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SC Decision: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अवैध विवाह से पैदा संतानों को भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति में मिलेगा हक
Supreme Court Latest Judgement: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले का निपटारा करते हुए कहा, कि अमान्य और शून्य विवाह (Void marriage) से पैदा संतानों को भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हक मिलेगा।
SC on Children of Invalid Marriages: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (01 सितंबर) को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा, अमान्य और शून्य विवाह (Void marriage) से पैदा संतानों को भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में हक मिलेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने नई व्यवस्था देते हुए ये भी कहा कि, 'ऐसे बच्चों को भी वैध कानूनी वारिसों के साथ हिस्सा मिले। इस तरह अब हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16(3) का दायरा बढ़ाया जाएगा।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 11 साल बाद एक मामले के निपटारे के दौरान ये फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI Chandrachud), जस्टिस जे.बी. पारदीवाला (Justice J.B. Pardiwala) और जस्टिस मनोज मिश्रा (Justice Manoj Mishra) की खंडपीठ ने ये अहम फैसला सुनाया है।
मृत माता-पिता की पैतृक संपत्ति के हिस्सेदार
सर्वोच्च अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि, 'अवैध या शून्य विवाह से पैदा हुए संतान अपने मृत माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार हैं। हालांकि, ऐसे बच्चे अपने माता-पिता के अलावा किसी अन्य तरह की संपत्ति के हकदार नहीं होंगे।' शीर्ष अदालत ने ये स्पष्ट किया है कि यह फैसला केवल 'हिंदू मिताक्षरा कानून' द्वारा शासित हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्तियों पर लागू है।
क्या था मामला?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 3 सदस्यीय खंडपीठ ने रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2011) केस में दो-जजों की पीठ के फैसले के खिलाफ एक मामले पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें कहा गया था कि 'शून्य/अमान्य विवाह (Void marriage) से उत्पन्न हुए बच्चे अपने उत्तराधिकार के हकदार हैं, माता-पिता की संपत्ति चाहे स्वअर्जित हो या पैतृक।'
क्या था मामला?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 3 सदस्यीय खंडपीठ ने रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2011) केस में दो-जजों की पीठ के फैसले के खिलाफ एक मामले पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें कहा गया था कि 'शून्य/अमान्य विवाह (Void marriage) से उत्पन्न हुए बच्चे अपने उत्तराधिकार के हकदार हैं, माता-पिता की संपत्ति चाहे स्वअर्जित हो या पैतृक।'
क्या कहता है कानून?
बता दें, इस मामले में मुद्दा हिंदू विवाह अधिनियम-1955 (Hindu Marriage Act-1955) की धारा-16 की व्याख्या से संबंधित है, जो अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करता है। हालांकि, धारा-16(3) में ये भी कहा गया है कि ऐसे बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति के हकदार हैं। अन्य सहदायिक शेयरों पर उनका कोई अधिकार नहीं होगा। इस संदर्भ में प्राथमिक मुद्दा ये था कि 'हिंदू मिताक्षरा कानून' द्वारा शासित हिंदू अविभाजित परिवार में संपत्ति को माता-पिता की कब माना जा सकता है।
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने ये कहा
इसी का जवाब देते हुए बेंच ने बताया कि, 'हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) की धारा-6 के अनुसार, हिंदू मिताक्षरा संपत्ति में सहदायिकों के हित को उस संपत्ति के हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया है, जो संपत्ति का विभाजन होने पर उन्हें आवंटित किया गया होता। अदालत ने माना है कि, अमान्य विवाह से पैदा संतान ऐसी संपत्ति के हकदार हैं, जो उनके माता-पिता की मृत्यु पर काल्पनिक विभाजन पर हस्तांतरित होगी।'
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने ये कहा
इसी का जवाब देते हुए बेंच ने बताया कि, 'हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) की धारा-6 के अनुसार, हिंदू मिताक्षरा संपत्ति में सहदायिकों के हित को उस संपत्ति के हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया है, जो संपत्ति का विभाजन होने पर उन्हें आवंटित किया गया होता। अदालत ने माना है कि, अमान्य विवाह से पैदा संतान ऐसी संपत्ति के हकदार हैं, जो उनके माता-पिता की मृत्यु पर काल्पनिक विभाजन पर हस्तांतरित होगी।'
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