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Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर होगी सुनवाई
Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में आज तीसरे दिन भी सुनवाई होगी। केंद्र सरकार ने कहा, इस विषय पर देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को पत्र लिखकर उनकी राय मांगी गई है।
Same Sex Marriage: भारत में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग से संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ में गुरुवार (20 अप्रैल) को भी सुनवाई होगी। सेम सेक्स मैरिज के संबंध में दायर 20 याचिकाओं पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 अप्रैल से सुनवाई शुरू की। ये आगे भी जारी रहेगी।
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ (Constitution Bench) में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul), जस्टिस एस रविंद्र भट्ट (Justice S Ravindra Bhatt), जस्टिस पीएस नरसिम्हा (Justice PS Narasimha) और जस्टिस हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) शामिल हैं। इसके सामने केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (SG Tushar Mehta) हैं। जबकि, सीनियर लॉयर मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे हैं।
'अदालत को समाज से कहना होगा कि...'
समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को क़ानूनी मान्यता देने की मांग पर याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश करते हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने कहा, 'अगर देश को आगे बढ़ना है तो इस कोर्ट को पहल करनी होगी। अदालत को समाज से कहना होगा कि इस कलंक को दूर कीजिए। हठधर्मिता को दूर कीजिए। क्योंकि इस अदालत को नैतिक विश्वास हासिल है।' रोहतगी ने ये भी कहा कि, 'कभी-कभी कानून नेतृत्व करता है। लेकिन, कई ऐसे मौके भी आते हैं जब समाज नेतृत्व करता है। ये अदालत मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) की अंतिम रक्षक है। सुधार भी एक सतत प्रक्रिया है। कोई भी पूर्ण और समान नागरिकता से इनकार नहीं कर सकता, जो बिना विवाह, परिवार के होगी।'
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खजुराहो और पुरानी पुस्तकों में भी उल्लेख
मुकुल रोहतगी ने याचिकाकर्ताओं (Petitioners) की तरफ से दलील में कहा, 'मैं बेंच से किसी नए सिद्धांत का आह्वान नहीं कर रहा हूं। खजुराहो (Khajuraho) और हमारी पुरानी पुस्तकों में पहले से ही इसका उल्लेख मौजूद है। लेकिन, हम इस प्रक्रिया को अनाआपराधिक (decriminalize) होकर ही रह गया।'
केंद्र ने पत्र लिख राज्यों से मांगी राय
वहीं, केंद्र सरकार (Central government) ने बुधवार को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि समलैंगिक शादियों (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पक्ष बनाया जाए। सर्वोच्च न्यायालय में दायर हलफनामे (Affidavits) में केंद्र सरकार ने कहा कि, उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पत्र लिखा है। जिसमें इन याचिकाओं में उठाए गए 'मौलिक मुद्दों' (Fundamental Issues) पर उनकी टिप्पणियां और राय मांगी है।
जस्टिस भट ने पूछा- आखिर आप चाहते क्या हैं?
याचिकाकर्ता पक्ष से जस्टिस एस रविंद्र भट्ट (Justice S Ravindra Bhatt) ने पूछा, 'एक मुख्य भाग के लिए आप चाहते हैं कि यहां जेंडर 'न्यूट्रल' हो जाए। मगर, भाग- सी के लिए आप पुरुष और महिला में भेद को बनाए रखना चाहते हैं। पीठ ने मुकुल रोहतगी से पूछा, 'आप एक तर्क में महिला और पुरुष में भेद की बात कर रहे हैं। जबकि, दूसरे तर्क में जेंडर न्यूट्रल बनना चाह रहे। आखिर आप चाहते क्या हैं? क्या आप सिर्फ उन बातों को महत्व दे रहे हैं जो सिर्फ आपको सूट कर रहा है?
सिंघवी- प्यार को शादी में बदलने का मिले अधिकार
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) ने कोर्ट में कहा, 'सबसे महत्वपूर्ण इस वर्ग का भेदभावपूर्ण बहिष्कार केवल सेक्स और यौन अभिविन्यास पर है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'तो आप कह रहे हैं, राज्य किसी व्यक्ति के साथ उस विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है जिस पर किसी शख्स का कोई नियंत्रण नहीं है। सिंघवी ने जवाब में कहा, बिल्कुल। सीजेआई चंद्रचूड़ बोले, ये अपनी अभिव्यक्तियों में अधिक शहरी हो सकता है। क्योंकि, शहरी क्षेत्रों में अधिक लोग बाहर आ रहे हैं। सरकार की ओर से कोई आंकड़ा नहीं निकल रहा है कि यह शहरी है या कुछ और है। आगे अपनी दलीलों अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, प्यार को शादी में बदलने का अधिकार मिले।