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Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह की सुनवाई के दौरान उठा बहन की तरफ आकर्षित होने का मुद्दा, SG और CJI के अपने-अपने तर्क
Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज को लेकर जारी सुनवाई में केंद्र सरकार ने दलील दी, कि दुनिया भर में अनाचार असामान्य नहीं है। इस पर रोक है। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल ने बहन-भाई के साथ रिश्तों का भी जिक्र किया।
Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के समर्थन वाली याचिकाओं पर गुरुवार (27 अप्रैल) को भी सुनवाई हुई। केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश की। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (SG Tushar Mehta) ने सेक्सुअल ओरिएंटेशन का जिक्र किया। उन्होंने कहा, 'इसे लेकर भी दो विचार हैं। एक पक्ष कहता है कि इसे हासिल भी किया जा सकता है, जबकि दूसरा कहता है कि यह एक सहज चरित्र है।'
शीर्ष अदालत के सामने अपनी दलील पेश करते हुए एसजी तुषार मेहता ने एक स्थिति की कल्पना की। कहा, 'मान लीजिए कोई व्यक्ति अपनी बहन की ओर आकर्षित होता है और स्वायत्तता (Autonomy) का दावा करता है। कहता है कि हम निजी तौर पर इन गतिविधियों में जाने का दावा कर सकते हैं। ऐसे हालात में यह कहकर चुनौती नहीं दी जा सकती, कि इसे कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है?'
'विवाह के सभी पहलुओं में सेक्सुअल ओरिएंटेशन नहीं'
सॉलिसिटर जनरल के इस तर्क पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा, 'ये बहुत दूर की कौड़ी है। विवाह के सभी पहलुओं में सेक्सुअल ओरिएंटेशन तथा स्वायत्तता का प्रयोग नहीं किया जा सकता। ये तर्क नहीं दिया जा सकता कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन इतना मजबूत है कि अनाचार की अनुमति दी जाए।'
SC ने स्वीकारा कानूनी मान्यता संसद का अधिकार
आज हुई जिरह के दौरान शीर्ष अदालत ने माना कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता प्रदान करना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बारे में विचार करने के लिए कहा है कि, वैवाहिक स्थिति प्रदान किए बिना समान यौन साझेदारों (same sex partners) को कुछ सामाजिक अधिकारों तक कैसे पहुंच प्राप्त कराई जा सकती है।
SC ने केंद्र को बुलाया
सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक लाभों पर अपनी प्रतिक्रिया के साथ केंद्र को 3 मई को सुनवाई में वापस आने के लिए कहा है। कोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि, 'क्या समलैंगिक जोड़ों को उनकी वैवाहिक स्थिति की कानूनी मान्यता के बिना भी सामाजिक लाभ की अनुमति दी जा सकती है?