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आतंकी मसूद अजहर को ऐसे बचा लेता है चीन, जानिए क्या है वीटो पावर
आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की राह में पाकिस्तान के सदाबहार दोस्त चीन ने एक बार फिर रोड़ा लगा दिया है।
लखनऊ: आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की राह में पाकिस्तान के सदाबहार दोस्त चीन ने एक बार फिर रोड़ा लगा दिया है। मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर फैसले से कुछ देर पहले चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए प्रस्ताव पर रोक लगा दी। साल 2017 में भी चीन ने ऐसा ही किया था। पिछले 10 साल में संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने का ये चौथा प्रस्ताव था।
सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्यों अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस ने इसका समर्थन किया था जबकि चीन ने विरोध किया। चीन ने जिस वीटो पावर का इस्तेमाल कर आतंकी मसूद अजहर को बचाता है, जानिए उस वीटो पावर के बारे में......
वीटो क्या है?
वीटो एक लैटिन भाषा का शब्द है। वीटो का मतलब होता कि 'मैं अनुमति नहीं देता हूं'। प्राचीन रोम में कुछ निर्वाचित अधिकारियों के पास अतिरिक्त शक्ति होती थी। वे इन शक्ति का इस्तेमाल करके रोम सरकार की किसी कार्रवाई को रोक सकते थे। तब से यह शब्द किसी चीज को करने से रोकने की शक्ति के लिए इस्तेमाल होने लगा।
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वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के पास वीटो पावर है। स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है। यही मसूद के मामले में चीन करता है। सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्य उसे ग्लोबल आतंकी घोषित करने के समर्थन में थे, लेकिन चीन उसके विरोध में था और उसने अड़ंगा लगा दिया।
कब-कब चीन ने लगाया अड़ंगा
2009
मुंबई हमले के बाद पहली बार मसूद पर प्रतिबंध का प्रस्ताव पेश किया गया। चीन ने वीटो का किया था इस्तेमाल।
2016
भारत ने सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के समक्ष प्रस्ताव रखा, चीन ने रोका।
2017
अमेरिका ने ब्रिटेन और फ्रांस के समर्थन से प्रस्ताव पारित किया, चीन ने वीटो किया।
2019
फ्रांस के प्रस्ताव का ब्रिटेन अमेरिका ने समर्थन किया, लेकिन चीन ने रोड़ा अटकाया।
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वीटो का इतिहास
फरवरी, 1945 में क्रीमिया, यूक्रेन के शहर याल्टा में एक सम्मेलन का आयोजन हुआ था। इस सम्मेलन को याल्टा सम्मेलन या क्रीमिया सम्मेलन के नाम से जाना जाता था। इसी सम्मेलन में सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन ने वीटो पावर का प्रस्ताव रखा था। याल्टा सम्मेलन का आयोजन युद्ध बाद की योजना बनाने के लिए हुआ था। इसमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंसटन चर्चिल, सोवियत संघ के प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन और अमेरिका के राष्ट्रपति डी रूजवेल्ट ने हिस्सा लिया। वैसे वीटो का यह कॉन्सेप्ट साल 1945 में ही नहीं आया। 1920 में लीग ऑफ नेशंस की स्थापना के बाद ही वीटो पावर वुजूद में आ गया था। उस समय लीग काउंसिल के स्थायी और अस्थायी सदस्यों, दोनों के पास वीटो पावर थी।
कब हुआ पहली बार किया गया इस्तेमाल
16 फरवरी, 1946 को सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (यूएसएसआर) ने पहली बार वीटो पावर का इस्तेमाल किया था। लेबनान और सीरिया से विदेशी सैनिकों की वापसी के प्रस्ताव पर यूएसएसआर ने वीटो किया था। उस समय से अब तक वीटो का 291 बार इस्तेमाल हो चुका है।
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सबसे ज्यादा किस देश ने किया इस्तेमाल?
शुरुआती सालों में सोवियत रूस ने सबसे ज्यादा वीटो का इस्तेमाल किया। अब तक यह 141 बार वीटो का इस्तेमाल कर चुका है जो अब तक के कुल वीटो का करीब आधा है।
अमेरिका ने अब तक 83 बार वीटो का इस्तेमाल किया है। पहली बार इसने 17 मार्च, 1970 को वीटो किया था। 1970 के बाद से अमेरिका ने अन्य स्थायी सदस्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा इसका इस्तेमाल किया है। अमेरिका ने वीटो का ज्यादातर इस्तेमाल इजरायल के हितों की रक्षा के लिए किया है।
ब्रिटेन ने 32 बार इस्तेमाल किया है। पहली बार 30 अक्टूबर, 1956 को स्वेज संकट के दौरान किया था।
फ्रांस ने पहली बार 26 जून, 1946 को इसका इस्तेमाल किया था और अब तक 18 बार वीटो किया है।
चीन ने 15 बार वीटो का इस्तेमाल किया है। पहली बार 13 दिसंबर, 1955 को चीन गणराज्य (आरओसी) द्वारा किया गया था।