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सिक्ख रिफरेंस लाइब्रेरी: यहां मिलेगा आपको, इतिहास और ज्ञान का खजाना

सिख रिफरेंस लाईब्रेरी की स्थापना कब, कैसे और क्यों और कहां की गई। इस संबंध में लाईब्रेरियन बगीचा सिंह बताते हैं कि खालसा कालेज स्थित सिख हिस्टरी सोसायटी में कुछ समय तक सिख धर्म की किताबें संरक्षित थीं।

SK Gautam
Published on: 3 Jan 2020 9:30 AM GMT
सिक्ख रिफरेंस लाइब्रेरी: यहां मिलेगा आपको, इतिहास और ज्ञान का खजाना
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दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: आज के कंप्यूटर युग में भी पुस्तकों और इन्हें संरक्षित करने वाले पुस्तकालयों का महत्व कम नहीं हुआ है। या यूं कहें की पुस्तकालय यानी लाईब्रेरी का महत्व अनादि काल से रहा है। पुस्ताकलय की इसी परंपरा को संभाले हुए है अमृतसर की सिख रिफरेंस लाईब्रेरी।

सिख रिफरेंस लाईब्रेरी की स्थापना कब, कैसे और क्यों और कहां की गई। इस संबंध में लाईब्रेरियन बगीचा सिंह बताते हैं कि खालसा कालेज स्थित सिख हिस्टरी सोसायटी में कुछ समय तक सिख धर्म की किताबें संरक्षित थीं। महाराजा दलीप सिंह की पुत्री शहजादी बंबा की अध्यक्षता में खालसा कालेज में आयोजित एक सेमिनार जिसमें इतिहासकार कर्म सिंह व डा. गंडा सिंह की मौजूदगी में सिख इतिहास से जुडी पुस्तकों के उचित रखरखाव की चर्चा चली और यह निर्णय लिया गया कि इन पुस्तकों को सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था एसजीपीसी के हवाले कर दिया जाए, ताकि इन दुर्लभ पुस्तकों को चीर स्थाई सुरक्षा मिल सके। इसी फैसले के तहत इन महत्वपूर्ण पुस्तकों को खालसा कालेज से स्थानांतरित कर सन 1947 में एसजीपीसी को सुपुर्द कर दिया गया।

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रामदास सरायं से शुरू हुआ सफर

लाईब्रेरियन बगीचा सिंह कहते हैं 1947 में षुरूआत के दिनों में खालसा कालेज से इन पुस्तकों को लाने के बाद श्री हरमंदिर साहिब की रामदास सरायं में ’सेंट्रल सिख लाइब्रेरी’ के नाम से स्थापित किया गया। इसके बाद धीरे-धीरे दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण पुस्तकों की संख्या बढ.ती गई। पुस्तकों के बृहद संग्रह को सही ढंग से संरक्षित करने के लिए श्री दरबार साहिब के आटा मंडी की गेट की तरफ स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद इस लाईब्रेरी को ’सिख रिफरेंस लाईब्रेरी’ का नाम दिया गया।

बगीचा सिंह बताते हैं इस लाईब्रेरी का कोई सदस्य नहीं होता है। और न ही यहां की पुस्तकों को लाईब्रेरी से बाहर ले जाने की अनुमति दी जाती है। जिस किसी को भी पुस्तकें पढ.नी होती हैं वह लाईब्रेरी के अंदर अवकाष के दिनों को छोड. कर सुबह 9.30 बजे से षाम 4.30 बजे तक बैठक अध्ययन कर सकता है।

22 हजार से अधिक पुस्तकों का वृहद संग्रह

असिस्टेंट लाइब्रेरियन राजविंदर कौर और सतविंदर सिंह बताते हैं कि सिखरिफ्रेंस लाईब्रेरी में विभिन्न समय काल की 22500 से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। इनमें सिकंदर के भारत पर हमले से लेकर सिख षासकों तक के इतिहास से संबंधित पुस्तकें तो हैं ही, इसके अलावा संगीत में में सिख धर्म से संबंधित कीर्तन परंपरा से संबंधित पुस्तकों के अलावा सिख इतिहास से संबंधित किताबें, दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र व सामाजिक विज्ञान की पुस्तकें भी सुरक्षित हैं। राजविंदर कौर कहती हैं कि सिख रिफ्रेंस लाईब्रेरी के अलावा दरबार साहिब परिसर में ही एक अन्य लाईब्रेरी है, जिसे जनरल लाईब्रेरी के नाम से जाना जाता है और इसमें रोजाना दो लोग विभिन्न पुस्तकों व समाचार पत्रों का अध्ययन करते हैं।

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1934 से अब तक के अखबार भी सुरक्षित

सिखरिफरेंस लाईब्रेरी अपनेआप में जीवंत इतिहास है। इस लाईब्रेरी में 1927 में प्रकाशित होने वला अंग्रेजी अखबार ट्रिव्‍यून, 1934 में कलकता और बंबई से एक साथ अंग्रेजी में प्रकाषित होने वाला 96 पेज का साप्ताहिक समाचार पत्र टाइंम्स आफ इंडिया सहित अन्य पुराने समाचार पत्रों का दुलर्भ संग्रह है, जिन्हें संभालने के लिए 20 कर्मचारी कार्य में लगे हुए है। इनके रखरखाव पर आनेवाला खर्च एवं कर्मचारियों के वेतन आदि प्रबंध एसजीपीसी स्वयं वहन करती है।

इस लाईब्रेरी में श्री गुरुनानकदेव विष्वविद्यालय अमृतसर से इतिहास में एमफिल करने वाली छात्रा सुमन कुमारी, मीना रानी, दिल्ली से गौरव शर्मा, सूरज व वरुण कहते हैं पिछले छह माह से यहां रिसर्च के लिए नियमित आ रहे हैं। उन्होंने बतायाकि यह लाईब्रेरी षोध छात्रों एवं इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों के लिए काफी लाभ प्रद है। वे कहते हैं कि जो पुस्तकें जीएनडीयू, खालसा कालेज सहित अन्य यूनिवर्सिटियों में नहीं मिल पाती वे पुस्तकें यहां सहज ही उपलब्ध हो जाती हैं।

प्रदेश का इकलौता ट्रीटमें प्लांट

लाईब्रेरियन बगीचा सिंह बताते हैं कि हस्तलिखित पुस्तकों को सिलन से बचाने के लिए साल 2007-08 में लगभग 8 लाख रुपये की लागत से फिक्रेशन प्लांट लगाया गया। इसमें 55 से 60 डिग्री के तापमान पर एक साथ लगभग सौ पुस्तकों को रखा जाता है, ताकि इसमें मास्चराइजर न आने और किताबों के पन्ने आपस ने न चिपकें। बगीचा सिंह कहते हैं कि हस्तलिखित किताबों को संभालने में थोड परेशानी तो आती ही है खास करके बरसात के दिनों में।

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लेकिन संसाधनों व प्रशिक्षित कर्मचारियों व रोषनी एवं हवादार भवन के प्रबंध की वजह से सब कुछ ठीक हो जाता है। वे कहते हैं कि यहां के टिरटमेंट प्लांट से प्रभावित हो कर जीएनडीयू प्रशासन ने भी पुस्तकों के रखरखाव के लिए यह प्लांट लगाया है, लेकिन उसका आकार इससे कुछ छोटा है।

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