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पाकिस्तान का समझौते पर वार, जानिए इसका 43 साल पुराना इतिहास

आर्टिकल 370 में संशोधन के बाद पाकिस्तान इसके विरोध पर उतर आया है। जिस वजह से भारत के साथ होने वाले व्यापार पर रोक लगाई गयी और उसके बाद दोनों देशों के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस को रोक दिया है। ये वो ट्रेन है भारत और पाकिस्तान को आपस में जोड़ती है।

Roshni Khan
Published on: 8 Aug 2019 4:49 PM IST
पाकिस्तान का समझौते पर वार, जानिए इसका 43 साल पुराना इतिहास
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नई दिल्ली: आर्टिकल 370 में संशोधन के बाद पाकिस्तान इसके विरोध पर उतर आया है। जिस वजह से भारत के साथ होने वाले व्यापार पर रोक लगाई गयी और उसके बाद दोनों देशों के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस को रोक दिया है। ये वो ट्रेन है भारत और पाकिस्तान को आपस में जोड़ती है। अभी कुछ ही महीने पहले ही पाकिस्तान ने बालाकोट भारतीय एयरस्ट्राइक के बाद इस ट्रेन पर रोक लगाई थी लेकिन मई में ये ट्रेन सेवा फिर शुरू हो गई थी। अब पाकिस्तान ने फिर इस सेवा पर रोक लगा दी।

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यह पहला मौका नहीं था जब समझौता एक्सप्रेस को भारत-पाक में तनाव की सुगबुहाट पर ही रोक लगा दी गई हो। इससे पहले 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमले के बाद भी समझौता एक्सप्रेस रोक दी गई थी। 27 दिसंबर 2007 को बेनजीर भुट्टो हमले के बाद इस ट्रेन को रोक दिया गया था। असल में भारत-पाक के बीच पहले भी रेल सेवा थी। जो समझौता एक्सप्रेस से ज्यादा व्यापक थी।

यह भारत-पाकिस्तान के बीच पहले ज्यादा बड़ी रेल सेवा थी। आजादी से पहले जो ट्रेन चलती थी उसे सिंध मेल कहते थे। साल 1892 में हैदराबाद-जोधपुर रेलवे के तहत इसे शुरू किया गया था।

43 साल पुराना इतिहास

इस ट्रेन का इतिहास 43 साल पुराना है। इसकी नींव 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुए दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुए शिमला समझौता में पड़ी। दोनों देशों ने आपस में फिर से रेल सेवा को बहाल करने पर सहमति जताई। दरअसल 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान इस रूट की पटरियां बेकार हो गई थीं। फिर इसका संचालन रोक दिया गया था। लेकिन 41 साल दोनों देशों ने इस ट्रेन की अहमियत को फिर समझा। आपसी सहमति से इसे 1976 में फिर शुरू कर दिया गया। जमराव, सैंदद, पिथारू ढोरो नारो, छोरे एवं खोखरापार आदि इसे प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। दोनों देशों में क्रमशः बाड़मेर और मीरपुर खास स्टेशनों पर हर यात्रा में इसकी विशेष जांच की जाती है।

22 जुलाई 1976 को अटारी-लाहौर के बीच शुरू करने का फैसला किया गया। शुरुआत में इसे रोज चलाया जाता था। लेकिन साल 1994 में इसके संचालन को हफ्ते में दो दिन ही कर दिया गया। शुरुआत में ये ट्रेन संचालन के दिन ही भारत भी लौट आती थी, लेकिन वर्तमान में यह अगले दिन भारत लौटती है। दोनों देशों में आखिरी सीमाई स्टेशन मुनाबाओ और खोखरापार हैं।

घोड़ागाड़ी से इसकी निगरानी करते हैं

भारत में यह ट्रेन दिल्ली से पंजाब स्थित अटारी तक जाती है। अटारी से वाघा बॉर्डर तक तीन किलोमीटर की सीमा पार करती है। इस दौरान बीएसएफ के जवान घोड़ागाड़ी से इसकी निगरानी करते हैं। आगे-आगे चलकर पटरियों की पड़ताड़ भी करते चलते है। सीमा पार करने के बाद यह ट्रेन पा‌किस्तान के लाहौर जाती है।

जब ये ट्रेन जारी थी तब ये भारत से यह दो बार- बुधवार व रविवार को पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से रात 11।10 बजे निकलती थी। इसके लिए पुरानी दिल्ली अलग से प्लेटफॉर्म बनाया गया है। इस ट्रेन में अंदर जाने से पहले गहन पड़ताल के बाद यात्रियों को इस ट्रेन में बिठाया जाता है। समझौता एक्सप्रेस में कुल छह शयनयान और एक वातानुकूलित तृतीय श्रेणी कोच होते हैं। कहा जाता है कि इसे भारतीय रेल की राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस व अन्य प्रमुख ट्रेनों के ऊपर तरजीह दी जाती है ताकि इसमें कोई देर ना हो।



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