TRENDING TAGS :
आवारा एवं छुट्टा पशुओं के लिए यातना गृह बनीं गोशालाएं
आवारा एवं छुट्टा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए प्रदेश सरकार स्थाई एवं अस्थाई गोशालाओं के निर्माण पर खासा जोर दे रही है। इसके लिए सभी जिलों में दस - दस करोड़ रुपये दिए जाने की बात कही जा रही है। 'अपना भारत' ने कुछ जिलों में पड़ताल की तो ये असलियत सामने आई कि गोशालाओं का निर्माण कहीं शुरू ही नहीं हुआ है तो कहीं आधा अधूरा है। चारे, पानी, शेड की हर जगह भारी कमी है। गोशालाओं में पशुओं की भूख व बीमारियों से मौतें आम बात हो गई है।
सरकार के दावे पर बजटीय संकट का ग्रहण
जनपद के गांवों में अभी तक गोशालाओं के निर्माण की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो सकी है। वह भी तब गोशाला निर्माण योजना के तहत 3 करोड़ 40 लाख रुपये मिल चुके हैं। जिले के मुख्य विकास अधिकारी के अनुसार इस पैसे से तहसील मछलीशहर के निजामुद्दीनपुर में 1.20 करोड़ रुपये की लागत से स्थाई पशुशाला का निर्माण समाज कल्याण निर्माण निगम द्वारा कराया जा रहा है। तहसील केराकत क्षेत्र के ग्राम सरौनी पश्चिम पट्टी में 1.20 करोड़ रुपये की लागत से स्थाई पशुशाला का निर्माण प्रस्तावित है। इसका ठेका पीडब्लूडी को दिया गया है। अभी तक इसकी नींव का काम ही हो सका है। सीडीओ के अनुसार, जनपद में कचगांव, शाहगंज, सिकरारा के चांदपुर, जरौना, सरायइसुफ, सदर में कृषि भवन व लहंगपुर आदि स्थलों पर पशुशाला का निर्माण प्रस्तावित है। बजट और जमीन उपलब्ध होने पर निर्माण कराया जाएगा। इसके अलावा एक करोड़ रुपये से स्थाई एवं अस्थाई गोशालाओं में रखे गए छुट्टा पशुओं के रख रखाव, चारा, भूसा, दवा आदि की व्यवस्था की जा रही है।
बीमारी और भूख से मर गए पशु
पिछले साल जिले में कुछ अस्थाई व स्थाई गोशालाएं बनवाईं गईं थीं। एक गोशाला नगर पालिका परिषद के अधीन प्यारेपुर में बनी तो दूसरी कृषि भवन परिषर में बनाई गई। इन गोशालाओं में चारे की कमी व बीमारी के कारण दर्जन भर पशु मर चुके हैं। नगर परिषद के अधिशासी अधिकारी के अनुसार सरकार ने योजना तो शुरू कर दी लेकिन बजट की व्यवस्था नहीं की गई। अब विकास के बजट में कटौती करके पशुओं की देखरेख एवं चारे आदि की व्यवस्था करायी जा रही है। यही कारण है कि शहर की सड़कों पर आज भी छुट्टा पशुओं की भरमार है। उन्हें पकडऩे का काम परिषद नहीं कर पा रहा है।
किसानों को कोई फायदा नहीं
हरदीपुर निवासी सुरेन्द्र त्रिपाठी, सादीपुर सिरकोनी निवासी उदय प्रताप सिंह, कोहड़े सुल्तानपुर निवासी पी.सी. विश्वकर्मा, मीयांपुर निवासी तिलकधारी निषाद एवं भदेवरा निवासी महेन्द्र प्रताप सिंह ने बातचीत में कहा कि सरकार छुट्टा पशुओं के लिए विकास योजनाओं का पैसा भले ही बहा रही है लेकिन इस योजना का कोई लाभ किसान या आम जन को नहीं मिल पा रहा है। योजना के पैसे की सिर्फ बन्दर बांट हो रही है।
करोड़ों खर्च के बाद भी गोसदन में मर रहीं गायें
गोरखपुर में गोवंश के बारे में नेताओं व अफसरों के बयानों में भले ही संजीदगी दिखती हो, लेकिन हकीकत में यह हवाई ही है। तभी तो गोरखपुर से लेकर महराजगंज के गोसदनों में गायें चारे के आभाव में मर रही हैंं। गोरखपुर-बस्ती मंडल के सात जिलों में 10-10 करोड़ रुपये से ज्यादा रकम गोवंश के रखरखाव में खर्च की जा चुकी है, लेकिन अधिकतर कान्हा उपवनों में 'कार्य जारी हैÓ का ही बोर्ड टंगा हुआ दिखता है।
पूर्वांचल के सबसे बड़े गोसदन में तड़प-तड़प कर मरीं गायें
करीब 500 एकड़ में फैला मधवलिया गोसदन पूर्वांचल के सबसे बड़े गोसदनों में शुमार है। गोरखपुर नगर निगम यहां करीब तीन करोड़ रुपये गायों के चारे से लेकर शेड निर्माण के लिए दे चुका है। फिर भी यहां गायें तड़प रही हैं। गोरखपुर से बस्ती मंडल तक के स्थाई - अस्थाई गोसदनों में न तो भूसा है, न ही भीषण गर्मी में पीने का पानी। अफसर और गोसदन संचालक गायों की दुर्दशा का ठीकरा बीमारी और पॉलीथिन पर फोड़ देते हैं। बीते जून महीने के पहले सप्ताह में मधवलिया गोसदन में मात्र सात दिन में 57 से अधिक गायों की मौत हो गई। डीएम व पशुपालन विभाग के डॉक्टरों की तैनाती के दावों के इतर हड्डी-हड्डी दिख रही गायें खुद व्यवस्था की खामियों की तस्दीक करती हैं। गोसदन परिसर में दो तालाब हैं जिसमें एक सूख चुका है और दूसरे की तलहटी में ही पानी बचा है। 57 मौतों का मामला मीडिया में उछलने के बाद प्रशासन ने मौतों के आंकड़ों पर अघोषित सेंसर लगा दिया है। एक जून को गोसदन में छह, दो को 17, तीन को 15, पांच जून को 14 और छह जून को पांच गायों के साथ ही हफ्ते भर के अंदर 57 मवेशियों की मौत हो चुकी है। मौतों के बाद गोसदन का निरीक्षण करने पहुंचे सीडीओ पवन अग्रवाल ने उस रजिस्टर को ही हटवा दिया जिसमें मौतों का आंकड़ा दर्ज होता था। अब यह रजिस्टर एसडीएम निचलौल के कब्जे में हैं।
ठूंस दी गईं 4 हजार गायें
दरअसल, करीब 500 एकड़ में फैले पूर्वांचल के सबसे बड़े मधवलिया गो-सदन में गोरखपुर समेत आसपास के जिलों से करीब 4 हजार गो-वंश को ठूंस तो दिया गया लेकिन इनकी देखभाल की मुकम्मल व्यवस्था नहीं की गई। अधिकारी भी मानते हैं कि गोसदन में नए शेड बनने के बाद बमुश्किल 1000 गायों की देखरेख हो सकती है। यहां दो सुपरवाईजर और 22 गो-सेवक की तैनाती है। इनके मानदेय पर महीने में करीब एक लाख रुपये खर्च होते हैं। हालांकि इन्हें जनवरी माह से मानदेय नहीं मिला है। इनकी अनदेखी के कारण डेढ़ एकड़ में बोया गया हरा चारा सिंचाई के आभाव में सूख चुका है। विवादों में रहने वाले भाजपा नेता और गोसदन के संचालक जितेन्द्र पाल को बीते 28 जनवरी को हटाकर जिलाधिकारी ने एसडीएम के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय कमेटी को गो-सदन की जिम्मेदारी दे दी लेकिन सुधार नाकाफी रहा। गोसदन प्रभारी और एसडीएम देवेंद्र कुमार का दावा है कि मरने वाली ज्यादातर गायें बूढ़ी और कमजोर थीं। जो पशु मरे हैं, उनमें से अधिकतर के पेट में पॉलीथिन की पुष्टि हुई है। वहीं पूर्व सांसद और सपा नेता अखिलेश सिंह का कहना है कि अचानक 57 गायों के मरने की हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। दोषी अफसरों को बर्खास्त करना चाहिए। उधर, गोरखपुर के फर्टिलाइजर में नगर निगम द्वारा संचालित कांजी हाउस में भी बीते दिनों तीन गायों की मौत से हड़कंप मच गया था। तब निगम के अफसरों ने गायों के बीमार होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया था।
यह भी पढ़ें : नाराज ममता बनर्जी ने विधायकों से कहा- तुरंत मांगें गलती की माफी
मधवलिया गोसदन को ढाई करोड़ दे चुका है नगर निगम
गोरखपुर नगर निगम पिछले चार महीने से अभियान चलाकर छुट्टा गायों और सांड़ पकड़ रहा है। नगर आयुक्त अंजनी कुमार सिंह के मुताबिक, 2800 से अधिक गाय और सांड़ मधवलिया भेजे गए हैं। इनके चारे के लिए गोसदन के खाते में 66 लाख रुपये अधिक की रकम ट्रांसफर की जा चुकी है। इसके साथ ही महराजगंज डीएम को 5 शेड के निर्माण के लिए 1.80 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। सहायक नगर आयुक्त संजय शुक्ला का कहना है कि प्रति गाय एक दिन के चारे के लिए 30 रुपये का भुगतान हो रहा है। गोसदन से जैसे ही डिमांड आएगी और रुपये ट्रांसफर कर दिए जाएंगे।
धीमी गति से हो रहा गो-सदन का निर्माण
गोरखपुर में मार्च महीने में 8 करोड़ रुपये की लागत से कान्हा उपवन के तैयार होने का दावा था, लेकिन अभी 80 फीसदी भी निर्माण नहीं हो सका है। गोरखपुर के गाजेगड़हा गांव में 5 एकड़ में गो संरक्षण केन्द्र और गोशाला का निर्माण अधूरा है। इसी के साथ गोरखपुर जिले में 21 ग्राम पंचायतों में अस्थाई गोशाला का संचालन का दावा था। जिसमें से 15 में जैसे-तैसे गायों को रखा गया है। अस्थाई गो-सदनों में करीब 200 पशुओं को रखा गया है। इन गायों के चारे पर जिला प्रशासन करीब एक करोड़ रुपये खर्च कर चुका है। इसके साथ ही बड़हलगंज और सहजनवां में 1000-1000 गायों को रखने के लिए गोसदन का निर्माण कार्य चल रहा है। बस्ती में 2.5 करोड़ व रुधौली में 2 करोड़ रुपये की लागत से निर्माणाधीन कान्हा हाउस का निर्माण अधूरा है। गोरखपुर के डीएम के. विजयेंद्र पांडियन गो सदनों के संचालन के लिए अपने वेतन से 11 हजार रुपये दिए। उनकी अपील पर सीडीओ समेत दर्जन भर अधिकारियों ने गो सदनों को 11-11 हजार रुपये की मदद की है।
पशु यातना गृह बना प्रदेश का प्रथम मॉडल गो आश्रय केन्द्र
प्रशासनिक उदासीनता के कारण प्रदेश का पहला मॉडल गो आश्रय केन्द्र अब पशुओं के लिए कब्रगाह बन चुका है। अब तक इस गोशाला में तीन दर्जन से अधिक मवेशी असमय काल के गाल में समा चुके हैं। डेढ़ करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली गोशाला शुरुआती दौर में ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है।
छुट्टा जानवरों की समस्या के समाधान के लिए प्रदेश में सबसे पहले जिले के मुजेहना विकास खंड के रुद्रगढ़ नौसी में पशु आश्रय केन्द्र के निर्माण की आधार शिला रखी गई थी। प्रदेश की इस पहली गोशाला को एक मॉडल के रूप में विकसित किया जाना था। इसके लिए शासन द्वारा भारी भरकम बजट भी दिया गया। ग्राम पंचायत रुद्रगढ़ नौसी में चारागाह की 110 बीघे जमीन चिन्हांकित की गई जिसमें 60 बीघे जमीन पर आश्रय केन्द्र तथा 50 बीघे जमीन पर पशुओं के लिए हरा चारा पैदा करने की योजना बनी थी। इतनी बड़ी गोशाला का निर्माण शुरू होने से जिले भर के किसानों में एक आस बंधी थी कि उन्हें कुछ दिनों में छुट्टा जानवरों से मुक्ति मिल जाएगी। किसानों की आशा पर जल्दी ही पानी फिर गया क्योंकि साल भर से निर्माणाधीन इस गोशाला की बाउंड्री वाल का काम भी अभी पूरा नहीं हो सका है।
तीन दर्जन से ज्यादा गायों की मौत
रुद्रगढ़ नौसी आदर्श गोशाला में चारे के नाम पर सिर्फ भूसे की व्यवस्था होती है। जानवरों को पानी पिलाने के लिए लगाए गए दो सोलर पंप महीनों से खराब पड़े हैं। ऐसे में गोशाला में करीब 150 जानवरों को किस तरह पानी पिलाया जाता है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जानवरों को खिलाने के लिए बनाए गए नांद भी ध्वस्त हो चुके हैं। गोशाला में न तो कोई छायादार वृक्ष हंै और न ही पर्याप्त टीनशेड। महज दो टीनशेड बनाए गए हैं जिसमें एक शेड में चारा रखा जाता है। दूसरे शेड में 150 जानवर की जगह ही नहीं है सो भीषण तपिश व भूख से जानवरों की असमय मौत हो रही है। आश्रय केंद्र में उद्घाटन से अब तक तीन दर्जन से अधिक गायों की मौत हो चुकी है। बरसात शुरू होते ही जानवरों के लिए और आफत आ गयी है। पूरे गोशाला में एक से डेढ़ फुट पानी भर जाता है। जिन कर्मचारियों को गोशाला की देख रेख के लिए लगाया गया है उन्हें वेतन भी नहीं मिल रहा है।
सीडीओ बोले, नर-मादा के साथ रहने से हो रही मौत
सीडीओ आशीष कुमार का कहना है कि रुद्रगढ़ नौसी में पानी व चारे की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। मवेशियों की मौत पर उन्होंने कहा कि नर और मादा पशु एक साथ रह रहे हैं इसलिए दुर्घटनाओं के कारण पशुओं की मौत हो रही है। अब नर और मादा पशु अलग अलग रखे जाएंगे। इसके लिए बैरीकेडिंग कराई जा रही है। उन्होंने बताया कि जिले में निर्माणाधीन गो आश्रय केन्द्रों का निर्माण शीघ्र पूरा कराया जाएगा।
यह भी पढ़ें : श्रीलंकाई नौसेना ने तमिलनाडु के छह मछुआरों को किया गिरफ्तार
जिला पंचायत अध्यक्ष हर गौशाला को देंगी 50 हजार
विकास खण्ड कटरा की ग्राम पंचायत गोड़वा में दो सौ बीघा चारागाह जमीन पर तथा हलधरमऊ की ग्राम पंचायत चकसेनिया में चारागाह की 80 बीघे जमीन पर गोशाला का निर्माण कार्य शुरू कराया गया है। यहां भूमि पूजन और शिलान्यास के बाद आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष केतकी सिंह ने घोषणा की वह अपनी सांसद की पेंशन से प्रत्येक गोशाला के लिए पचास हजार रुपये की मदद देंगी। जिला पंचायत ने कौड़हा जगदीशपुर, बालपुर, असरना, कौडिय़ा बाजार, महाराजगंज, बसालतपुर, श्रीनगर, बाबागंज, गिलौली, वजीरगंज, खिरिया मजगंवा, मसौलिया, परसपुर, आदमपुर, नरायनपुरकला, मसकनवा, तरबगंज व परास गांव में स्थल चिन्हित किए गए हैं। यहां एक हजार से अधिक पशुओं को रखे जाने की योजना है। 3.90 करोड़ रुपये से गोशाला का विकास होगा। सबसे बड़ी गोशाला इटियाथोक के बसालतपुर में बन रही है। इसका निर्माण कार्य अभी प्रारंभ ही हुआ है।
छुट्टा पशुओं ने पहुंचाया भुखमरी के कगार पर
केशवपुर पहड़वा के किसान स्वामी यादव कहते हैं कि शहर से गांवों तक छुट्टा पशुओं की तादाद में तेजी से इजाफा हो रहा है। जानवरों का झुण्ड पल भर में फसलों को नष्ट करके किसानों को कंगाल बना देता है। सरकार की गोशाला का अता पता नहीं है।
किसान रमेश सिंह का कहना है कि अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई बरबाद होने से किसान काफी त्रस्त हैं लेकिन गोशालाओं के निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत धीमी है।
चांदपुर के किसान राकेश मिश्रा का कहना है कि छुट्टा पशुओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। ये जानवर अपनी भूख मिटाने के लिए किसानों की फसलों को अपना निवाला बनाते हैं। क्षेत्र के चकसेनिया में गोशाला निर्माण की गति अत्यंत धीमी है।
ग्राम पूरे उदई निवासी किसान बद्री प्रसाद कहते हैं कि किसान महंगे दामों में बीज, खाद खरीदकर अपने खून पसीने से सींचकर फसल तैयार करते हैं लेकिन छुट्टïा पशुओं के झुण्ड धावा बोलकर पल भर में फसल साफ कर दे रहे हैं। ऐसे में किसानों के सामने भुखमरी की स्थिति आ गयी है।
धानेपुर क्षेत्र के सिंहपुर के किसान जगदीश प्रसाद तिवारी, शंकर लाल, दद्दन तिवारी का कहना है कुछ तो जानवर बाहर से लाकर रुद्रगढ़ नौसी में गोशाला के बाहर छोड़ दिए गए हैं और कुछ पशु दीवार फांद कर फसलें चौपट कर रहे हैं।
गौशाला निर्माण में बलरामपुर अव्वल, गोंडा फिसड्डी
सार्वजनिक भूमि पर गो आश्रय केंद्र निर्माण में देवीपाटन मंडल का बलरामपुर जिला अव्वल है, जबकि गोंडा की स्थिति सबसे खराब है। ग्राम्य विकास विभाग द्वारा गोंडा समेत अन्य जिलों में 2780 स्थल केन्द्र निर्माण के लिए चिन्हित किए गए हैं, जिसमें से सिर्फ 1601 पर कार्य चल रहा है। इनपर 17.171 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। बलरामपुर प्रदेश के 10 अच्छे जिलों में है, जबकि गोंडा सबसे खराब 10 जिलों में शामिल है।
सरकार ने बेसहारा पशुओं को आसरा देने के लिए गांव के साथ ही शहरों में आश्रय केंद्र खोलने का फैसला किया था। इसके लिए गोंडा समेत अन्य जिलों में 2780 सामुदायिक स्थल वित्तीय वर्ष 2018-19 में चयनित किए गए थे। मण्डल में अभी तक सिर्फ 882 केन्द्रों का संचालन करके 77722 पशुओं को आसरा दिया गया है। गोंडा में 35 के सापेक्ष 20 केन्द्र का निर्माण कार्य शुरू हो सका है, जबकि सिर्फ सात पूर्ण हुए हैं। ग्राम्य विकास आयुक्त एनपी सिंह ने सम्बन्धित जिले के अफसरों को प्रगति की समीक्षा करके जल्द निर्माण कार्य पूरा कराने के निर्देश दिए हैं।
सरकार गंभीर, फिर भी गोशालाएं बदहाल
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बेशक गोवंश की देखभाल के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। बावजूद इसके गोशालाओं की हालत दयनीय है। हर गोशाला में क्षमता से अधिक गायों को रखा जा रहा है। हाल ही में मेरठ के गांव उकसिया स्थित गोशाला में भूख, प्यास और तेज धूप के कारण छह गायों की मौत हो गई। लापरवाही का आलम ये रहा कि सूचना मिलने के बाद भी पशु चिकित्सक तीन दिन बाद जांच करने गोशाला पहुंचे। कई गोवंश अब भी बीमार हैं। गौशाला की स्थिति से ग्रामीणों में रोष है। अकेली इस गोशाला में पिछले दो माह में 35 पशुओं की मौत हो चुकी है। उकसिया के जंगल में प्रशासन ने करीब पांच माह पहले गोशाला का निर्माण कराया था। करीब 18 बीघा इस जमीन की तारबंदी कर 200 गोवंश रखे गये थे, लेकिन आज तक गोवंशों के लिए चारे, पानी और छाया की व्यवस्था नहीं हो पाई। इसके बाद भी प्रशासन इनकी सुध लेने के लिए तैयार नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि गायों की मौत के बाद भी उन्हें उठाने की उचित व्यवस्था नहीं है। शिकायत के बाद भी अधिकारी नहीं सुन रहे हैं।
यह भी पढ़ें : कर्नाटक: विधायकों से मुलाकात कर बोले स्पीकर, संविधान के मुताबिक करूंगा फैसला
गोशाला में गायों के चारा खाने के लिए एक खोर ही बनाई गई है। एक खोर में 200 पशु कैसे चारा खा पाएंगे इसका जवाब किसी के पास नहीं है। बिजली कनेक्शन न होने के कारण पानी की भी उचित व्यवस्था गोवंश के लिए नहीं हो रही है। भूख से तड़प रहे गोवंश चारे के लिए तारबंदी फांदकर पड़ोस के खेतों में घुसकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। गोशाला में तैनात चौकीदारों का कहना है कि गोवंशों के लिए बाहर से धान के पूलों का सूखा भूसा मंगाया जाता है, लेकिन भुगतान समय से नहीं होने पर आपूर्तिकर्ता करने वाले सप्लाई बंद कर देते हैं।
'जांच कराई जाएगी'
इलाके के प्रभारी बीडीओ सचिन चौधरी गोशाला में गायों की मौत और बदहाली के बारे में सिर्फ इतना ही कहते हैं कि गोशाला में पर्याप्त सुविधाओं को लिए उच्च अधिकारियों को अवगत करा दिया है। यदि कोई असुविधा हो रही है तो मौके पर जाकर जांच कराई जाएगी।
नहीं मिल रही सरकारी मदद
सामाजिक संस्थाओं की ओर से संचालित गोशालाओं को सरकारी मदद के ढेरों दावे हैं लेकिन संचालकों द्वारा उनको नकारा जा रहा है। इन गोशालाओं में भी क्षमता से अधिक जानवरों को रखा जा रहा है। पशुओं के लिए न तो खाने का प्रबंध है और न उनके रहने के लिए समुचित व्यवस्था है। मेरठ के कपसाड़ गांव की साधु जगराम स्मारक गोशाला में फिलहाल 90 पशु हैं। वहां 200 पशु रखे जा सकते हैं लेकिन चारा और दूसरे खर्च पूरे नहीं होने से प्रबंध समिति अन्य पशु रखने में असमर्थ है। समिति के सचिव रहे वीर सिंह का कहना है कि गांव में करीब 125 छुट्टïा पशु घूम-घूम कर फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम चाहकर भी उनको नहीं रख पा रहे हैं। दूध देना बंद करने के बाद गायों को लोग छोड़ देते हैं। पशुपालन के लिए सरकार से कोई मदद आज तक नहीं मिली। पशुपालन विभाग और सरकार से आर्थिक मदद का आवेदन अटका हुआ है। मेरठ के पशुपालन विभाग के रिकॉर्ड में जिले में चार गोशालाएं हैं, जिनमें निराश्रित पशुओं को रखा जाता है। इन गोशालाओं में एक मेरठ महानगर और तीन हस्तिनापुर, जानी और कपसाड़ यानी देहात में हैं।
तीन माह डेढ़ दर्जन गोवंश की मौत
नगर निगम द्वारा तीन स्थानों - सूरजकुंड गोवंश केंद्र, कांजी हाउस और अछरौंदा में अस्थाई गोवंश केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। इस साल की शुरुआत में 26 बेसहारा पशुओं के साथ गोवंश केंद्रों का संचालन शुरू हुआ था। वर्तमान में सूरजकुंड वाहन डिपो में 212, अछरौंदा में 65 और कांजी हाउस में 35 बेसहारा पशु हैं। तीनों ही केंद्र बदहाल हैं। गोशालाओं में बीमार और कमजोर गोवंश को समय पर उपचार नहीं मिल रहा है। यही कारण है कि गोवंश लगातार दम तोड़ रहे हैं। बीते २ जुलाई को यह संवाददाता सूरजकुंड गोवंश केंद्र पहुंचा तो तब भी वहां एक गाय मरी पड़ी थी। केंद्र के कर्मचारी गाय की मौत की वजह के बारे में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। लेकिन वहां चारे के लिए बने खाली पड़े खोर असलियत बयां कर रहे थे।
इलाके के पूर्व पार्षद सुधीर पांडेय कहते हैं कि यहां पशुओं के हरे चारे में कटौती की जा रही है,जिसके कारण गोवंश भूखे तड़पने को मजबूर हैं। इस गोशाला में आधा दर्जन गोवंश बीमार हैं। यहां के कर्मचारी बताते हैं कि बुलाए जाने पर पशु चिकित्सक आते हैं और दवाई भी देते हैं। इस गोशाला में तीन माह में डेढ़ दर्जन गोवंश दम तोड़ चुके हैं। आसपास के लोगों का कहना है कि केन्द्र के कर्मचारी पशुओं को सुबह शाम बाहर ले जाकर मैदान में घास चरने के लिए छोड़ देते हैं। गोवंश केन्द्र में तो नाम का ही चारा पशुओं के खोर में डाला जाता है। नगर निगम ने वाहनों के लिए बने शेडों में कान्हा उपवन का बोर्ड लगाकर निराश्रित पशुओं को स्थाई ठिकाना तो दे दिया लेकिन निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं की गई। इस कारण पशुओं की मौत होना आम बात हो गई है।
बोले जिम्मेदार
अपर नगर आयुक्त अमित कुमार सूरजकुंड गोवंश केन्द्र की बदहाली पर कहते हैं कि यह अस्थाई व्यवस्था है। स्थाई तौर पर परतापुर में कान्हा उपवन का निर्माण किया जा रहा है।
जिलाधिकारी अनिल ढींगरा कहते हैं कि परतापुर में नगर निगम 15 करोड़ रुपये की लागत से 7 हेक्टेयर जमीन में स्थायी गोशाला का निर्माण कराया जा रहा है। यहां करीब 650 गोवंश के रहने की व्यवस्था होगी। यहां 2 हेक्टेयर में गोवंशों के रहने की व्यवस्था, 4 हेक्टेयर में पशु चारा व चरने की व्यवस्था तथा 1 हेक्टेयर अलग से होगा। गोबर गैस प्लांट लगाया जाएगा। मिल्क पार्लर भी होगा। गाय के गोबर व मूत्र का भी सदुपयोग सुनिश्चित किया जायेगा। जैविक खाद तैयार कर बेची जाएगी। जिलाधिकारी के अनुसार स्थाई कान्हा उपवन में भूसा सुरक्षित रखने के लिए एक बड़े हाल का निर्माण किया गया है।
नगर निगम अधिकारियों के अनुसार गोशाला में कुल आठ टीन शेड हैं। तीन पशुबाड़े बनाए गए हैं। एक पशुबाड़े में गाय, दूसरे में सांड़ और तीसरे छोटे पशुबाड़े में बछड़े रखे जाएंगे। फिलहाल अस्थाई गोशालाओं से करीब 150 बेसहारा गोवंशों को यहां शिफ्ट कर दिया गया है।
मेरठ में कान्हा उपवन में रखे गए गोवंश को उचित स्थान तो मिल गया लेकिन भरपेट भोजन के लिए सरकारी बजट 30 रुपये पर्याप्त नहीं है। गोवंश संभालने की जिम्मेदारी निभा रही संस्था ने इतने कम पैसे में चारा उपलब्ध कराने से हाथ खड़े कर दिए हैं। संस्था ने एक ही माह में गोवंश को आठ लाख रुपये का चारा खिलाने का बिल दिया तो निगम प्रशासन के पसीने छूट गए। हालांकि अपर नगर आयुक्त अमित कुमार ने कहा है कि पैसे की कमी नहीं है। शासन से डेढ़ करोड़ रुपये मिले हैं।
मवेशियों के लिए कब्रगाह बनते कान्हा उपवन !
कान्हा उपवन बनाने के पीछे सरकार का मकसद था कि सड़क पर घूमने वाले पशुओं को मुकम्मल ठौर मिले, उनको चारा-पानी और उपचार मिल सके, लेकिन शासन की यह मंशा जिलों में फलीभूत होती नजर नहीं आ रही है। स्मार्ट सिटी के नाम पर जिला प्रशासन ने मवेशियों को शहर से बाहर निकालने का फरमान तो जारी कर दिया लेकिन व्यवस्था नहीं की गई। लिहाजा शहर में बने काजी हाउस और कान्हा उपवन अब मवेशियों से पट गए हैं।
जिला प्रशासन के इंतजाम
छुट्टा पशुओं को आश्रय देने के लिए शहर में 2 काजी हाउस और 1 कान्हा उपवन है। इसके अलावा निजी संस्था की मदद से बाबतपुर में एक कान्हा उपवन चल रहा है। इन चारों की क्षमता 2180 मवेशियों को रखने की है। नकक्खी घाट कांजी हाउस में 65, भोजूबीर कांजी हाउस में 65, बच्छाव कान्हा हाउस ने 550 और बाबतपुर में निजी संस्था की ओर से संचालित कान्हा उपवन में 1500 पशुओं को रखने की क्षमता है। इसके अलावा शाहनशाहपुर में एक कान्हा उपवन बन रहा है जिसमें दो हजार मवेशी रखे जाएंगे। नगर निगम की ओर से 5 मवेशियों के लिए 50 रुपये की खुराकी दी जाती है।
प्रशासन के फरमान से पशु पालक परेशान
स्मार्ट सिटी योजना के तहत नगर निगम ने शहर के सभी पशुपालकों को अपने मवेशी हटाने के निर्देश दिए हैं। यानी अब शहर में कोई मवेशी नहीं रख सकेगा। पशुपालकों के सामने समस्या है कि वो अपने मवेशियों को कहां भेजें। जो सक्षम हैं वो तो अपना जुगाड़ कर ले रहे हैं लेकिन अधिकांश के पास मवेशियों को बेचने या कान्हा उपवन छोडऩे के अलावा कोई चारा नहीं है। ऐसे में आने वाले दिनों में हालात और भी खराब होंगे। नगर निगम के आयुक्त आशुतोष द्विवेदी कहते हैं कि छुट्टा पशुओं की संख्या देखते हुए कान्हा उपवन की क्षमता बढ़ाई जा रही है। मवेशियों को सुरक्षित रखने की पूरी कोशिश की जा रही।
कान्हा हाउस में मरते मवेशी
छितौनी कोर्ट के पास ग्यारह करोड़ रुपये की लागत से करीब 13 एकड़ में बने कान्हा उपवन में कदम-कदम पर लापरवाही है। यहां मवेशियों को समय से चारा-पानी नहीं मिलता है और उपचार तो दूर की बात है। कर्मचारियों की कमी भी इसका एक कारण है। यहां दर्जनों गायों और सांड़ों की मौत हो चुकी है। कान्हा उपवन में दर्जनों गायों की मौत की खबर एक स्थानीय अखबार में छपने के बाद नगर निगम के अफसर इसे झूठा साबित करने में लगे रहे। बताया जा रहा है कि उमस भरी गर्मी में टिनशेड के नीचे रह रहे पशुओं में से हर दिन गाय व सांड़ मर रहे हैं।
तेजी से हो रहा गोशाला निर्माण का काम
रायबरेली जिले में 12 गौशालाएं संचालित हैं। मेंरूई ग्राम सभा खीरो में एक करोड़ 20 लाख की लागत से वृहद गौशाला केंद्र का निर्माण किया गया है। बेला खारा में जमीन अधिगृहीत कर ली गयी है। पशुओं के भरण पोषण के लिए 1 करोड़ 5 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। गोशालाओं में पशुओं की देखभाल के लिए डाक्टर और सहायक स्टाफ को भी लगाया गया है।
किसान दयानन्द त्रिपाठी ने बताया कि पशुओं के रखरखाव के धन का दुरुपयोग हो रहा है। जानवरो की कोई देखभाल नहीं हो रही है। आज भी खुले में जानवर घूम रहे हैं।
समाजसेवी शशांक सिंह राठौर ने बताया कि जानवरो के लिए मिले पैसे की आपस में ही धन की बन्दर बांट हो रही है।
व्यापारी राम जी शुक्ला ने बताया कि गोशालाओं में पशुओं को देखने वाला कोई केयरटेकर नहीं है। पूर्व में कई जानवर मर चुके हैं, आज भी किसान छुट्टा पशुओं से परेशान हैं।
पशु चिकित्सा अधिकारी गजेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि सरकार द्वारा तीन करोड़ ४५ लाख की धनराशि शासन द्वारा भेजी गयी है जिसके द्वारा गौशालाओं का निर्माण और पशुओं का भरण पोषण किया जा रहा है। उचित देखभाल के लिए ग्राम प्रधान, पंचायत सेक्रेटरी से भी मदद ली जा रही है।
(जौनपुर से कपिल देव मौर्य, गोरखपुर से पूर्णिमा श्रीवास्तव , गोंडा से तेज प्रताप सिंह, मेरठ से सुशील कुमार, वाराणसी से आशुतोष सिंह, रायबरेली से नरेन्द्र सिंह की रिपोर्ट )