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किसानों की नाराजगी: इसे दूर कर सकती है सरकार, बस कुछ विकल्पों को अपना ले
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार के पास कुछ विकल्प हैं जिनको अपना कर बात बनायी जा सकती है। ऐसा करने से किसानों की आशंकाओं को शांत किया जा सकता है।
लखनऊ: नए कृषि क़ानून वापस लेने के फ़ैसले पर किसान संगठन और उनके समर्थन में उतारे तमाम राजनीतिक दल आरपार की लड़ाई के मूड में दिख रहे हैं। वहीं सरकार भी अपने स्टैंड से हटने को तैयार नहीं है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर किसानों को लिखित में आश्वासन देने के साथ साथ कई दूसरी माँगें मानने को तैयार है लेकिन नए कानून पूरी तरह वापस लिए जायें, ऐसा मुमकिन नहीं दिख रहा।
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तो फिर कोई और रास्ता है? एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार के पास कुछ विकल्प हैं जिनको अपना कर बात बनायी जा सकती है। ऐसा करने से किसानों की आशंकाओं को शांत किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फ़ूड कमिश्नर एनसी सक्सेना का तो कहना है कि सरकार क़ानून को वापस ना लेते हुए राज्य सरकारों पर छोड़ दे कि वो कब और कैसे इसे लागू करना चाहती है। पंजाब हरियाणा के अलावा बाक़ी राज्यों में जब ये लागू होता और उससे वहाँ के किसानों को फ़ायदा होता तो पंजाब के किसान ख़ुद इसे लागू करने को कहते।
एमएसपी
विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों की उपाज का सर्वोत्तम रिटर्न मिले, ये आश्वस्त करने के कई तरीके हैं। एक उपाय है प्राइस डेफिसिएंसी मेकेनिज्म जिसे मध्य प्रदेश में प्रयोग के तौर पर चलाया गया है। इस प्रणाली के तहत सरकार किसानों को बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच के अंतर का भुगतान करती है। ये एक तरह की मूल्य गारंटी है।
- कृषि विशेषज्ञ देवेन्द्र शर्मा का कहना है कि सरकार एक चौथा बिल या नया क़ानून लेकर आए, जो ये कहे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे ख़रीद नहीं होगी। इससे किसानों को न्यायिक अधिकार मिल जाएगा। किसानों की निश्चित आय की समस्या को दूर करने के लिए ज़रूरत है कि एमएसपी और किसान सम्मान निधि जैसी दोनों व्यवस्था साथ साथ चले।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री रह चुके सोमपाल शास्त्री का कहना है
- अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री रह चुके सोमपाल शास्त्री का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को एक गारंटी के तौर पर किसानों के लिए वैधानिक अधिकार बनाया जा सकता है। इसके अलावा कृषि लागत और मूल्य आयोग को संवैधानिक संस्था का दर्जा दिया जाए। इस आयोग का जो फ़सल लागत आंकलन का तरीक़ा है उसको औद्योगिक लागत के आधार पर संशोधित किया जाए। अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग से उपजाने वाले विवाद के निपटान के लिए ब्लॉक स्तर से लेकर जिला, राज्य और केंद्र स्तर पर अलग ट्रिब्यूनल बने, जिनको न्यायिक अधिकार मिले।
Farmer (PC: social media)
- एमएसपी के बारे में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन अलोक सिन्हा का कहना है कि शांता कुमार कमेटी ने कहा है कि केवल छह फ़ीसदी किसान ही एमएसपी का लाभ ले पाते हैं। इंमें भी अधिकांश पंजाब और हरियाणा के हैं सो यहाँ के किसानों को दूसरी फ़सल (सब्ज़ी, दूसरे दहलन) उगाने के लिए केंद्र सरकार को प्रेरित करना चाहिए। पंजाब में धान की खेती इतनी ज़्यादा हो रही है क्योंकि सब एमएसपी पर फ़सल बिक जाती है। सरकार को किसानों को इसके लिए मनाना होगा. उसके लिए नए स्कीम बनाने होंगे। इससे किसानों की आय भी दोगुनी होगी और सरकार को धान, गेहूं अतिरिक्त मात्रा में ख़रीदना भी नहीं होगा।
पराली का मसला
किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए सरकार ने भरी जुर्माने और सजा का प्रावधान किया हुआ है जिससे किसान नाराज हैं। किसान सरकार से पराली या पुआल के निपटान के लिए प्रति क्विंटल 200 रुपये की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि सरकार किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल मूल्य देने पर विचार करे। यह देखते हुए सरकार एक केंद्रीय सब्सिडी योजना ला सकती है। इसके तहत पराली को जलाने से रोकने के लिए प्रति क्विंटल धान खरीद के लिए सरकार किसानों के खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करे। इससे किसान प्रदूषण के खिलाफ नए कानून की आशंकाओं से बाहर आ सकते हैं।
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बाजार
नए कानूनों के तहत प्रस्तावित मुक्त बाजार में व्यापारियों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है। किसानों को चिंता है कि राज्य सरकारों की मंडियों से प्रतिस्पर्धा के तहत मुक्त बाजार के कदम से पारंपरिक बाजार (यानी मंडियां) खत्म हो सकते हैं। पारंपरिक बाजार राज्य के राजस्व का एक बड़ा स्रोत भी होते हैं। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री आरएस मणि के अनुसार सरकार नए कानूनों के तहत यह नियम ला सकती है कि सरकारी खरीद पारंपरिक बाजारों से अनिवार्य रूप से की जाएगी जबकि अन्य निजी व्यापार मंडियों से बाहर भी किया जा सकेगा। यह कदम भविष्य में यह दिखाएगा कि कौन सा बाजार किसानों के लिए बेहतर हो सकता है।
रिपोर्ट- नीलमणि लाल
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