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वायु प्रदूषण और कोरोना के बीच गहरा संबंध, रोकना सरकार की चुनौती

कोविड-19 के बारे में एक चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि जिन शहरों में वायु प्रदूषण अधिक है वहां कोरोना संक्रमण और मृत्युदर दोनों अधिक हैं।

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Published on: 27 March 2021 8:44 AM GMT
वायु प्रदूषण और कोरोना के बीच गहरा संबंध, रोकना सरकार की चुनौती
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वायु प्रदूषण और कोरोना के बीच गहरा संबंध, रोकना सरकार की चुनौती

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: दुनियाभर में कोरोना वायरस के कारण साढ़े 12 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हैं, जबकि 27 लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। कोरोना के नये नये स्ट्रेन आने और कोई दवाई न होने के कारण इसका प्रकोप दुनिया भर में तेजी से फैल रहा है। हर देश अपने अपने स्तर पर दवाई बनाने में जुटा है। ऐसे में कोविड-19 की वैक्सीन एक उम्मीद की किरण बनी है।

ऐसे शहरों में कोरोना अधिक प्रभावशाली

लेकिन इसका असर वास्तविक रूप से कितने प्रतिशत लोगों पर होता है यह वक्त तय करेगा लेकिन एक बात सही है कि वैक्सीन के कोरोना की मारक क्षमता में कमी आ जाती है इसलिए मास्क और छह फुट की दूरी जरूरी है। लेकिन कोविड-19 के बारे में एक चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि जिन शहरों में वायु प्रदूषण अधिक है वहां कोरोना संक्रमण और मृत्युदर दोनों अधिक हैं। इसलिए सरकार के लिए कोरोना के साथ वायु प्रदूषण से निपटना एक चुनौती है।

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हाल में हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों के एक शोध ने दुनिया भर की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। शोध से ये बात सामने आई है कि जिन शहरों में वर्षों पहले भी पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा था, वहां कोविड 19 या कोरोना वायरस के कारण मौत का आंकड़ा बढ़ सकता है। ये अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल एनवायर्नमेंटल पोल्युशन में प्रकाशित किया गया है।

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प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों को कोरोना से मृत्यु का खतरा अधिक

हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन किया है। ये शोध अमेरिका में किया गया है। जिसमें पीएम 2.5 के कणों को आधार बनाते हुए कहा गया कि प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों को कोरोना से मृत्यु का खतरा अधिक है। अध्ययन अमेरिका के उन 1783 जिलो में किया गया, जहां अप्रैल 2020 तक कोरोना वायरस के कारण 90 प्रतिशत लोगों की मौत हुई थी।

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क्या कहते हैं अमेरिका और इटली आंकड़े ?

ये भी कहा जा सकता है, अमेरिका में 90 प्रतिशत मौत उन शहरों में हुई जहां वायु प्रदूषण अधिक है। कोरोना के आंकड़ों के साथ ही यहां वायु प्रदूषण के आंकड़ों का भी अध्ययन किया गया। जिसमें पीएम 2.5 के पिछले बीस साल के आंकड़ो के आधार पर मौतों की माडलिंग की गई। इसमें अमेरिका का मेनहटन भी शामिल है, जहां कोरोना वायरस के कारण अभी तक 1900 से ज्यादा लोग मरे। अध्ययन से ये बात सामने आई कि प्रति क्यूबिक मीटर में 1 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 की वृद्धि के कारण कोविड 19 की मृत्युदर में 15 प्रतिशत का इजाफा हो सकता है।

इसके अलावा इटली में हुए इस शोध में ये भी स्वीकारा गया था कि वायु प्रदूषण के कारण कोरोना के चलते होने वाली मौतों में इजाफा हो रहा है या हो सकता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण इटली का उत्तरी भाग है। दरअसल इटली के उत्तरी भाग में वायु प्रदूषण अन्य इलाकों की अपेक्षा काफी ज्यादा है। यहां कोरोना से मरने वालो की संख्या भी करीब तीन गुना ज्यादा है। इटली के उत्तरी भाग में कोविड 19 की मृत्युदर 12 प्रतिशत है, जबकि इटली के अन्य हिस्सों में मृत्युदर 4.5 प्रतिशत ही है।

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ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसका प्रभाव भारत पर भी बड़े पैमाने पर पड़ सकता है, क्योंकि दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर भारत में ही हैं और वायु प्रदूषण के कारण भारत में हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है।

भारत के लिए चिंता का विषय

अगर इस शोध को आधार मानकर चले तो भारत के लिए भी ये चिंता का विषय हैं क्योंकि भारत में दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, पटना, लखनऊ, जोधपुर, आगरा, वाराणसी, गया, कानपुर, सिंगरौली, पाली, कोलकाता, मुंबई जैसे प्रदूषित शहर हैं। इन स्थानों पर वायु प्रदूषण लंबे समय से काफी ज्यादा है। ऐसे में सांस या फेंफड़े की बीमारी वाले लोगों की संख्या भी ज्यादा है। कोरोना के कारण सबसे ज्यादा संक्रमण और मौतें भी महाराष्ट्र में ही रही हैं।

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वायु प्रदूषण के कारण फेंफड़ें कमजोर

दरअसल वायु प्रदूषण के कारण फेंफड़ें कमजोर हो जाते है। कोरोना वायरस भी फेंफड़ो पर ही अटैक करता है और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। ऐसे में शोध की माने तो खतरा और भी ज्यादा बढ़ गया है। गत दिवस केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावडेकर की उपस्थिति में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के अंतर्गत शहर केन्द्रित कार्य-योजनाओं के कार्यान्वयन के उद्देश्य से चिह्नित 132 शहरों के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, शहरी स्थानीय निकायों और प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

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श्री जावडेकर ने भी कहा है कि ‘स्वच्छ भारत, स्वच्छ वायु’ के विजन को हकीकत बनाने की दिशा में देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए राज्य सरकारों और सभी संबंधित विभागों द्वारा ठोस प्रयास किए जाने की जरूरत है। उन्होंने सभी से मिशन मोड में काम करने का आह्वान किया। पर्यावरण मंत्री ने कहा, “आज की पहल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अगले 4 साल में 100 से ज्यादा शहरों में वायु प्रदूषण में 20 प्रतिशत तक कमी लाने के विजन के अनुरूप है। यह आसान कार्य नहीं बल्कि एक कठिन चुनौती है, जिसे हम सभी को मिलकर हासिल करने की जरूरत है।

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