TRENDING TAGS :
तमिलनाडु में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन, क्या इस बार टूटेगा तिलिस्म
राज्य में करुणानिधि और जयललिता की अनुपस्थिति में ये पहला चुनाव है। इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। क्योंकि इस बार जंग करुणानिधि के उत्तराधिकारियों और जयललिता की विरासत पर दावा करने वाले लोगों के बीच है। कांग्रेस और भाजपा यहां की राजनीति पर ज्यादा पकड़ नहीं रखती हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर ये चर्चा जोर पकड़ रही है कि तमिलनाडु में अबकी बार किसकी सरकार। क्योंकि इस दक्षिणी राज्य में 1980 के दशक से लगातार एक बार द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम तो एक बार आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम की सरकार रही है। हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन होता रहा है।
जयललिता की अनुपस्थिति में ये पहला चुनाव
राज्य में करुणानिधि और जयललिता की अनुपस्थिति में ये पहला चुनाव है। इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। क्योंकि इस बार जंग करुणानिधि के उत्तराधिकारियों और जयललिता की विरासत पर दावा करने वाले लोगों के बीच है। कांग्रेस और भाजपा यहां की राजनीति पर ज्यादा पकड़ नहीं रखती हैं। वर्चस्व केवल द्रमुक और अन्नाद्रमुक का है। देखते हैं इतिहास की कसौटी पर क्या कहती है राजनीति।
इस दक्षिणी राज्य की राजनीति में यहाँ के क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व तोड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी इस बार पूरा जोर लगाए है लेकिन यहां का तीसरा प्रमुख दल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ही रही है। बाकी अन्य छोटे दल यहाँ की राजनीति का हिस्सा मात्र हैं।
ये भी देखें: यहां रोज सजती थीं जिस्म की मण्डी, ये शख्स अपनी ही गर्लफ्रेंड के लिए लाता था ग्राहक
अंग्रेजों के शासन काल में मद्रास प्रेसिडेंसी
अंग्रेजों के शासन काल में यह इलाका मद्रास प्रेसिडेंसी के नाम से जाना जाता था। उस समय से लेकर देश की आजादी के बाद तक काँग्रेस यहाँ की प्रमुख राजनीतिक पार्टी रही। साठ के दशक में हिंदी-विरोधी आन्दोलनों में द्रविड़ दलों को स्थानीय भाषा और पहनावे की पहचान के आधार पर महत्व मिला। 1967 में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार डीएमके द्वारा बनाई गयी। यह साल तमिल राजनीति का टर्निंग पाइंट बना क्योंकि इसके बाद से यहाँ की राजनीति में द्रविड़ दलों का प्रभुत्व कायम हो गया।
विचारधारा के स्तर पर द्रविड़ राजनीतिक दलों में कम्युनिस्ट एवं समाजवादी विचारों की स्वीकारोक्ति के चलते दक्षिणपंथी पार्टियों को यहां जगह नहीं मिल सकी। अन्य छोटे दलों में भारतीय रिपब्लिकन पार्टी, मार्क्सवादी पार्टी, सर्वहारा पीपुल्स पार्टी, पुनर्जागरण द्रमुक, वीसीके, राष्ट्रीय प्रगतिशील द्रविड़ कषगम, भारतीय जनता पार्टी, मानवतावादी पीपुल्स पार्टी तमिल नवजागरण निगम, नए राज्य पार्टी, अखिल भारतीय समानता पीपुल्स पार्टी इत्यादि नाम गिनाये जा सकते हैं। लेकिन इनका कोई वजूद नहीं है।
016 के विधानसभा चुनाव में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को मात्र एक सीट
डीवेन रामास्वामी, अन्नादुरई, एमजीआर और जयललिता तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण लोग रहे हैं। करुणानिधि यहाँ की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में रहे। 2016 के विधानसभा चुनाव में कुल 232 सीटों में इंडियन नेशनल कांग्रेस को 8, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम(अन्नाद्रमुक) को 134, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम(डीएमके) को 89 और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को मात्र एक सीट मिली थी।
2011 के विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक गठबंधन को 203 सीटें मिली थीं तो अन्नाद्रमुक की इसमें 150 सीटों की भागीदारी थी। डीएमडीके को 29, माकपा को 10, भाकपा को नौ, एमएनएमके को दो, पीटी को दो और एआईएफबी को एक सीट मिली थी। जबकि डीएमके गठबंधन को 31, डीएमके को 23, कांग्रेस को पांच, पीएमके को तीन सीटें मिली थीं।
ये भी देखें: यात्रियों को बड़ी राहत: तेजस का किराया हुआ कम, फ्री मिलेगी ये सुविधा
2011 और 2016 में भाजपा शून्य पर आउट हुई थी
2011 और 2016 में भाजपा शून्य पर आउट हुई थी। 2011 में 2.2 प्रतिशत वोट शेयरिंग वाली भाजपा को 2016 में मात्र 2.86 फीसद वोट मिले थे। उसके वोटों में .66 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई थी। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में राजग का वोट प्रतिशत बढ़कर 18.5 प्रतिशत हो गया और भाजपा का 5.5 प्रतिशत हो गया।
भाजपा 2019 के चुनाव में अन्नाद्रमुक के हारने के बावजूद अपनी बढ़त को लेकर आश्वस्त है लेकिन अन्नाद्रमुक उसे खुलकर खेलने का मौका नहीं दे रहा वह उसे सीमित सीटें ही दे रहा है।
ये भी देखें: यात्रियों को बड़ी राहत: तेजस का किराया हुआ कम, फ्री मिलेगी ये सुविधा
ऐसे में भाजपा के लिए मौजूदा चुनाव तमिल राजनीति में पैठ बनाने के अवसर के अलावा अधिक कुछ नहीं है। लेकिन अन्नाद्रमुक जो कि 2011 से सत्ता पर काबिज है उसके लिए अपनी सत्ता बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है। शायद यही एक वजह है कि जयललिता की सहेली शशिकला फिलहाल सक्रिय न हो कर चुनाव के नतीजे देखने के बाद अपना अगला कदम तय करेंगी।
दोस्तों देश दुनिया की और को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।