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बलिदान दिवस: राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है: भगत सिंह

बता दें कि भगत सिंह की फांसी के लिए 24 मार्च कि तारीख मुक़र्रर की गई थी किन्तु बाद में 23 मार्च 1931 को ही शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई थी।

Shivakant Shukla
Published on: 23 March 2019 5:37 AM GMT
बलिदान दिवस: राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है: भगत सिंह
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नई दिल्ली: आज 23 मार्च है, आज ही के दिन मा भारती के तीन सपूतों भगत सिंह, सुखदेव, व राजगुरु, को अंगेजी हुकूमत के खिलाफ क्रान्ति की ज्वाला को शोलों में बदलने के लिए फांसी पर लटका दिया गया था।

देश की स्मृतियों में आज भी उन वीर सपूतों की यादें ताजा हैं। उन्होंने कहा था कि राख के हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।

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भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह को आज ही के दिन 1931 में फांसी दे दी गई थी। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था। उन्होंने शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार से जिस साहस के साथ मुकाबला किया, उसे भुलाया नहीं जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था।

युवाओं के लिए प्रेरणा हैं उनके क्रन्तिकारी विचार

क्रांतिकारी भगत सिंह की जिंदगी से हमें कई तरह की प्रेरणाएं मिलती हैं। उनके कई विचार ऐसे हैं, जिनसे किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं। भगत सिंह का मानना था कि जिंदगी तो सिर्फ अपने दम पर ही जी जाती है। भगत सिंह कहते थे कि आमतौर पर लोग जैसी चीजें हैं, उसी के आदी हो जाते हैं। वे बदलाव में विश्वास नहीं रखते और महज उसका विचार आने से ही कांपने लगते हैं। ऐसे में यदि हमें कुछ करना है तो निष्क्रियता की भावना को बदलना होगा। हमें क्रांतिकारी भावना अपनानी होगी।

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नहीं लिखा था माफ़ीनाम

उन्होंने कहा था कि राख के हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है। बता दें कि भगत सिंह ने मौत की सजा मिलने के बाद भी माफीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था। आजादी के मतवाले भगत सिंह का ये शेर आज भी जहन में आते ही शरीर बेइन्तहां जोश से लाब्रेक्स हो जाता है:-

उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-ज़फा क्या है|

हमे यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है||

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बता दें कि भगत सिंह की फांसी के लिए 24 मार्च कि तारीख मुक़र्रर की गई थी किन्तु बाद में 23 मार्च 1931 को ही शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई थी।

Shivakant Shukla

Shivakant Shukla

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