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प्रणब मुखर्जी की आखिरी किताब: PM मोदी को दी ये नसीहत, कांग्रेस पर कही ऐसी बात
उनका कहना था कि पीएम मोदी को विपक्ष को समझाने और देश को तमाम मसलों से परिचित कराने के लिए संसद को एक मंच के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए और सदन में अक्सर बोलना चाहिए।
नई दिल्ली: विवादों के बीच पूर्व राष्ट्रपति, स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी की किताब 'द प्रेसिडेंशियल इयर्स' प्रकाशित कर दी गई। दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण 'द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017' अभी सुर्खियों में है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में विचार रखते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को असहमति की आवाज सुननी चाहिए। उनका कहना था कि पीएम मोदी को विपक्ष को समझाने और देश को तमाम मसलों से परिचित कराने के लिए संसद को एक मंच के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए और सदन में अक्सर बोलना चाहिए।
पीएम के रहने मात्र से फर्क
प्रणब मुखर्जी का मानना था कि संसद में पीएम के रहने मात्र से इस संस्था के कामकाज पर काफी फर्क पड़ता है। दिवंगत राष्ट्रपति मुखर्जी ने अपने संस्मरण 'द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017' में इन बातों को लिखा है।
यह पुस्तक पिछले साल उन्होंने अपने निधन से पहले लिखी थी। पुस्तक मंगलवार को प्रकाशित हुई। किताब में प्रणब मुखर्जी ने लिखा, 'चाहे जवाहरलाल नेहरू हों, या फिर इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी अथवा मनमोहन सिंह, इन सभी ने सदन के पटल पर अपनी उपस्थिति का अहसास कराया था।
कांग्रेस की हार पर भी राय दिया था
प्रणब मुखर्जी ने 2014 के चुनावों में कांग्रेस को मिली हार पर भी राय व्यक्त की है उन्होंने लिखा है कि 2014 के हार के कारणों में से एक वजह यह भी थी कांग्रेस अपने करिश्माई नेतृत्व को पहचानने में नाकाम रही। कांग्रेस एक राष्ट्रीय संस्था है जो लोगों के जीवन के साथ जुड़ी हुई है।प्रणब मुखर्जी ने 2014 की हार के लिए कई कारणों का जिक्र किया है।
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विमुद्रीकरण के मुद्दे पर चर्चा नहीं
प्रणब मुखर्जी ने अपनी इस किताब में ये खुलासा भी किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा करने से पहले उनके साथ इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं की थी, लेकिन इससे उन्हें हैरानी नहीं हुई क्योंकि ऐसी घोषणा के लिए आकस्मिकता जरूरी है।
पहले के पीएम से प्रेरणा लें पीएम मोदी
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लिखा है, 'अपने दूसरे कार्यकाल में पीएम मोदी को पहले के पीएम से प्रेरणा लेनी चाहिए और उन परिस्थितियों से बचने के लिए संसद में अपनी मौजूदगी के जरिये, जो संसदीय संकट हम पहले कार्यकाल में देख चुके थे, से बचने के लिए अपनी मौजूदगी रखनी चाहिए।
उन्होंने कहा था पीएम मोदी को असंतुष्ट आवाजों को सुनना चाहिए और संसद में अधिक बार बोलना चाहिए। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान वह विपक्षी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ-साथ यूपीए के भी सीनियर नेताओं के साथ लगातार संपर्क में रहते थे और जटिल मुद्दों का समाधान निकालते थे।
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एनडीए को संसद के सुचारू और उचित कामकाज
अपनी पुस्तक में उन्होंने एनडीए के 2014-19 के कार्यकाल पर भी निशाना साधा है। उन्होंने एनडीए को संसद के सुचारू और उचित कामकाज को सुनिश्चित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी में नाकाम बताया है। वे लिखते हैं कि वो विपक्ष और सरकार पक्ष में तीखे तकरार के लिए सरकार के अहंकार और स्थिति को न संभाल पाने को जिम्मेदार मानते है।