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भारत में ऐसे डायनासोर: सर्वेक्षण में हुआ खुलासा, 19 करोड़ साल पहले का सच

लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रोफेसर रहे डा. अशोक साहनी को भारत सरकार के पृथ्वी मंत्रालय ने वर्ष 2020 के लाइफ टाइम एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित किया है।

Newstrack
Published on: 31 July 2020 9:11 AM GMT
भारत में ऐसे डायनासोर: सर्वेक्षण में हुआ खुलासा, 19 करोड़ साल पहले का सच
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लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रोफेसर रहे डा. अशोक साहनी को भारत सरकार के पृथ्वी मंत्रालय ने वर्ष 2020 के लाइफ टाइम एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित किया है। डा. साहनी को यह सम्मान उनके द्वारा भूगर्भ व जीवश्म विज्ञान के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्य के लिए दिया गया है। उन्हे पांच लाख रुपये का नकद पुरुस्कार व प्रशस्ति पत्र दिया गया है। डा. साहनी का प्रतिष्ठित कार्य उनके द्वारा नर्मदा नदी के किनारे खोजे गए डायनासोर का जीवाश्म है।

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दरअसल नेशनल ज्योग्राफिकल जर्नल की ने भारत में नर्मदा के तटीय इलाकों में एक सर्वेक्षण अभियान चलाया था। इस अभियान की टीम में अमेरिका की मिशीगन विश्वविद्यालय और भारत की पंजाब विश्वविद्यालय के जीवश्म विशेषज्ञ शामिल थे और डा. अशोक साहनी भी इसी टीम का हिस्सा थे। इस यूएस-इंडो संयुक्त सर्वेक्षण अभियान में पहली बार भारत में नर्मदा नदी के किनारे डायनासोर की खोपड़ी के हिस्से मिले थे, जो 09 फीट ऊंचे थे। इन हिस्सों को जोड़ कर इसका ढ़ाचा तैयार किया गया। इस डायनासोर के सर की बनावट अलग तरह की थी और नर्मदा घाटी में पाए जाने के कारण इसका नाम रोजासोरस नर्मेदेेंसिस रखा गया। पूरी दुनिया में चल रहे डायनासोर के अध्ययन और शोध में इससे बहुत मदद मिलने की उम्मीद है।

भारत में डायनासोर की खोज

जीवाश्म विज्ञानियों व विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में करीब 19 करोड़ साल पहले 20 तरह के डायनासोर पाए जाते थे। भारतीय जीवाश्म वैज्ञानिकों द्वारा पिछले 57 साल में खोजे गए डायनासोर के जीवाश्म से इस बात की पुष्टि होती है। यह देश के पश्चिमी भाग से लेकर दक्षिणी हिस्से तक में स्थित थे। जीवाश्म विज्ञानी डा. साहनी के मुताबिक, वर्ष 1824 में इंग्लैंड के सांइटिफिक जर्नल में डायनासोर को प्रजाति का दर्जा मिलने के चार साल बाद वर्ष 1828 में जबलपुर में एशिया का पहला डायनासोर पाया गया था। उन्होंने बताया कि इसके बाद मध्य भारत में डायनासोर के लगभग 1000 से ज्यादा अलग-अलग प्रकार के अंडे पाए गए थे। जो संभवतः दुनियाभर में किसी एक जगह पर पाए गए अंडों के मुकाबले सबसे अधिक थे। इसके अलावा भारत में कई जगहों से डायनासोर के जीवाश्म मिले हैं, इनमें कच्छ के रण का इलाके के अलावा राजस्थान के जैसलमैर और मध्य प्रदेश के नर्मदा तटीय इलाके शामिल हैं।

भारत-जर्मन के भूवैज्ञानिकों और जीवाश्म विज्ञानियों ने 15 करोड़ साल पुराने डायनासोर के अवशेष खोजे

भारत-जर्मन के भूवैज्ञानिकों और जीवाश्म विज्ञानियों ने गुजरात के कच्छ से 15 करोड़ साल पुराने डायनासोर के अवशेष को खोज निकाला। यहां मिली दो फुट लंबी कूल्हे की हड्डी से डायनासोर के खोजी टीम के सदस्यों का मानना है कि ये डायनासोर 10-15 मीटर लंबे रहे होंगे। गुजरात के कच्छ से डायनासोर का जबड़ा, रीढ़ की हड्डी और दो पसलियां बिल्कुल जुड़ी और स्पष्ट थी। कच्छ यूनिवर्सिटी के तत्कालीन रजिस्ट्रार और जिओलॉजिस्ट डॉ. महेश ठक्कर ने बताया था कि यूनिवर्सिटी के जिओलाजी विभाग के कुछ बच्चे यहां लोडाई गांव में डायनासोर के अवशेषों खोज में लगे हुए थे और उन्हे थोड़ी सी खुदाई करने पर डायनासोर के जबड़े जैसे अवशेष दिखाई दिए थे।

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भारत में कच्छ के अलावा जैसलमेर में भी डायनासोरों की उपस्थिति रहने की जानकारी मिली है। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग एवं प्राणी विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने थार की भूमि पर डायनासोर के पैरों के निशान खोजे थे। वैज्ञानिकों को जैसलमेर जिले के थईयात क्षेत्र में मध्य जुरासिक काल के यूब्रोंटस ग्लेनरोसेंसिस कहे जाने वाले डायनासोर होने के प्रमाण मिले हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये 30 सेमी लंबे और मजबूत पंजे का निशान है। अनुमान है कि यह जीव उडने वाले डायनासोर और धरती पर चलने वाले डायनासोर के बीच की श्रेणी का है। उन्होंने बताया कि अभी तक इसके अवशेष नहीं पाए गए हैं, लेकिन पंजे का निशान पाया जाना भारतीय वैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है।

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