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Election Commission: चुनाव आयोग करे चुनावी दान का खुलासा - सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

Election Commission: सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग से 30 सितंबर, 2023 तक भारतीय स्टेट बैंक और राजनीतिक दलों से चुनावी बांड पर डेटा इकट्ठा करने और बांड के माध्यम से आए सभी दान के डेटा का खुलासा करने का निर्देश दिया है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 2 Nov 2023 2:11 PM GMT
Election Commission should disclose election donations - Supreme Court
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चुनाव आयोग करे चुनावी दान का खुलासा - सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: Photo- Social Media

Election Commission: सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग से 30 सितंबर, 2023 तक भारतीय स्टेट बैंक और राजनीतिक दलों से चुनावी बांड पर डेटा इकट्ठा करने और बांड के माध्यम से आए सभी दान के डेटा का खुलासा करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलें सुनने के बाद राजनीतिक दलों को फंडिंग के लिए चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 31 अक्टूबर को मामले की सुनवाई शुरू की थी। कोर्ट में दाखिल चार याचिकाओं में कांग्रेस नेता जया ठाकुर, सीपीआई (एम) और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिकाएं शामिल थीं।

क्या है याचिकाकर्ताओं और सरकार का तर्क

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि यदि चुनावी बांड योजना का उद्देश्य नकद दान को समाप्त करना है, तो यह हासिल नहीं हुआ है। जबकि केंद्र ने सॉलिसिटर जनरल के माध्यम से तर्क दिया है कि चुनावों में इस्तेमाल होने वाला काला धन, एक ऐसी समस्या है जिससे दुनिया भर के देश जूझ रहे हैं, डिजिटल भुगतान के माध्यम से समाप्त हो जाएगा। केंद्र सरकार ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड योजना मतदान प्रक्रिया में अवैध धन के खतरे को खत्म करने का एक विवेकपूर्ण प्रयास है।

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सुनवाई के आखिरी दिन केंद्र की तरफ से पेश सोलिसिटर ने दलील दी कि चुनावी बांड योजना सभी के साथ समान व्यवहार करती है। यह काले धन से दूर एक विनियमित प्रणाली की ओर जाने में मदद करेगा, जो सार्वजनिक हित में काम करती है। उन्होंने कहा कि योगदानकर्ता की गोपनीयता अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जिसे योजना के तहत संरक्षित किया जाता है।

2018 से है यह योजना

इस योजना को सरकार द्वारा 2 जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया गया था और इसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। इसके प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बांड किसी भी भारतीय नागरिक या भारत में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है। केवल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल, और जिन्होंने लोकसभा या राज्य विधान सभा के पिछले चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किए हों, चुनावी बांड प्राप्त करने के पात्र हैं।

कोर्ट की अब तक की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बांड योजना "चुनिंदा रूप से गुमनाम" है। उन्होंने कहा - योजना के साथ समस्या यह है कि यह चयनात्मक गुमनामी प्रदान करती है, सामान्य नहीं। यह स्टेट बैंक या कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए उपयुक्त नहीं है। एक बड़ा दानकर्ता कभी भी राजनीतिक दलों को देने के लिए चुनावी बांड नहीं खरीदेगा।

उन्होंने आगे कहा कि यह योजना एक समान अवसर प्रदान नहीं करती है, जिससे "सूचना संबंधी कमी" पैदा होती है। हो सकता है कि पहले की योजना से इतने काले धन पर रोक लगाने में मदद नहीं मिली हो, लेकिन यह खुलासा हुआ कि दान किसे दिया जा रहा था। अब, आधिकारिक चैनल में अधिक काले धन को लाने के प्रयास में, सूचनात्मक छेद है और उद्देश्य प्रशंसनीय है, लेकिन हमें साधनों पर ध्यान देना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि चुनावी बांड योजना को रिश्वत का वैधीकरण नहीं बनना चाहिए, और सत्ता केंद्रों और इससे लाभान्वित होने वाले लोगों के बीच बदले की भावना से काम नहीं लेना चाहिए।

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केंद्र का तर्क

संविधान पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत इस विशेष योजना को काले धन की समस्या से निपटने की दिशा में एक एकल प्रयास के रूप में नहीं ले सकती है। मेहता ने डिजिटल भुगतान और वर्ष 2018 और 2021 के बीच 2.38 लाख शेल कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई सहित काला धन से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों पर प्रकाश डाला। मेहता ने कहा, आम तौर पर चुनावों और राजनीति में और विशेषकर चुनावों में काले धन का इस्तेमाल होता है। हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर प्रत्येक देश द्वारा देश-विशिष्ट मुद्दों से निपटा जा रहा है। भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है।

उन्होंने अदालत में दायर अपनी लिखित दलील में कहा, देश की चुनावी प्रक्रिया को चलाने में बेहिसाब नकदी (काला धन) का इस्तेमाल देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। डिजिटलीकरण की भूमिका का उल्लेख करते हुए मेहता ने कहा कि भारत में लगभग 75 करोड़ मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं और हर तीन सेकंड में एक नया इंटरनेट उपयोगकर्ता जुड़ रहा है। उन्होंने कहा, भारत में डिजिटल भुगतान की मात्रा अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग सात गुना और चीन की तुलना में तीन गुना है।

मेहता ने कहा कि कई तरीकों को आजमाने के बावजूद प्रणालीगत विफलताओं के कारण काले धन के खतरे से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा जा सका है, इसलिए वर्तमान योजना बैंकिंग प्रणाली और चुनाव में सफेद धन को सुनिश्चित करने का एक विवेकपूर्ण और श्रमसाध्य प्रयास है।

याचिकाकर्ताओं की इस दलील का जिक्र करते हुए कि चुनावी बॉन्ड योजना से सत्ताधारी दल को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है, उन्होंने कहा, सत्तारूढ़ दल को अधिक योगदान मिलना एक परिपाटी है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने पूछा कि आपके अनुसार, ऐसा क्यों है कि सत्ताधारी दल को चंदे का एक बड़ा हिस्सा मिलता है, इसका कारण क्या है।

मेहता ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि जो भी पार्टी सत्तारूढ़ होती है उसे ज्यादा चंदा मिलता है, हालांकि उन्होंने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत जवाब है, सरकार का जवाब नहीं है। जब पीठ ने आंशिक गोपनीयता का हवाला दिया और कहा कि सत्ता में बैठे व्यक्ति के पास विवरण तक पहुंच हो सकती है, तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जानकारी पूरी तरह से गोपनीय है।

पीठ ने कहा, यह एक अस्पष्ट क्षेत्र है। आप ऐसा कह सकते हैं, दूसरा पक्ष इससे सहमत नहीं होगा। दिन भर चली सुनवाई के दौरान एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने तर्क दिया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की बुनियादी संरचना है और राजनीतिक दलों की गुमनाम कॉर्पोरेट फंडिंग, जो अनिवार्य रूप से पक्षपात के लिए दी गई रिश्वत है, सरकार की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली की जड़ पर प्रहार करती है। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड गुमनाम कॉर्पोरेट फंडिंग का एक साधन है जो पारदर्शिता को कमजोर करता है और अपारदर्शिता को बढ़ावा देता है।

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9 हजार करोड़ से ज्यादा का चन्दा

इस बीच, चुनावी बांड को लेकर एडीआर का डेटा सामने आया है। जिसमें पता चला है कि 2021-22 तक चुनावी बांड से सभी राजनीतिक दलों को मिलाकर 9,188 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा मिला है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस तरह सबसे ज्यादा चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है जिसकी प्रतिशतता 57 है वहीं कांग्रेस को इस राशि का 10 प्रतिशत चंदा मिला है।

एडीआर डेटा के मुताबिक, साल 2016-17 से 2021-22 के बीच सात राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बांड के जरिए कुल 9,188.35 करोड़ रुपये का दान प्राप्त हुआ। इसमें से भाजपा को को 5,272 करोड़ रुपये और कांग्रेस को 952 करोड़ रुपये मिले। वहीं, शेष धनराशि में पांच अन्य दल शामिल रहे।

Shashi kant gautam

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