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Same Sex Marriage: 'शादी के लिए क्या महिला-पुरुष होना ही जरूरी?', SC ने कहा- अयोध्या मामले की तर्ज पर होगी सुनवाई
Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। सुनवाई के तीसरे दिन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि, क्या शादी के लिए पति-पत्नी का लड़का या लड़की होना जरूरी है?
Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में गुरुवार (20 अप्रैल) को तीसरे दिन भी सुनवाई हुई। आज हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता की दलील सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर कई टिप्पणियां की। समलैंगिक विवाह पर कई वरिष्ठ वकील सुनवाई में शामिल हुए। सभी ने अपना-अपना पक्ष रखा।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने इस दौरान सवाल किया कि, 'क्या शादी के लिए दो अलग-अलग लिंग का होना जरूरी है?' सीजेआई ने इस दौरान कई अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा, समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि इमोशनल रिश्ता है। उन्होंने कहा, 69 साल पुराने मैरिज एक्ट के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं है। अब ये रिश्ता हमेशा के लिए टिके रहने वाले हैं।' आपको बता दें, पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई का लाइव प्रसारण सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट और यूट्यूब पर जारी है। जिसे कोई भी देख सकता है।
CJI ने कहा- अयोध्या मामले की तरह होगी सुनवाई
सेम सेक्स मैरिज पर शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान गुरुवार को चीफ जस्टिस ने कहा, समलैंगिक शादी के लिए पुराने स्पेशल मैरिज एक्ट (special marriage act) के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं है। उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट जिस तरह से अयोध्या मामले की सुनवाई की थी, ठीक उसी प्रकार इस मामले की भी सुनवाई करेगा। कोर्ट ने आज सुनवाई की पूरी रूपरेखा तय कर दी। जिसके आधार पर अब आगे की सुनवाई होगी। अदालत ने कहा कि, हम केवल इतना देखेंगे कि स्पेशल मैरिज एक्ट में समलैंगिक शादी की व्याख्या की जा सकती है?
'नैतिकता का ये मुद्दा 1800 के दशक में आया'
कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता राजू रामचंद्रन (Advocate Raju Ramachandran) ने जस्टिस विवियन बोस (Justice Vivian Bose) की टिप्पणी का भी जिक्र किया। वहीं, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए कहा, नैतिकता का ये मुद्दा 1800 के दशक में आया था। याचिकाकर्ता ने आगे कहा, भारतीय ग्रंथों को देखें तो सैकड़ों साल पहले दीवारों पर कई तस्वीरों को चित्रित किया गया था।
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केंद्र-मुस्लिम लॉ बोर्ड का विरोध,...हमें भी जीने का अधिकार
समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को लेकर एक तरफ जहां कानून बनाए जाने की मांग हो रही है। वहीं, केंद्र सरकार और मुस्लिम लॉ बोर्ड इसका विरोध कर रहे हैं। समलैंगिक विवाह के संबंध में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वो भी इस देश के नागरिक हैं। उन्हें भी सम्मान और समानता के साथ जीवन जीने का अधिकार है। जबकि, केंद्र ने सुनवाई के पहले दिन ही सुप्रीम कोर्ट से कहा था, कानून बनाना संसद का काम है। कोर्ट इस केस को नहीं सुन सकती। लेकिन अदालत ने कहा, पहले हमें याचिकाकर्ता को सुनने दें। जिसके बाद मामले की सुनवाई शुरू हुई। मुस्लिम लॉ बोर्ड और केंद्र सरकार ने सुनवाई का कड़ा विरोध किया।
'पांच लोग कितने भी बुद्धिमान क्यों न हों...'
केंद्र सरकार की तरफ से देश के महाधिवक्ता अर्थात सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने अदालत में में कहा, 'पांच लोग कितने भी बुद्धिमान क्यों न हों, वह ये तय नहीं कर सकते कि देश के सुदूर कोने में बैठा एक किसान या व्यापारी क्या सोचता है?'
CJI हमने समलैंगिकता को अपराध से बाहर किया
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा, 'हमने इससे पहले भी समलैंगिकता को अपराध से बाहर किया है। हमने न केवल एक ही लिंग वयस्कों के बीच संबंधों को मान्यता दी, बल्कि हमने ये भी माना है कि जो लोग समान लिंग के हैं वे भी स्थिर संबंधों में होंगे। जो एक विवाह जैसा रिश्ता है। सीजेआई ने कहा, हम समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर स्वीकार करते हैं कि समलैंगिक संबंध केवल शारीरिक संबंध नहीं हैं, बल्कि एक स्थिर, भावनात्मक संबंध से कुछ अधिक बढ़कर है।'
LGBTQ भी विषमलैंगिक माता-पिता जितने ही योग्य
वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन (Senior Advocate KV Vishwanathan) ने तर्क दिया LGBTQ माता-पिता बच्चों को पालने के लिए उतने ही योग्य हैं, जितने विषमलैंगिक माता-पिता। इसी पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, समलैंगिक जोड़े शादी के समान लाभ चाहते हैं। सहवास और विवाह प्रदान करने वाले लाभों की एक पूरी श्रृंखला है। गौरतलब है कि, वकील रामचंद्रन ने कोर्ट में कहा था कि सेंट्रल एडॉप्शन रेगुलेशन अथॉरिटी के नियम किसी एक सदस्य को तब तक गोद लेने की अनुमति नहीं देते जब तक वो शादीशुदा न हों।