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Rs 2000 Notes: धडल्ले से बदले 2000 के नोट, अब नहीं देना होगा कोई आईडी प्रूफ
Rs 2000 Notes: उपाध्याय ने याचिका में कहा था कि पहचान प्रमाण के बिना 2,000 रुपये के नोटों को जमा करने की अनुमति देना गलत काम करने वालों को गलत कमाई या काले धन को सफेद करने का निमंत्रण है।
Rs 2000 Notes: जब से केंद्र बैंक ने 2000 के नोट को चलन से बाहर करते हुए तय सीमा तक बैंक में जमा करने के फैसला सुनाया था, तब से नोट बदलने को लेकर लोगों के बीच में बड़ी दुविधा उत्पन्न थी कि आईडी प्रूफ लेकर बैंक जाएं या नहीं। यह दुविधा बैंकों की ओर से ही उत्पन्न हुई थी। कई सरकारी बैंक बिना आईडी के 2 हजार रुपये के नोट बदल रही हैं तो कई सरकारी बैंक इस काम के लिए जतना से आईडी काम मांग रही हैं। फिलहाल, नोट बदली को लेकर ग्राहकों और बैंकों के बीच कोई संशय न पैदा हो, इसको लेकर देश की सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसला ही सुन दिया है। फैसला यह है कि अब कोई भी बैंक 2000 रुपये ने नोट बदलने के लिए किसी भी ग्राहक से आईडी की मांग नहीं करेगा।
जानें क्या है पूरा मामला
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बिना आईडी प्रूफ के 2000 रुपये के नोटों को बदलने की अनुमति देने वाले आरबीआई सर्कुलर के खिलाफ याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए इसे कार्यकारी शासन का एक क्षेत्र करार दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि 2000 रुपये के नोटों को बदलने की अनुमति देना कार्यकारी नीति निर्णय का मामला है। हालांकि उपाध्याय ने याचिका में कहा था कि पहचान प्रमाण के बिना 2,000 रुपये के नोटों को जमा करने की अनुमति देना गलत काम करने वालों को गलत कमाई या काले धन को सफेद करने का निमंत्रण है।
आईडी मांगना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं
वहीं, सीजेआई ने सुनवाई करते हुए कहा कि इसे दूसरे नजरिये से देखें। जब कोई व्यक्ति 500 रुपये का नोट लेकर किराने की दुकान पर जाता है तो क्या स्टोर मैनेजर पहचान प्रमाण मांगता है या उस व्यक्ति से उस नोट की प्राप्ति का विवरण देने के लिए कहता है? आप जो पूछ रहे हैं वह वांछनीय हो सकता है, लेकिन कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है।
उच्च न्यायालय ने भी खारिज की थी याचिका
इससे पहले उच्च न्यायालय ने वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें दावा किया गया था कि बिना सबूत के 2,000 रुपये के बैंक नोटों के आदान-प्रदान को सक्षम करने वाली आरबीआई और एसबीआई की अधिसूचनाएं मनमानी थीं और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों के खिलाफ थीं। इस पर सुनवाई करते हुए तब उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता कि सरकार का निर्णय विकृत या मनमाना है या यह काले धन, मनी लॉन्ड्रिंग, मुनाफाखोरी को बढ़ावा देता है या भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
नोट बंदी वाली यह याचिका भी खारिज
इसके अलावा दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में 2,000 रुपये मूल्यवर्ग के बैंक नोटों को प्रचलन से वापस लेने के आरबीआई के फैसले को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को भी खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता रजनीश भास्कर गुप्ता ने दलील दी थी कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास 2,000 रुपये के नोटों को प्रचलन से वापस लेने की कोई शक्ति नहीं है। केवल केंद्र ही इस संबंध में निर्णय ले सकता था।
30 सितंबर तक जमा होंगे नोट
आपको बता दें कि 19 मई को आरबीआई ने 2,000 रुपये के नोटों को प्रचलन से वापस लेने की घोषणा की थी और कहा था कि प्रचलन में मौजूदा नोटों को बैंक खातों में जमा किया जा सकता है या 30 सितंबर तक बदला जा सकता है। आरबीआई ने एक बयान में कहा था कि हालांकि 2,000 रुपये मूल्यवर्ग के बैंक नोट वैध मुद्रा बने रहेंगे।