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नालंदा के खंडहर सुनाते हैं वैभव कहानी
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 90 किमी. की दूरी पर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर आज भी उतने ही प्रसांगिक हैं, जितना कि अपने वैभवकाल में हुआ करते थे।
दुर्गेश पार्थसारथी
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 90 किमी. की दूरी पर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर आज भी उतने ही प्रसांगिक हैं, जितना कि अपने वैभवकाल में हुआ करते थे। बताया जाता है कि नालंदा बौद्ध महाविहार की स्थापना सम्राट कुमार गुप्त ने करवाया था। वक्त के गर्त में समाए इस विश्वविद्यालय के ऊपर पड़े समय की रहस्यमयी चादर को अंग्रेज इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम ने हटाया।
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वास्तव में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना 14 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में फैला यह खंडहर अतीत में बौद्ध भिक्षुओं के निवास और अध्ययन एवं अध्यात्म के उद्देश्य से बनाया गया था, लेकिन पठन-पाठन में भिक्षुओं की गहरी रुचि होने के कारण यह बौद्ध महाविहार धीरे-धीरे विश्वविद्यालय का रूप धारण कर लिया।
दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था नालंदा
भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक शारिपुत्र का जन्म भी नालंदा में ही हुआ था। नालंदा के विद्वान भिक्षुओं ने तिब्बत और चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया, जिस कारण विदेशी लोग भी नालंदा की तरफ आकर्ष्ति होने लगे। इतिहासकारों के अनुसार इस विश्वविद्यालय में दो समिसमितिया कार्य करती थीं। पठन-पाठन, पुस्तकों का प्रबंध, पाठ्यक्रमों का निर्धारण आदि का कार्य शिक्षा समिति के जिम्मे होता था। और विश्वविद्यालय के आय-व्यय, भवनों का निर्माण, छात्रावास और भोजन आदि की व्यवस्था प्रबंधक समिति करती थी। नालंदा विश्विद्यालय संभवत: दुनिया का पहला आवासिय विश्वविद्यालय था, जिसमें इस हजार से भी अधिक छात्र एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे।
दाखिला से पहले होती थी बौद्धिक परीक्षा
समुद्रतल से 67 मी. की ऊंचाई पर स्थित इस विश्वविद्यालय की महिमा का उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग जो स्वयं इस विश्वविद्यालय का छात्र था, लिखता है कि इसमें प्रवेश के लिए छात्रों को कई तरह की प्रक्रियाआं से होकर गुजरना पड़ता था। विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के इच्छुक छात्र की पहली परीक्षा विद्यालय के प्रवेशद्वार पर खड़े द्वारपालों द्वारा ली जाती थी। इस प्रारंभिक परीक्षा में पास होने के बाद आचार्य और प्राचार्य छात्र के बौधिक ज्ञान का आंकलन करते थे।
तब जाकर कहीं इस विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल पाता था। वह आगे लिखता है कि नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्र, आचार्य और भिक्षु प्रकांड विद्वान होते थे, जिन्हें समाज में सम्मान की नजर से देखा जता था। वह लिखता है- यहां शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा था, जिस कारण चीन, तिब्बत, कोरिया आदि देशों के अनेकों छात्र सालों तक शिक्षा ग्रहण करते थे। शांतरक्षित नामक विद्वारन यहां के प्रकांड विद्वानों में से एक था।
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दस हजार छात्रों को पढ़ाते थे एक हजार आचार्य
नालंदा की खुदाई से मिले पुरातात्विक प्रमाणों से स्पाष्ट होता है कि यहां के दस हजार छात्रों को एक हजार आचार्य पढ़ाते थे। विश्विद्यालय के रखरखाव, छात्रों के खान-पान आदि के खर्च को पूरा करने के लिए तत्कालीन राजा-महाराओं एवं धनाढ्य लोगों का राजाश्रय प्रापत था।
जावा नरेश ने दान में दिए थे पांच गांव
नालंदा के विहार से एक की खुदाई से मिले पाल नरेश देवपाल के एक तामग्रपत्र में जावा नरेश द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय को पांच गांव दान में देने की याचना की गई है। ऐतिहासिक प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि बुद्ध गुप्त ने भी एक विहार बनवाया था। यहरी नहीं जावा नरेश बालपुत्रदेव के निवेदन पर पालवंशीय शासक देवपाल ने भी एक विशाल बौद्ध विहार तैयार करवाया था।
योजनाबद्ध तरीके से हुआ था निर्माण
नालंदा की पुरातात्वीक खुदाई से मिले साक्ष्यों से स्पष्ट होता है कि ईंटों और पत्थरों से निर्मित बौद्ध विहारों का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से हुआ था। यही नहीं नहाने और खाने तक का भी निश्चि स्थान था। नालंदा के मुख्य विद्यालय से संबंधित सात व्याख्यान कक्ष और तीन सौ कमरों का छात्रावास भी था।
ह्वेनसांग और इतिसांग ने अपने यात्रा विवारणों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि इस विश्वविद्यालय को दो सौ गांव दान में मिले थे। दज्ञत्रावास में रहने की अनुमति विद्यालय में दाखिला क्रम के आधार पर दी जाती थी। महाविद्यालय में छात्रो के निवास और भेजन की व्यवस्था फ्री थी।
अलाउद्दीन खिलजी ने विश्वविद्यालय को बना दिया खंडहर
कहते हैं दिन के उजाले के साथ रात घुप अंधेरा भी छिपा होता है। कुछ ऐसा ही हुआ विश्वविख्यात इस नालंदा विश्वविद्यालय के साथ भी। वह दौर था मुगल आक्रमणकारियों का । जब इस विश्वविद्यालय के 'सूर्य' की आभा वक्त के बादलों के नीचे ढंग गई। 12वीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को सैनिक छावनी समझ कर इसपर हमला कर आग लगा दी। बताया जाता है कि यहां की लाइब्रेरी मं रखी किताबों से एक वर्ष तक धुआं उठता रहा।
दस मंदिर, आठ भवन और पुस्तकालय था नालंदा विश्वविद्यालय में
नालंदा की खुदाई से मिले अवशेषों से पता चलता है कि विस्तृत भूभाग में फैला यह विश्वविद्यालय एक ऊंची चारदीवारी से घिरा हुआ था। इसके विशाल परिसर में आठ विशाल भवन, १० मंदिर, कई प्रार्थना कक्ष और पुस्ताकलयों के अवशेष मिले हैं। मंदिर संख्या तीन इस विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा मदिर है।
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क्या देखें
नालंदा विश्वविद्यालस के खंडहरों और इसके इतिहास के रूबरू होने के बाद यहां की खुदाई से मिले अवशेषों को संजोए संग्रहालय देखने योग्य है। यह संग्रहालय सुबह १० से शाम ७ बजे तक शुक्रवार को छोड़ सप्ताह के बाकी दिन खुला रहता है। अन्य दयर्शनीय स्थलों में नवनालंदा विहार, ह्वेनसांग मेमोरियल हाल आदि दर्शनीय हैं।
कैसे पहुंचे
विश्व प्रसिद्ध इस पर्यटन स्थल तक वायु, सड़क और रेल मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहां का नीकटतम हवाई अड्डा पटना है जो नालंदा से करीब 90 किमी की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग द्वारा बोधगया, पटना और राजगिर से नालंदा की दूरी क्रमश: 110, 90 और 12 किमी है।