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झारखंड में लॉकडाउन के दौरान जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव, हंगर वॉच का सर्वे

सर्वे में बताया गया है कि, तालाबंदी शुरू होने के बाद से लगभग सभी परिवारों में मासिक आय कम हुई है। उत्तर देने वाले आधे परिवारों की अप्रैल और मई में कोई आमदनी नहीं हुई है।

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Published on: 31 Dec 2020 11:52 AM IST
झारखंड में लॉकडाउन के दौरान जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव, हंगर वॉच का सर्वे
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झारखंड में लॉकडाउन के दौरान जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव, हंगर वॉच का सर्वे (PC: social media)

रांची: देश के साथ ही झारखंड में भी कोरोना महामारी को देखते हुए लॉकडाउन लगाया गया। तालाबंदी के दौरान लोगों को काफी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। भोजन का अधिकार अभियान द्वारा किए गए हंगर वॉच सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। 12 सितंबर से लेकर 10 अक्टूबर तक राज्यभर में किए गए सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान 19 प्रतिशत लोगों को अपनी जाति या धर्म के आधार पर भोजन पाने या फिर बेचने में भेदभाव का सामना करना पड़ा। ये सर्वे ये भी बताता है कि, तालाबंदी के काल में 17 प्रतिशत परिवारों में से कम से कम एक सदस्य को भूखा पेट सोना पड़ा।

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सर्वे की मुख्य बातें

सर्वे में बताया गया है कि, तालाबंदी शुरू होने के बाद से लगभग सभी परिवारों में मासिक आय कम हुई है। उत्तर देने वाले आधे परिवारों की अप्रैल और मई में कोई आमदनी नहीं हुई है। 58 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि, लॉकडाउन शुरू होने के बाद भोजन के लिए पैसे उधार लेने पड़े। इसके लिए 11 प्रतिशत परिवारों को जेवर तक गिरवी रखना पड़ा। 08 प्रतिशत परिवारों को ज़मीन बेचने के लिए भी विवश होना पड़ा। सर्वे में शामिल 40 प्रतिशत लोगों को डर है कि, आने वाले दिनों में उनकी हालत और बिगड़ सकती है।

jharkhand-matter jharkhand-matter (PC: social media)

राज्य में पीडीएस की स्थिति

सर्वे में पाया गया है कि, अन्य खाद्य योजनाओं के मुकाबले सार्वजनिक वितरण प्रणाली नियमित रूप से चलती रही। 94 प्रतिशत परिवारों को अप्रैल से अगस्त तक हर महीने अनाज मिलता रहा। 69 प्रतिशत बच्चों को मिड डे मील योजना के तहत भोजन के एवज़ में सूखा राशन मिला। 53 प्रतिशत परिवारों को आंगनबाड़ी केंद्रों से सूखा राशन दिया गया।

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jharkhand-matter jharkhand-matter (PC: social media)

झारखंड सरकार से मांग

लॉकडाउन के कारण लोगों के कष्ट अगले कई महीने जारी रहने की आशंका है। लिहाज़ा, भोजना का अधिकार अभियान के तहत राज्य सरकार से कुछ मांग की गई है।

1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में और लोगों को शामिल किया जाए।

2. पीडीएस के तहत खाद्य तेल और दाल को शामिल किया जाए।

3. आंगनबाड़ी को खोला जाए और मिड डे मील में अंडा दिया जाए।

4. आदिम जनजाति, बुजुर्ग और भूमिहीनों के लिए विशेष पैकेज दिया जाए।

5. हर गांव में नरेगा के तहत योजनाएं शुरू हों।

6. नरेगा के तहत कम से कम 100 दिन का रोज़गार दिया जाए।

7. बुजुर्ग, विकलांग और एकल महिला को 2000 रुपए का मासिक पेंशन दिया जाए।

8. गर्भवती और धात्री महिलाओं को 6000 रुपए का मातृत्व लाभ दिया जाए।

रिपोर्ट- शाहनवाज़

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