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सेक्स वर्कर्स की दुर्दशा: कंगाली की कगार पर रेड लाइट एरिया, मजदूरों का मिलेगा दर्जा

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक अनुमान के मुताबिक देश में क़रीब 30 लाख सेक्स वर्कर्स हैं। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के मुताबिक, देश के करीब 7,76,237 सेक्स वर्कर्स में से 1,29,000 से ज्यादा तो महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में हैं।

Newstrack
Published on: 17 Dec 2020 11:51 AM IST
सेक्स वर्कर्स की दुर्दशा: कंगाली की कगार पर रेड लाइट एरिया, मजदूरों का मिलेगा दर्जा
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सेक्स वर्कर्स की दुर्दशा: कंगाली की कगार पर रेड लाइट एरिया, मजदूरों का मिलेगा दर्जा (PC: Social media)

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के कारण लगभग सभी क्षेत्रों पर इसका असर देखने को मिला है। दुनिया भर में सेक्स वर्कर की आर्थिक हालात भी कोरोना वायरस के कारण बिगड़ गई है। एक सर्वे के मुताबिक भारत में तीन राज्यों की 90 फीसदी सेक्स वर्कर बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। कोरोना से मौत के डर और कोविड प्रोटोकॉल की सख्ती ने ऐसे बाजारों में गुजर बसर करने वाली महिलाओं को कर्ज के दलदल में फंसा दिया है।

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खाने के लाले

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक अनुमान के मुताबिक देश में क़रीब 30 लाख सेक्स वर्कर्स हैं। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के मुताबिक, देश के करीब 7,76,237 सेक्स वर्कर्स में से 1,29,000 से ज्यादा तो महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में हैं। कोरोना के प्रकोप से इस सेक्टर में लिप्त महिलाओं को रोजी-रोटी के लाले पड़े हैं। इन हालातों में ज्यादातार सेक्स वर्कर्स, वेश्यालय मालिकों की जबरन गुलामी करने को मजबूर हो रही हैं। उनका कर्ज काफी बढ़ गया है और भविष्य में उसे चुकाने का कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 के आखिर तक इन सेक्स वर्कर्स का औसत कर्ज बढ़कर 6,95,982 रुपए हो जाएगा।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, देश में मानव तस्करी का शिकार हुई 95 फीसदी लड़कियों और महिलाओं को वेश्यावृत्ति के पेशे में धकेल दिया जाता है। हालांकि असल आंकड़े तो और भयावाह हो सकते हैं। क्योंकि अधिकारिक डेटा तो चोरी-छिपे होने वाले देह व्यापार का एक छोटा हिस्सा ही है।

मजदूर का दर्जा देने की सिफारिश

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वे सेक्स वर्कर्स को अनौपचारिक मजदूरों के तौर पर मान्यता दें। आयोग ने ये भी कहा है कि सेक्स वर्कर्स को दस्तावेज दिए जाएं ताकि वे राशन समेत दूसरी सहूलियतें हासिल कर सकें।

sex-worker sex-worker (PC: Social media)

एनएचआरसी की ओर से सेक्स वर्कर्स को मान्यता देते हुए उन्हें एक व्यापक दायरे में कवर किया गया है। इसमें प्रवासी सेक्स वर्कर्स को प्रवासी मजदूरों की स्कीमों और बेनेफिट्स में शामिल करना, प्रोटेक्शन अफसरों को पार्टनरों या परिवार के सदस्यों की घरेलू हिंसा की रिपोर्टों पर कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करने, साबुन, सैनिटाइजर्स और मास्क समेत कोरोना की फ्री टेस्टिंग और इलाज के प्रावधान, इन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं देने ताकि एचआईवी और दूसरे सेक्स आधारित संक्रमणों से इन्हें बचाया जा सके और इलाज जैसे प्रावधान शामिल हैं।

महाराष्ट्र सरकार ने दी मदद

इस बीच महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई की सेक्स वर्कर्स को राशन और आर्थिक मदद मुहैया करवाने का फैसला लिया है। महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा संक्रमित मामले अब तक सामने आ चुके हैं। लॉकडाउन के बाद से कई ऐसे लोग भी है, जिनकी जिदंगी अभी भी पटरी पर नहीं आ सकी है। इनमें मुंबई की सेक्स वर्कर्स का एक बड़ा हिस्सा भी मौजूद है।

सरकार के मुताबिक जब तक कोरोना वायरस महामारी खत्म नहीं हो जाती

अब महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई की 5600 सेक्स वर्कर्स को हर महीने 5 हजार रुपये की आर्थिक मदद के साथ ही पांच किलो राशन मुहैया करवाने का फैसला किया है। महाराष्ट्र सरकार के मुताबिक जब तक कोरोना वायरस महामारी खत्म नहीं हो जाती, तब तक इन सेक्स वर्कर्स को राशन मुहैया करवाया जाएगा। जिन सेक्स वर्कर के बच्चे स्कूल जाते हैं उन्हें अपनी ऑनलाइन शिक्षा को जारी रखने के लिए 2500 रुपये दिए जाएंगे।

हालांकि महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले को लेकर एक एनजीओ ने इस ओर भी सरकार का ध्यान दिलाने की कोशिश की थी कि कई सेक्स वर्कर्स ऐसी भी हैं, जिनके पास राशन कार्ड, आधार कार्ड और बैंक अकाउंट जैसे कोई भी पहचान के लिए दस्तावेज नहीं है। ऐसे में बिना पहचान के कारण कई सेक्स वर्कर्स सरकार की मदद पाने वाले लोगों की लिस्ट से बाहर हो जाएंगी।

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रेड लाइट एरिया पर हुआ शोध

तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित करुणा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी साइंसेज के एक शोध के मुताबिक इस कम्युनिटी के लोग वित्तीय शोषण का शिकार हो रहे हैं। ज्यादातर सेक्स वर्कर्स की आमदनी बंद हो चुकी है। ये स्टडी दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे और नागपुर के रेड लाइट एरिया पर की गयी थी।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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