×

विपक्ष में आकर शरद पवार ने बदला रंग, कृषि मंत्री रहते की थी मुक्त बाजार की वकालत

किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए उन्होंने इस मुद्दे पर 9 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने की घोषणा की है। वैसे पवार के इस रुख पर हैरानी जताई जा रही है क्योंकि यूपीए सरकार में कृषि मंत्री रहने के दौरान पवार ने खुद मुक्त बाजार की वकालत की थी।

Newstrack
Published on: 7 Dec 2020 10:48 AM IST
विपक्ष में आकर शरद पवार ने बदला रंग, कृषि मंत्री रहते की थी मुक्त बाजार की वकालत
X
विपक्ष में आकर शरद पवार ने बदला रंग, कृषि मंत्री रहते की थी मुक्त बाजार की वकालत

नई दिल्ली: राकांपा नेता शरद पवार भी कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के समर्थन में उतर आए हैं। किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए उन्होंने इस मुद्दे पर 9 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने की घोषणा की है। वैसे पवार के इस रुख पर हैरानी जताई जा रही है क्योंकि यूपीए सरकार में कृषि मंत्री रहने के दौरान पवार ने खुद मुक्त बाजार की वकालत की थी। उन्होंने एपीएमसी कानून में संशोधन का सुझाव दिया था और इस बाबत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखा था। उन्होंने कृषि के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़ाने पर भी जोर दिया था।

ये भी पढ़ें: भारत बंद का असर: जान लें क्या-क्या खुलेगा, कैसा रहेगा सामान्य जनजीवन

शरद पवार के बदले रुख पर हैरानी

सरकारी सूत्रों का कहना है कि शरद पवार का बदला हुआ रुख काफी हैरान करने वाला है क्योंकि मोदी सरकार की ओर से लाए गए नए कृषि कानूनों में वही बदलाव किए गए हैं जिन की वकालत कृषि मंत्री रहते हुए पवार करते रहे हैं। जानकार सूत्रों के मुताबिक पवार ने इस बाबत 2010 में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चिट्ठी भी लिखी थी। इस पत्र में उन्होंने कहा था कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास, रोजगार के अवसर बढ़ाने और किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए कृषि क्षेत्र को अच्छे बाजारों की जरूरत है।

एपीएमसी कानून में चाहते थे संशोधन

देश के मुख्यमंत्रियों को लिखी चिट्ठी में पवार ने एपीएमसी कानून में संशोधन पर जोर दिया था। उनका कहना था कि बुनियादी बाजार ढांचे में सुधार करने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है और इसके लिए निजी क्षेत्र को आगे आना होगा। उन्होंने प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए उचित नियामक और नीतिगत माहौल बनाने पर जोर दिया था।

निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने की वकालत

मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी कृषि मंत्री के रूप में पवार ने इसी तरह की चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में भी मार्केटिंग में इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के लिए निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया था। पवार की दलील थी कि इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिसका फायदा किसानों के साथ ही उपभोक्ताओं को भी होगा।

पवार के विरोध पर उठे सवाल

अब राकांपा मुखिया पवार की ओर से नए कृषि कानूनों का विरोध किया गया है। उन्होंने किसान संगठनों की ओर से 8 दिसंबर को बुलाए गए भारत बंद का भी समर्थन किया है और किसानों की मांगों के समर्थन में 9 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने की घोषणा की है। ऐसे में राकांपा के रुख पर सियासी हलकों में सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कृषि मंत्री के रूप में पवार जिन बदलावों की वकालत कर रहे थे, मोदी सरकार की ओर से नए कृषि कानूनों में वही बदलाव किए गए हैं मगर अब वे इसका विरोध कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें: अभी-अभी मिले आतंकी: दिल्ली दहलाने की थी साजिश, हुआ इतना बड़ा खुलासा

भाजपा ने किसान संगठनों को घेरा

इस बीच भाजपा महासचिव बीएल संतोष का कहना है कि कृषि कानूनों पर पवार ही नहीं बल्कि किसानों संगठनों का भी रवैया बदल गया है। भाजपा नेता ने 2008 में एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित खबर को ट्वीट करते हुए कहा कि उस समय किसान संगठनों की ओर से मांग की गई थी कि गेहूं की खरीद में बड़ी कंपनियों को भी हिस्सा लेने की छूट दी जाए। संतोष ने कहा कि पंजाब व हरियाणा के किसानों की ओर से मांग की गई थी कि कृषि मार्केटिंग के क्षेत्र में बड़ी कंपनियों को छूट देने से किसानों को इसका फायदा होगा। उन्होंने कहा कि अब केंद्र सरकार की ओर से जब यह कदम उठाया गया है तो यही किसान संगठन विरोध पर उतर आए हैं।

अंशुमान तिवारी

Newstrack

Newstrack

Next Story