकता था राहुल को... जानें- क्या है पूरा मामला

Rahul Gandhi: 10 जुलाई, 2013 के एक ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार है, जिसने उस पिछली स्थिति को नकार दिया था जिसमें दोषी सांसदों, विधायकों, एमएलसी को तब तक अपनी सीट बरकरार रखने की अनुमति दी गई थी जब तक कि वे सर्वोच्च न्यायालय तक सभी न्यायिक उपायों को समाप्त नहीं कर देते।

Neel Mani Lal
Published on: 23 March 2023 9:54 PM GMT (Updated on: 24 March 2023 2:42 PM GMT)
Rahul Gandhi: वह अध्यादेश जो बचा सकता था राहुल को... जानें- क्या है पूरा मामला
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rahul gandhi torn representative bill (Photo-Social Media)

Rahul Gandhi: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत द्वारा आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराए जाने के बाद "तत्काल अयोग्यता" का सामना करना पड़ सकता है। यह 10 जुलाई, 2013 के एक ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार है, जिसने उस पिछली स्थिति को नकार दिया था जिसमें दोषी सांसदों, विधायकों, एमएलसी को तब तक अपनी सीट बरकरार रखने की अनुमति दी गई थी जब तक कि वे सर्वोच्च न्यायालय तक सभी न्यायिक उपायों को समाप्त नहीं कर देते।

मनमोहन सिंह की सरकार

जब सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला आया था तब मनमोहन सिंह सरकार सत्ता में थी। मनमोहन सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अध्यादेश लाई ताकि नेताओं को चुनाव लड़ने के योग्य बरकरार रखा जा सके। लेकिन राहुल गाँधी इसके खिलाफ थे और उन्होंने उस अध्यादेश की सार्वजानिक रूप से आलोचना की। यही नहीं, राहुल ने अध्यादेश को फाड़ कर अपना विरोध जताया था। अंततः सरकार को इसे वापस ले लिया था।

क्या था मामला

वह मामला लिली थॉमस बनाम भारत संघ का था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि "कोई भी सांसद, विधायक या एमएलसी जिसे अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम दो साल की जेल की सज़ा दी जाती है, वह तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता खो देता है।“ सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के उस उप खंड को रद्द कर दिया था, जिसमें सजा को चुनौती देने के लिए दोषी सांसदों और विधायकों को तीन महीने का समय दिया गया था और इस बीच उनकी अयोग्यता को स्थगित रखा गया था। अदालत ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी सजा के खिलाफ अपील करने की अनुमति को "असंवैधानिक" बताया था।

दो महीने बाद, यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नकारने के लिए एक अध्यादेश पारित किया। इसे चारा घोटाला मामले में दोषी साबित होने पर राजद सुप्रीमो और कांग्रेस के सहयोगी लालू प्रसाद को अयोग्यता से बचाने के कदम के रूप में देखा गया था। इसके अलावा, कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद राशिद मसूद पहले से ही भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी थे और तत्काल अयोग्यता का सामना कर रहे थे। भाजपा और वाम दलों सहित उस समय के विपक्ष ने अध्यादेश को लेकर मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस की कड़ी आलोचना की थी और दोषी सांसदों को बचाने का आरोप लगाया था।

राहुल ने चौंकाया

अध्यादेश पारित होने के कुछ दिनों बाद, 27 सितंबर को राहुल दिल्ली में पार्टी की एक प्रेस ब्रीफिंग में नाटकीय रूप से पहुंचे और वहां सार्वजनिक रूप से यूपीए सरकार को अध्यादेश लाने पर फटकार लगाते हुए इसे "पूरी तरह से बकवास" बताया और कहा कि इसे फाड़कर फेंक दिया जाना चाहिए।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गाँधी ने कहा - मैं आपको बता रहा हूं कि आंतरिक रूप से क्या हो रहा है। हमें राजनीतिक विचारों के कारण ऐसा अध्यादेश लाने की जरूरत है। हर कोई ऐसा करता है। कांग्रेस पार्टी ऐसा करती है, भाजपा ऐसा करती है, जनता दल ऐसा करती है, समाजवादी पार्टी ऐसा करती है और हर कोई ऐसा करता है. और इस बकवास को रोकने का समय आ गया है। उन्होंने आगे कहा - मुझे वास्तव में लगता है कि अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल इस प्रकार के समझौते करना बंद कर दें क्योंकि अगर हम वास्तव में इस देश में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं, चाहे वह हम हों - कांग्रेस पार्टी या भाजपा - हम इन छोटे-छोटे समझौतों को जारी नहीं रख सकते। मुझे दिलचस्पी है कि कांग्रेस पार्टी क्या कर रही है, मुझे दिलचस्पी है कि हमारी सरकार क्या कर रही है और मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है, जहां तक इस अध्यादेश का संबंध है, हमारी सरकार ने जो किया है वह गलत है।

दरअसल, राहुल गाँधी यूपीए सरकार की कथित चूक से खुद को दूर करने का प्रयास कर रहे थे। 2014 के चुनावों में एक साल से भी कम समय बचा था और सरकार कथित 2 जी घोटाला और अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले जैसे भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही थी। राहुल को उम्मीद थी कि उनके द्वारा उच्च नैतिक स्टैंड लेने से पार्टी को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। लेकिन परिणाम इसके विपरीत रहा।

राहुल द्वारा सार्वजानिक रूप से अध्यादेश की आलोचना किये जाने की घटना उस समय हुई जब मनमोहन सिंह अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर थे। लोगों में एक संकेत ये गया कि सरकार और पार्टी में अलग-अलग दिशाओं में खींचातानी चल रही थी।

राहुल की नाराजगी के एक दिन पहले, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की थी और एक ज्ञापन सौंपकर अध्यादेश को वापस लेने की मांग की थी। राष्ट्रपति ने तब कानून मंत्री, गृह मंत्री और संसदीय मामलों के मंत्री को तलब किया था और उनसे पूछा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश को रद्द कर दिया तो सरकार क्या करने की योजना बना रही है। कथित तौर पर मंत्री बैठक से वापस आ गए और विचार कर रहे थे कि क्या मंत्रिमंडल को अध्यादेश पर पुनर्विचार करना चाहिए और इसे वापस लेना चाहिए। माना जाता है कि राहुल ने इस संबंध में पीएम को एक पत्र भेजा था, लेकिन कथित तौर पर वह मनमोहन सिंह के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना अपनी नाटकीय प्रेस कॉन्फ्रेंस करने चले गए।

झुक गयी सरकार

बाद में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ अपनी बैठक से ठीक पहले जारी एक बयान में, मनमोहन सिंह ने कहा - कैबिनेट द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम से संबंधित अध्यादेश बहुत सार्वजनिक बहस का विषय रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने इस मुद्दे पर मुझे पत्र भी लिखा है और बयान भी दिया है। सरकार इन सभी घटनाक्रमों को देख रही है। मेरे भारत लौटने के बाद सभी मुद्दों पर विचार किया जाएगा। 2 अक्टूबर को भारत लौटने के बाद, मनमोहन सिंह ने कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक से पहले राहुल से मुलाकात की जहाँ यह निर्णय लिया गया कि सरकार के लिए अध्यादेश वापस लेना बेहतर होगा। और अगले दिन सरकार ने अध्यादेश वापस ले लिया।

क्या कहता है कानून

अदालत द्वारा राहुल गांधी को दो साल की जेल की सजा सुनाए जाने के साथ राहुल गाँधी को लोकसभा से तत्काल अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता है और जब तक उच्च न्यायालय द्वारा सजा पर स्टे नहीं लगाया जाता तब तक वे अयोग्य रहेंगे। तब तक राहुल लोकसभा में उपस्थित नहीं हो पाएंगे क्योंकि मौजूदा कानून के तहत उनकी अयोग्यता उनकी दो साल की सजा के साथ तुरंत शुरू हो जाती है।

अयोग्य घोषित करने के मामले में यह अध्यक्ष को तय करना है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 में सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रावधान है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (3) स्पष्ट रूप से कहती है कि किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए और कम से कम दो साल के कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति को इस तरह की सजा की तारीख से अयोग्य घोषित किया जाएगा और उसकी रिहाई के बाद अगले छह साल की अवधि के लिए अयोग्य रहेगा। ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला तुरंत राहुल गांधी को अयोग्य ठहराने वाली अधिसूचना जारी कर सकते हैं और वायनाड सीट को खाली घोषित कर सकते हैं लेकिन यह सिर्फ एक औपचारिकता होगी।

Neel Mani Lal

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