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असम में आज की वोटिंग तय करेगी हार और जीत, जानिए क्या है ऐसी वजह
वर्ष 2016 के चुनाव में बीजेपी ने असम गण परिषद (अगप) के साथ मिलकर इनमें 35 सीटें जीती थीं। उसी के बूते भारतीय जनता पार्टी ने पंद्रह साल से सत्तासीन तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर करने में कामयाबी हासिल की थी।
नीलमणि लाल
लखनऊ: असम में पहले चरण में जिन 47 सीटों पर मतदान होना है उनमें से ज्यादातर ऊपरी और उत्तरी असम में हैं। इनमें से कम से कम 20 सीटों पर चाय बागान मजदूरों के वोट निर्णायक हैं। माना जाता है कि राज्य में पहले चरण की सीटों पर हार-जीत ही सरकार का स्वरूप तय करती है।
वर्ष 2016 के चुनाव में बीजेपी ने असम गण परिषद (अगप) के साथ मिलकर इनमें 35 सीटें जीती थीं। उसी के बूते भारतीय जनता पार्टी ने पंद्रह साल से सत्तासीन तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर करने में कामयाबी हासिल की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को पहले चरण की 40 सीटों पर बढ़त मिली थी।
एनआरसी और नागरिकता कानून (सीएए) जैसे मुद्दे अहम
असम में सीएए का सबसे प्रबल विरोध हुआ था। इस चुनाव में एनआरसी और नागरिकता कानून (सीएए) जैसे मुद्दे अहम बन गए हैं। बीजेपी ने बंगाल में जहां सरकार बनते ही मंत्रिमंडल की पहली बैठक में सीएए को लागू करने का एलान किया है वहीं असम में उसने इस मुद्दे पर पूरी तरह चुप्पी साध रखी है। ऊपरी असम में सीएए के पक्ष में माहौल रहा है सो बीजेपी यहां अपने को मजबूत मान रही है।
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असम में हर साल आने वाली बाढ़ भी चुनावी मुद्दा है। बीजेपी ने बाढ़ से निपटने के अलावा चाय बागान मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने जैसे मुद्दों पर ज्यादा जोर दिया है। बीजेपी के सत्ता में लौटने की स्थिति में लव जिहाद और लैंड जिहाद के खिलाफ कानून बनाने तक का दावा किया हुआ है।
हर चुनाव की तरह इस बार भी महिलाओं और राज्य के चाय बागान मजदूरों का मुद्दा सुर्खियों में है। असम के 2.24 करोड़ वोटरों में 1.10 करोड़ महिलाओं को ध्यान में रखते हुए तमाम दलों ने अपने घोषणापत्रों में इस तबके के लिए आकर्षक वादे किए हैं।
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चाय बागान मजदूरों का मुद्दा सुर्खियों में
बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस के नेतृत्व में बने सात दलों के गठबंधन से है जिसमें बदरुद्दीन अजमल की आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अलावा कई अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हैं। बदरुद्दीन अजमल को बंगाली मुसलमानों का संरक्षक माना जाता है और सीमा पार बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ में सबसे ज्यादा तादाद ऐसे मुसलमानों की ही रही है। इससे बीजेपी को हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण में मदद की उम्मीद है।