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Subarnarekha River: सालों से सोना उगल रही है स्वर्णरेखा, दर्जनों परिवारों की है रोजी-रोटी का जरिया, जानें इसका रहस्य

Subarnarekha River: जमशेदपुर की जीवनरेखा स्वर्णरेखा नदी आज भी सोना उगल रही है। इसके चलते दलमा पहाड़ी से सटे दर्जनों गांवों में बसे परिवारों को रोजी रोटी चलती है।

Archana Pandey
Published on: 26 July 2023 8:53 PM IST
Subarnarekha River: सालों से सोना उगल रही है स्वर्णरेखा, दर्जनों परिवारों की है रोजी-रोटी का जरिया, जानें इसका रहस्य
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Subarnarekha River (Image- Social Media)

Subarnarekha River: झारखंड के जमेशेदपुर की स्वर्णरेखा नदी। जिसे जीवनदायिनी नदी भी कहा जाता है। दरअसल इस नदी के गर्भ में सोना छिपा हुआ है। जिसके कारण कई गांव के दर्जनों लोगों की आजीविका चल रही है। सालों से इस नदी के बालू से सोना निकल रहा है, जो आज भी जारी है। लेकिन आखिर इस नदी में सोना आता कहा से है। क्या कारण है जो सालों से सोना इन नदी के पानी में बह रहा है।

इस वजह से पाया जाता है सोना

भू-वैज्ञानिक सह भूतत्व विभाग के सहायक निदेशक, पूर्वी सिंहभूम करुण चंदन के मुताबिक, स्वर्णरेखा नदी कई चट्टानों, जंगलों और पहाड़ों के बीच से गुजरती है। इस दौरान पानी के घर्षण से चट्टानों में पाए जाने वाले सोने के कण निकलते हैं और नदी में समा जाते हैं। नदी में सोना होने का दूसरा कारण, ब्रिटिश काल से सरायकेला-खरसावां जिले के रूदिया गांव में भारी मात्रा में सोने का भंडार है।

इसके अलावा स्वर्णरेखा नदी किनारे के परासी गांव में सोने का भंडार है। जिसकी मात्रा करीब लगभग 70 हेक्टेयर में 99 लाख टन है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इसकी खोज की थी। इसके बाद मिनरल एक्सप्लोरेशन कारपोरेशन लिमिटेड ने भी इस खनिज भंडार का आंकलन किया था।

दर्जनों परिवारों की रोजी-रोटी का साधन

नदी से सोना निकालने वाले सोहन का कहना है कि 12 सालों से अपने साथियों के साथ स्वर्णरेखा नदी से बालू निकालकर उसमें से सोना निकाल रहे हैं। सोहन का कहना है कि हमारे में गांव कोई और रोजी-रोजगार नहीं है। ऐसे में वह अपने साथियों के साथ हर सोज सुबह आठ बजे से दोपहर तीन बजे तक सोना निकालते हैं। इसके बाद अपने गांव लौट जाते हैं।

चलियामा, बांधडीह, फरेंगा, बनकाटी गांव के लोग भी सोना निकालने के लिए हर 20 से 40 किमी साइकिल चलाकर स्वर्णरेखा नदी जाते हैं। इस इलाके में बसे दर्जनों आदिवासी परिवार की जिंदगी नदी के सोने से ही चल रही है। इन लोगों के पास एक विशेष प्रकार का लकड़ी का डोंगा होता है। जिसमें एक कपड़ा लगा होता है। इससे बालू को पानी के अंदर छानते हैं। इसके बाद बचे हुए कण को ऊपर लाते है। कुछ कण कपड़े में चिपक जाते है। यह लोग दिन भर यही काम करते हैं। इसके बाद कही जाकर इन्हें कुछ सोने का टुकड़े मिलते हैं।

200 से 400 रुपये में बेचते हैं सोना

सोहन का कहना है कि इस तरह करने से हर रोज कुछ न कुछ सोने के कण हाथ लग जाते हैं। कभी-कभी सोना बिलकुल भी नहीं मिलता है। हम लोग सोने के टुकड़े को आकार के हिसाब से व्यापारियों को बेच देते हैं। जिसकी कीमत सिर्फ 200 से 400 रुपये होती है। इसी से वह अपने परिवार चलाते हैं और बच्चों को स्कूल भेजते हैं।

रानी चुआं निकलती है स्वर्णरेखा

बता दें झारखंड की राजधानी रांची से 16 किमी दूर नगड़ी गांव के रानीचुआं नामक स्थान हैं। यही से स्वर्णरेखा नदी से निकलती है, जो रांची से चांडिल, जमशेदपुर, घाटशिला, गोपीवल्लभपुर, जलेश्वर होते हुए 474 किलोमीटर की दूरी तय कर ओडिशा के बालेश्वर में बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।

Archana Pandey

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