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सारनाथ का आखिरी वैभव, 'धर्म चक्र जीन' बौद्ध महाविहार
प्राचीन बौद्ध स्तपों, विहारो, मंदिरों व खंडहरों को अपने आंचल में समेटी विश्व प्रसिद्ध सारनाथ को दुनिया के सामने लाने का श्रेय अंग्रेज इतिहासकार एलेग्जेंडर कनिंघम को जाता है।
दुर्गेश पार्थसारथी
प्राचीन बौद्ध स्तपों, विहारो, मंदिरों व खंडहरों को अपने आंचल में समेटी विश्व प्रसिद्ध सारनाथ को दुनिया के सामने लाने का श्रेय अंग्रेज इतिहासकार एलेग्जेंडर कनिंघम को जाता है। इन्होंने सन 1835-36 में इस स्थान पर खुदाई करवाते हुए प्राचीन भातर के इतिहास पर जमीं वक्त की धूल को हटा सारनाथ के महत्व को पूरी दुनिया के सामने उजागर किया। सारनाथ की खुदाई से तीसरी शताब्दी ईर्पू. से लेकर 12वीं शतब्दी ई तक के पुरावशेषों का विशाल भंडार एक साथ एक स्थान से एक-एक कर प्राप्त हुआ।
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सारनाथ संभवत
दुनिया पहला ऐसा ऐतिहासिक स्थल हे जो विभिन्न काल खंडों के इतिहास को एक साथ अपने सीने में दफन किए हुए है। इस स्थान से बौद्ध, जैन एवं हिंदू देवी देवताओं की असंख्य कलात्मक व आकर्षक पाषाण मर्तियां जो मर्य सम्राट आशोक से लेकर शंग, गुप्त, कुघाण एवं गाहडवाल राजवंशों के समय की हैं, पाई गई। यही वह स्थान है जहां आज से हजारों वर्ष मौर्य सम्राट अशोक ने सिंह शिर्ष स्तंभ स्थापित किया था।
फाहृयान से लेकर ह्वेनसांग ने देखा था सारनाथ का वैभव
चंद्रगुप्त विक्रमा दित्य 276 से 414 के समय में चीनी यात्री फाहियान ने सारनाथ का भ्रमण किया था। उसने यहां चार स्तूप व दो वौद्ध विहार देखें थे। इसी तरह हर्षवर्धन के समय में चीनी यात्री ह्वेनसांग अपने यात्रा वृतांत में सारनाथ कें मंदिरों, विहारों व स्तूपों के बारे में विस्तार के साथ उल्लेख करते हुए हर्ष वर्धन के शासन काल को सारनाथ में नवीन धार्मिक क्रियाकलापों का काल कहा है।
गाहडवाल वंश की महारानी कुारी देवी ने बनवाया था महाविहार
ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि कन्नौज के गाहडवाल नरेश गोविंद चंद की बौद्ध महारना कुमारी देवी ने प्राकृतिक सुंदरता के बीच धार्मिक व सांस्कृतिक नगरी काशी के समपी स्थित सारनाथ में एक विशाल धर्म चक्र जीन नामक बौद्ध महाविहार का निर्माण करवाया था। जिसके खंडहर 232 में पूर्व से पश्चिम की ओर फैले हुए हैं। संभवतह यह महाविहार यहां का अंतिम भव्य स्मारक था। इसके बाद सारनाथ की स्थापत्य कला एवं मूर्तिकलाओं पर विराम सा लग गया।
इस महाविहार की खुदाई के दौरान कुमारी देवी 12वीं ई. का एक प्रशस्ति अभिलेख मिला, जिसमें कुल 26 स्लों 29 पंक्तियों में खुदे हुए हैं। इस बौऋ महाविहार के प्रवेश द्वार पर कीभी एक भव्य तोरण द्वारा हुआ करता था। अब इस द्वारा का खंडित अवशेष मात्र बचा है। 12वीं शताब्दी तक धार्मिक एवं मानवीय क्रियाकलापों का केंद्र रहा सारनाथ का वैभव मुस्लिम आक्रमणकारियों के प्रभाव से ज्यादिन तक सुरक्षित न रह सका।
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13वीं शताब्दी के अंत तक वक्त के गर्द से पूरी तरह ढंक गया था सारनाथ का वैभव
सारनाथ की खुदाई से मिले महिपाल 1026 ई के एक अभिलेख से पता चलता है कि महमूद गजनवी के आक्रमण के फलस्वरूप धर्मिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत के खंडहरों को अपने भीतर दफन किए सारनाथ के भव्य भवनों, विहारों, मंदिरों, मूर्तियों एवं तमाम राजवंशों द्वारा समय समय पर तैयार करवाए गए स्मारकों को काफी क्षति पहुंची। जिसकारण सारनाथ की गौरवमयी धरोहर 13वीं शताब्दी के अंत तक वक्त गर्द से पूरी तरह ढंक गई।