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तमिलनाडु चुनाव: तमिल गौरव और गैर तमिल कौन, क्यों उठ रहे ये मुद्दे
द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम हमेशा से तमिल गौरव और सामाजिक न्याय के आंदोलन के लिए पहचान रखती आई है। कभी अलगाववाद और उसका समर्थन जिसे कभी पार्टी की विशेषता कहा जाता था, उसे अब दफन कर दिया गया है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: तमिलनाडु के चुनाव जैसे जैसे नजदीक आते जा रहे हैं। सबका ध्यान उस आदमी पर केंद्रित होता जा रहा है जो कि द्रविड़ आंदोलन का चेहरा माना जाता है। यह आदमी और कोई नहीं द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम के संस्थापक और एम करूणानिधि का पुत्र एमके स्टालिन है जो अपने पिता के जादूई जूतों को अपने पैर में पहनने की कोशिश कर रहा है और इस चुनाव को जीतकर खुद को स्थापित करने की ओर बढ़ रहा है। और इसका तमिलनाडु की भविष्य की राजनीति पर बड़ा असर पड़ने जा रहा है।
द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम हमेशा से तमिल गौरव और सामाजिक न्याय के आंदोलन के लिए पहचान रखती आई है। कभी अलगाववाद और उसका समर्थन जिसे कभी पार्टी की विशेषता कहा जाता था, उसे अब दफन कर दिया गया है। करीब दस साल के एआईएडीएमके के शासन में प्रमुख विपक्षी पार्टी रही द्रमुक के स्टालिन के लिए आगामी चुनाव में ताजपोशी एक परसी थाली की तरह होनी चाहिए।
राज्य की जनता एक मुकाबला देखने को विवश
एआईएडीएमके और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार विरोधी दोहरी लहर में द्रमुक कांग्रेस गठबंधन के लिए तो भारी बहुमत पाना बहुत आसान होना चाहिए लेकिन अब जबकि तीस दिन से भी कम समय चुनाव के लिए बचा है। राज्य की जनता एक मुकाबला देखने को विवश है। यानी जो जीत भारी बहुमत से तय मानी जा रही थी अब वह करीबी मुकाबले में बदल रही है। इसकी वजह है स्टालिन का आत्मकेंद्रित होना। उधर मुख्यमंत्री एडापादी पलानीस्वामी ने अपने जातीय अंकगणित को सही ढंग से खेला और जोरदार लड़ाई का मैदान तैयार कर दिया है। उन्होंने शशिकला नटराजन को भी बेअसर कर दिया। जिनके बारे में कहा जा रहा था कि उन्होंने पलानी स्वामी को सीएम बनवाया। लेकिन स्टालिन अपने पिता की विरासत को संजो पाने में अक्षम रहे और एक निश्चित जीत करीबी लड़ाई में बदल गई।
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डीएमके ने प्रशांत किशोर को अपना चुनावी रणनीतिकार बनाया
करुणानिधि एक मुखर वक्ता थे। वह लोगों को अपनी भाषण देने की कला से बांध लेते थे। कहा जाता है कि द्रमुक की सफलता के पीछे उसके अच्छे वक्ताओं का हाथ रहा है। लेकिन स्टालिन में ये क्षमता नहीं है। इन्हीं कमियों को दूर करने के लिए डीएमके ने प्रशांत किशोर को अपना चुनावी रणनीतिकार बनाया है।
प्रशांत किशोर ने ही डीएमके को सलाह दी है कि वह भाजपा को हिंदी-बेल्ट की पार्टी के रूप में पेश करने पर ध्यान केंद्रित करे, जो तमिलों पर अपनी भाषा का जोर दे रही है। इसके बाद से डीएमके और उसके सहयोगियों की बैठकों में तमिल भाषा, संस्कृति, गौरव के अपमान के बारे में प्रचार शुरू किया गया। भाजपा द्वारा राज्य के ओबीसी समुदायों को उनके हक से वंचित करने के कथित प्रयासों पर चर्चा छेड़ी गई।
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जबकि अन्नाद्रमुक की आलोचना ज्यादातर उसे भाजपा का छद्म रूप कहने तक सीमित है। वास्तव में तमिलनाडु में भगवा पार्टी और उसकी विचारधारा के बारे में प्रशांत किशोर की सलाह पर ही स्टालिन ने भाजपा पर अपने हमले पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है और बहुत सफाई से वह अन्नाद्रमुक को उसका पिछलग्गू करार देते हैं। देखना यही है कि तमिल गौरव बनाम भाजपा के राष्ट्रवाद में स्टालिन कहां टिकते हैं।
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