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स्मृति ईरानी ने रच दिया ऐसा इतिहास, जो बन गया कांग्रेस की कब्र
पूरे देश की निगाह अमेठी पर थी। मतगणना के दौरान लोग उस समय चौंक गए जब राहुल गांधी ने अपनी हार स्वीकारते हुए स्मृति ईरानी को जीत की बधाई दी। उ
रामकृष्ण वाजपेयी
लखऩऊ- स्मृति ईरानी भारतीय जनता पार्टी की एक कद्दावर नेता कैसे बन गईं कैसे उन्होंने कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाई और कांग्रेस की परंरागत व अजेय मानी जानी वाली सीट से राहुल गांधी को पराजित किया जबकि बहुत से लोगों को यकीन नहीं था कि वह यहां से जीत पाएंगी।
स्मृति ईरानी की अमेठी की सियासत में एंट्री
ये वो दौर था जब पूरे देश की निगाह अमेठी पर थी और हर आदमी को जिज्ञासा थी कि अमेठी में क्या होने वाला है। मतदान हुआ वोटों की गिनती शुरू हुई लोगों के अपने अपने आकलन थे लेकिन रात आठ बजे लोग उस समय चौंक गए जब राहुल गांधी ने अपनी हार स्वीकारते हुए स्मृति ईरानी को जीतने के लिए बधाई दी। उस समय तक राहुल गांधी को तीन लाख और स्मृति ईरानी को साढ़े तीन लाख वोट मिल चुके थे।
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2014 लोकसभी चुनाव में हार से लिया स्मृति ने सबक
स्मृति ईरानी चूंकि 2014 का चुनाव हार चुकी थीं इसलिए उन्हें यह पता था कि पिछली बार उन्होंने क्या गलतियां कीं। राहुल गांधी ये चुनाव जीत गए थे लेकिन वह इस सीट को अजेय मानने के मुगालते में रहे, राहुल गांधी को 2014 में इस सीट पर चार लाख आठ हजार वोट मिले थे जबकि स्मृति ईरानी को एक लाख सात हजार। वैसे देखने में ये वोट कम लग सकते हैं। लेकिन ये एक चौथाई लोगों का स्मृति ईरानी पर विश्वास था जिसे राहुल गांधी आंक नहीं पाए।
हार के बाद अमेठी की बेटी बनकर किया काम
स्मृति ईरानी ने भी चुनाव हारने के बाद जीते प्रत्याशी की तरह अमेठी की बेटी बनकर काम किया जबकि राहुल गांधी चुनाव जीतने के बाद अमेठी को एक बार फिर भूल गए। 2019 में जो हुआ उसे ये कहा जा सकता है कि ये तो होना ही था।
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कांग्रेस के गढ़ में स्मृति का दबदबा
इस चुनाव में राहुल गांधी को आधे से भी कम लोगों ने वोट किया। उधर स्मृति ईरानी को जिताने के लिए जैसे मतदाता ने ठान ली थी। इसलिए बम्पर वोटिंग की। भाजपा ने भी पूरी ताकत झोंक दी। इसमें स्मृति ईरानी का लगातार पांच साल काम करना काम आया। राहुल गांधी के लिए अमेठी के साथ वायनाड से चुनाव लड़ना भी भारी पड़ा क्योंकि स्मृति को इस बहाने लीड मिल गई और उन्होंने जमकर प्रचारित किया कि हार के डर से राहुल गांधी वायनाड भागे हैं।
अमेठी में स्मृति की जीत ने रचा इतिहास
इन हालात में दूर की रणनीति के तहत राहुल गांधी ने जो वायनाड से चुनाव लड़ने की सोची थी वही उनकी तकदीर बन गई और उन्हें ये सीट बचाना भारी हो गया। भाजपा का परिवारवाद से मुक्ति का नारा यहां काम आया और स्मृति ईरानी ने इतिहास रच दिया।