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Swami Vivekananda: ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है, जानिए महान स्वामी विवेकानंद की जीवनी

Swami Vivekananda Death Anniversary: स्वामी विवेकानंद की मृत्यु की वार्षिक दिवस प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिवस स्वामी विवेकानंद की याद और उनके योगदान को समर्पित होता है। स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी।

Vertika Sonakia
Published on: 4 July 2023 7:23 AM IST
Swami Vivekananda: ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है, जानिए महान स्वामी विवेकानंद की जीवनी
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Swami Vivekananda Death Anniversary(Photo: Social Media)

Swami Vivekananda Death Anniversary: स्वामी विवेकानंद की मृत्यु की वार्षिक दिवस प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिवस स्वामी विवेकानंद की याद और उनके योगदान को समर्पित होता है। स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी। इस दिन, भारत और विश्व के विभिन्न हिंदू आध्यात्मिक संस्थानों और संगठनों में विशेष प्रतिष्ठान होती है। यह दिन स्वामी विवेकानंद के विचारों, ज्ञान, और उनके जीवन को स्मरण करने का एक अवसर होता है। इस दिन लोग उनके उपदेशों को याद करते हैं और उनके द्वारा शिक्षा दी गई मूल्यों को अपनाने का संकल्प लेते हैं।
स्वामी विवेकानंद के निधन के बावजूद, उनका आध्यात्मिक और सामाजिक उद्दीपन आज भी महत्वपूर्ण है। उनके विचार, ज्ञान और दर्शन ने मानवता को जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सोचने और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। उनकी याद में, लोग उनकी प्रेरणादायक वाणी को पढ़ते हैं ।

स्वामी विवेकानंद का जन्म

स्वामी विवेकानंद एक प्रमुख आध्यात्मिक और सामाजिक नेता थे, जिनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता, भारत में हुआ। उनके असाधारण विचारधारा, व्यक्तित्व और योगदान ने उन्हें एक विश्वविद्यालयी आध्यात्मिक गुरु बना दिया।
स्वामी विवेकानंद का अस्तित्व उनके गुरु, श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रभाव में था। उन्होंने बचपन में ही धार्मिक और आध्यात्मिक उत्साह प्रकट किया और उनके शिक्षकों ने उनकी अद्वैत वेदांत दर्शन और सामर्थ्य को पहचाना।

स्वामी विवेकानंद की प्रारंभिक शिक्षा

स्वामी विवेकानंद की प्रारम्भिक शिक्षा उनके परिवार में ही हुई। उनके पिता श्री विष्णु भट्ट दत्त एक विद्वान और धार्मिक व्यक्ति थे और उनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक माता थीं। वे एक संतान परायण परिवार से संबंध रखते थे और आध्यात्मिक माहौल में पल बड़े हुए।
स्वामी विवेकानंद का मुख्य शिक्षा स्थान उनका घरीला परिवार था। उन्हें बचपन से ही धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं का परिचय हुआ। उनके पिता ने उन्हें वेदांत, रामायण, महाभारत, उपनिषदों और अन्य पुराणों के पाठ कराए। उनकी माता ने उन्हें संस्कृति, नैतिकता, और सेवा के महत्व के बारे में शिक्षा दी।
बाद में, स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता के आध्यात्मिक और विद्यालयिक संस्थानों में भी अध्ययन किया। उन्होंने विद्यालय में विज्ञान, गणित, फिलॉसफी और इंग्लिश की पढ़ाई की। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा ने उनकी बुद्धि को विकसित किया, उन्हें धार्मिक और सामाजिक मूल्यों का ज्ञान प्रदान किया।

किसने दिया स्वामी जी को विवेकानंद नाम

स्वामी विवेकानंद का नाम स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने दिया था। स्वामी रामकृष्ण परमहंस, जो स्वामी विवेकानंद के गुरु और प्रमुख प्रेरक थे, उन्हें "नरेंद्र" नाम से पुकारते थे। जब नरेंद्र उनके शिष्य बन गए, तब स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें "विवेकानंद" नाम दिया। विवेकानंद का अर्थ है "विवेक" और "आनंद" से मिलकर बना है, जो सामाजिक और आध्यात्मिक विवेक की प्रकाशित करने और आनंद की प्रतिष्ठा करने का प्रतीक है। इसी नाम से स्वामी विवेकानंद प्रसिद्ध हुए और इस नाम से दुनिया भर में उन्हें जाना जाता है।

स्वामी विवेकानंद का दुनियाभर में चर्चित शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो भाषण एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध भाषण था, जो कि 1893 में चिकागो, अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म संगठन (World's Parliament of Religions) के अवसर पर दिया गया था। इस भाषण में स्वामी विवेकानंद ने भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों का प्रचार किया और धर्म एकता, विश्वसुन्दरता और सामान्य मानवीयता के महत्व को बताया।

यहां स्वामी विवेकानंद के चिकागो भाषण के कुछ अंशों का हिंदी में अनुवाद दिया गया है:
"सत्य, अस्तित्व और आनंद की प्रतिष्ठा के आदान-प्रदान में हम भारतीय हैं। आज सभी धर्मों का उदय हो रहा है, लेकिन यह सत्य कि हम भारतीय धर्म के नेतृत्व में हैं। हमें विश्व को उस उच्चतम सत्य के प्रतिष्ठान का सन्देश देना चाहिए, जो कि हमारे अद्वैतवादी सिद्धांत के अनुसार है।"

स्वामी विवेकानद को कब हुआ मृत्यु का अहसास

स्वामी विवेकानंद को अपनी आखरी काशी यात्रा के दौरान हुआ। स्वामी विवेकानंद को 4 जुलाई 1902 को मृत्यु का अभास हुआ था। उनकी मृत्यु बेलूर मठ, कोलकाता, भारत में हुई थी। उनकी मृत्यु एक महान आध्यात्मिक यात्रा का समापन थी, जिसमें उन्होंने अपना जीवन धर्म, ज्ञान और सेवा में समर्पित किया। उनकी मृत्यु ने बहुत से लोगों को गहरे शोक में डाल दिया, लेकिन उनकी विचारधारा, साहस और प्रेरणा आज भी दुनिया भर में जीवित है।



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