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राजस्थान संकटः शेखावत ने छेड़ा ट्वीट वार, सीएम गहलौत ने बुलाई बैठक

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने पत्र लिखकर सीएम अशोक गहलोत से कहा था कि इससे पहले कि मैं विधानसभा सत्र के संबंध में विशेषज्ञों से चर्चा करता, आपने सार्वजनिक रूप से कहा कि यदि राजभवन घेराव होता है तो यह आपकी जिम्मेदारी नहीं है।

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Published on: 25 July 2020 12:14 PM IST
राजस्थान संकटः शेखावत ने छेड़ा ट्वीट वार, सीएम गहलौत ने बुलाई बैठक
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जयपुर: राजस्थान की जनता को अभी स्थिर सरकार मिलने में लगता है की अभी बहुत समय है। बीते दिन राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले ने सीएम गहलोत की बेचैनी बढ़ा दी थी। जिसके बाद वे अपने दल-बल के साथ राजभवन पहुंचे थे। उन्होंने राज्यपाल से विधानसभा सत्र बुलाए जाने की मांग की थी जिसकी अभी मंजूरी नहीं दिए जाने पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। शुक्रवार को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कैबिनेट की बैठक बुलाई थी। आज उन्होंने मंत्रिपरिषद की बैठक बुलाई है।

शेखावत ने किया तंज वाला ट्वीट, सीएम गहलोत पर साधा निशाना

वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने शनिवार को राजस्थान के मौजूदा हालात पर ट्वीट करके मुख्यमंत्री गहलोत पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'जहां राज्यपाल को स्वयं मुख्यमंत्री धमका कर असुरक्षित महसूस करवाए, वहां चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या और हिंसक झड़पों से त्रस्त राजस्थान वासियों को मुख्यमंत्री के आगे अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगाना बेकार है।'

गृह मंत्रालय राज्यपाल की रक्षा नहीं कर सकता

बता दें कि राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने पत्र लिखकर सीएम अशोक गहलोत से कहा था कि इससे पहले कि मैं विधानसभा सत्र के संबंध में विशेषज्ञों से चर्चा करता, आपने सार्वजनिक रूप से कहा कि यदि राजभवन घेराव होता है तो यह आपकी जिम्मेदारी नहीं है। यदि आप और आपका गृह मंत्रालय राज्यपाल की रक्षा नहीं कर सकता तो राज्य में कानून-व्यवस्था का क्या होगा? राज्यपाल की सुरक्षा के लिए किस एजेंसी से संपर्क किया जाना चाहिए? मैंने कभी किसी सीएम का ऐसा बयान नहीं सुना। क्या यह एक गलत प्रवृत्ति की शुरुआत नहीं है, जहां विधायक राजभवन में विरोध प्रदर्शन करते हैं?

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सत्र आयोजित करने का कोई औचित्य नहीं

23 जुलाई की रात को राज्य सरकार ने शॉर्ट नोटिस पर विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए एक पेपर प्रस्तुत किया था। पेपर का विश्लेषण किया गया और कानूनी विशेषज्ञों से इस पर सलाह ली गई थी। शॉर्ट नोटिस पर सत्र आयोजित करने का कोई औचित्य नहीं है और न ही इसके लिए कोई एजेंडा प्रस्तावित किया गया है। सामान्य प्रक्रियाओं के अनुसार सत्र के लिए 21 दिन के नोटिस की आवश्यकता होती है। राज्य सरकार को सभी विधायकों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी चाहिए।



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