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धर्म के लिए मरने-मारने पर उतारू, आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की उठी मांग
आदिवासी सेंगल अभियान के अध्यक्ष सालखन मुर्मू कहते हैं कि, भारत में विभिन्न भाषा एवं संस्कृति को फलने-फूलने की संवैधानिक व्यवस्था है लेकिन आदिवासियों को उनकी प्रकृति-पूजक संस्कृति और पद्धति को अबतक मान्यता नहीं मिली है।
झारखंड: झारखंड की पहचान जल, जंगल और ज़मीन के साथ ही आदिवासियों से जुड़ी है। आदिवासी मूर्ति पूजा के बजाय प्रकृति प्रेमी रहे हैं। हालांकि, आमतौर पर मान्यता रही है कि, आदिवासी कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। इनके रीति-रिवाज़ और मान्यताएं हिंदू धर्म के क़रीब रही हैं। पूजा-पाठ से लेकर रहन-सहन हिंदू धर्म से मिलता-जुलता रहा है। इन सबके बावजूद आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग की जा रही है। विभिन्न राजनीतिक दल आदिवासी संगठनों की मांगों का समर्थन करते आए हैं।
हालांकि, इसके पीछे वोटबैंक और राजनीति बड़ा कारण रही है। चुनावी घोषणा पत्रों में भी सरना धर्म कोड की वक़ालत की गई है। झारखंड विधानसभा के मॉनसून सत्र में भी इस प्रस्ताव पर चर्चा होने की बात कही गई थी लेकिन आखिरी मौका में इसे टाल दिया गया।
सरना धर्म कोड की मांग को लेकर चक्का जाम
केंद्रीय सरना समिति, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् और आदिवासी सेंगल अभियान ने राज्यव्यापी चक्का जाम किया है। चक्का जाम के तहत रांची समेत विभिन्न ज़िलों में सड़कों को बाधित किया गया है। केंद्रीय सरना समिति के फूलचंद तिर्की ने कहा कि, सरना धर्म कोड की मांग पूरी होने तक आंदोलन जारी रहेगा।
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आदिवासी सेंगल अभियान के अध्यक्ष सालखन मुर्मू कहते हैं कि, भारत में विभिन्न भाषा एवं संस्कृति को फलने-फूलने की संवैधानिक व्यवस्था है लेकिन आदिवासियों को उनकी प्रकृति-पूजक संस्कृति और पद्धति को अबतक मान्यता नहीं मिली है।
लिहाज़ा, अपनी धार्मिक पहचान और मान्यता के लिए शांतिपूर्ण तरीके से जन आंदोलन चलाया जा रहा है। आदिवासी संगठनों ने राज्य सरकारों से मांग की है कि, सरना धर्म कोड की मान्यता पर अगर कोई सकारात्मक निर्णय नहीं होता है तो आगामी 6 दिसंबर को राष्ट्रव्यापी रेल-रोड चक्का जाम किया जाएगा।
आदिवासियों के साथ खड़ी है राज्य सरकार
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार सरना धर्म कोड के पक्ष में दिखाई पड़ती है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट भी किया है कि, राज्य सरकार एक प्रस्ताव बनाकर केंद्र को भेजेगी। प्रस्ताव में आग्रह किया जाएगा कि, जनगणना 2021 के दौरान आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का कॉलम दिया जाए। आदिवासी संगठनों की मांग थी कि, मॉनसून सत्र में ही प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा जाए। हालांकि, ऐसा नहीं हो पाया।
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लिहाज़ा, संगठनों ने विशेष सत्र बुलाकर प्रस्ताव पारित करने की मांग की। इसे भी अमल में नहीं लाया गया। हालांकि, केंद्र सरकार पहले ही आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड के प्रस्ताव को ठुकरा चुकी है।
सरना धर्म कोड और राजनीति
सरना धर्म कोड को लेकर राजनीति भी खूब होती रही है। आदिवासी समाज को अपने पाले में करने के लिए राजनीतिक दल गाहे-बगाहे इसका समर्थन करते रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव भी सरना धर्म कोड को लेकर बोलते रहे हैं। उन्होने आश्वासन भी दिया था कि, झारखंड विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा जाएगा लेकिन इसपर राज्य सरकार ने अलम नहीं किया। सरकार के इस रुख से आदिवासी संगठनों में नाराज़गी है।
रांची से शाहनवाज़ की रिपोर्ट।