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दलित महिला को फर्श पर बैठने का सुनाया फरमान, SC/ST के तहत केस दर्ज

गौरतलब है कि एससी/एसटी एक्ट के मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में एफआईआर को रद्द कर सकता है।

Newstrack
Published on: 10 Oct 2020 9:36 AM GMT
दलित महिला को फर्श पर बैठने का सुनाया फरमान, SC/ST के तहत केस दर्ज
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विडियो में नजर आ रहा है कि पंचायत अध्यक्ष ने बैठक के दौरान एक पिछड़ी जाति की महिला (दलित) को नीचे फर्श पर बैठा दिया जबकि बाकी लोग कुर्सियों पर बैठे हुए थे।

नई दिल्ली: तमिलनाडु के कुड्डलोर जिले में जाति के आधार पर एक दलित महिला के साथ दुर्व्यवहार करने का मामला सामने आया है। आरोप है कि एक बैठक के दौरान पंचायत अध्यक्ष ने सभी के सामने एक एक दलित महिला को फर्श पर बिठा दिया।

जिसके बाद से इस पूरे मामले में पुलिस ने SC/ST एक्ट के तहत पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसके विरुद्ध केस दर्ज कर लिया है।

इस घटना को लेकर आस-पास के इलाकों में लोगों के अंदर काफी रोष व्याप्त हैं। पुलिस इस मामले पर पहले से ही सर्तक है। लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की है।

Woman महिला की फोटो(सोशल मीडिया)

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ये है पूरा मामला

तमिलनाडु के अंदर कुड्डोलर जिले का एक विडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। इस विडियो के अंदर साफ़ –साफ़ नजर आ रहा है कि पंचायत अध्यक्ष ने बैठक के दौरान एक पिछड़ी जाति की महिला (दलित) को नीचे फर्श पर बैठा दिया जबकि बाकी लोग कुर्सियों पर बैठे हुए थे।

तभी किसी ने बैठक के अंदर से ही इस प्रकरण का पूरा विडियो अपने मोबाइल में रिकार्ड कर लिया और फिर बाद में इसे सोशल मीडिया में वायरल कर दिया। बाद में इस मामले में तूल पकड़ लिया और सीपीएम पार्टी ने पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ थाने में मुकदमा दर्ज करवा दिया।

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Court File Photo न्यायालय की प्रतीकात्मक फोटो(सोशल मीडिया)

क्या है SC/ST कानून

गौरतलब है कि एससी/एसटी एक्ट के मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में एफआईआर को रद्द कर सकता है।

20 मार्च 2018 को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वत: एफआईआर और गिरफ्तारी पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

जिसके बाद से संसद के अंदर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए कानून में संशोधन किया गया था। अब पहले के तरह ही एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या नियुक्ति प्राधिकरण से परमिशन लेने की आवश्यकता नहीं होगी।

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