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राज्यों से आरक्षण पर सवाल, क्या बदलेगा देश का सिस्टम
सुप्रीम कोर्ट ने एक सवाल उठाया है कि क्या केंद्र और राज्य 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण दे सकते हैं। जबकि इंदिरा साहनी केस के फैसले के मुताबिक असाधारण स्थितियों को छोड़कर आरक्षित सीटों की संख्या 50 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने एक सवाल उठाया है कि क्या केंद्र और राज्य 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण दे सकते हैं। जबकि इंदिरा साहनी केस के फैसले के मुताबिक असाधारण स्थितियों को छोड़कर आरक्षित सीटों की संख्या 50 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि तमाम राज्य ऐसे हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार कर दिया है।
राज्यों की ओर देखा जाए तो मौजूदा व्यवस्था में सबसे ज्यादा 82 फीसद आरक्षण छत्तीसगढ़ में है। हरियाणा में 70 फीसदी, तमिलनाडु में 69, झारखंड में 60 और राजस्थान में 54 फीसदी आरक्षण है। शीर्ष अदालत अब इंदिरा साहनी फैसले के 29 साल बाद इस फैसले को बड़ी पीठ के समक्ष भेजने पर विचार कर रही है। 1992 में इस फैसले को नौ जजों की पीठ ने दिया था।
दूसरे राज्यों के विचार जानना भी आवश्यक हैं
महत्वपूर्ण बात यह है कि 15 मार्च से इस पर रोजाना सुनवाई शुरू होगी। इसमें सुप्रीम कोर्ट कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर विचार करेगा। पीठ यह जानना चाहती है कि संविधान संशोधनों और सामाजिक आर्थिक बदलावों के मद्देनजर इस मामले का फिर से परीक्षण किया जा सकता है या नहीं। दूसरे यह मामला केवल राज्य से संबंधित नहीं है इसलिए दूसरे राज्यों के विचार जानना भी आवश्यक हैं।
पीठ के मुताबिक उसके निर्णय का व्यापक प्रभाव होगा। लेकिन 102 वां संविधान संशोधन राज्य की विधायिका को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों का निर्धारण करने वाले कानून को लागू करने से रोकता है। इसके अलवा 103 वें संविधान संशोधन के लिए केंद्र का पक्ष जानना भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए दस फीसद आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
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ताजा मामला मराठा आरक्षण का है
अदालत के समक्ष इस संबंध में सबसे ताजा मामला मराठा आरक्षण का है। जिस पर अदालत ने अंतरिम रोक लगाई हुई है। वरिष्ठ अधिवक्ता वेणुगोपाल का मानना है कि अनुच्छेद 338बी और 342ए प्रत्येक राज्य की शक्ति को प्रभावित करते हैं। कोई भी राज्य 2018 के बाद किसी वर्ग को आरक्षण नहीं दे सकता है।
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वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी का भी कहना है कि सभी राज्यों को सुने बिना फैसला नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि फैसले से सभी राज्य प्रभावित होंगे। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल भी इसी मत के हैं कि केवल केंद्र और महाराष्ट्र को ध्यान में रखकर सुनवाई न की जाए।
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