अद्भुत: 21 तोपों से जन्माष्टमी, नहीं देखा होगा ऐसा भव्य उत्सव

अपने अलग-अलग जगह की जन्माष्टमी के बारे में सुना होगा की लोग इसे किस-किस तरह से मानते हैं। लेकिन हम आपको बताते हैं जन्माष्टमी मनाने का एक अलग तरीका जिसके बारे में आपने शायद ही सुना हो या आप जाना होंगा। हम बात कर रहें हैं राजस्थान के नाथद्वारा मंदिर की जहां पर भगवान श्रीकृष्ण को तोप के 21 गोले दागकर सलामी दी जाती है और अगले दिन नंद महोत्सव मनाया जाता है।

Roshni Khan
Published on: 23 Aug 2019 9:13 AM GMT
अद्भुत: 21 तोपों से जन्माष्टमी, नहीं देखा होगा ऐसा भव्य उत्सव
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उदयपुर: अपने अलग-अलग जगह की जन्माष्टमी के बारे में सुना होगा की लोग इसे किस-किस तरह से मानते हैं। लेकिन हम आपको बताते हैं जन्माष्टमी मनाने का एक अलग तरीका जिसके बारे में आपने शायद ही सुना हो या आप जाना होंगा। हम बात कर रहें हैं राजस्थान के नाथद्वारा मंदिर की जहां पर भगवान श्रीकृष्ण को तोप के 21 गोले दागकर सलामी दी जाती है और अगले दिन नंद महोत्सव मनाया जाता है।

इस महोत्सव में स्थानीय आदिवासी भोग लूटने आते हैं। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण भगवान के आठ बार दर्शन होते हैं और शाम 6 बजे भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। नाथद्वारा में जन्माष्टमी की शुरआत श्रावण मास की कृष्ण अष्टमी से होने लगती है। इस भव्य अवसर पर श्रीकृष्ण के प्राकट्योत्सव पर विशेष रूप से शंख ध्वनि की जाती है। साथ ही, थाली-मादल, घंटे- घडि़याल, झांझ- मृदंग, सारंगी व बाजे भी बजाए जाते हैं।

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बैंड बाजे के साथ गाया जाता है जन्म गीत

नाथद्वारा मंदिर के पास गोवर्धन चौक में श्रीनाथ बैंड द्वारा मधुर स्वर लहरियों में प्रभु के जन्म की बधाई के गीत गाए जाते हैं। रात में ठीक 12 बजे प्रभु का जन्म होने का घंटानाद होता है और 'मोतीमहल' की प्राचीर से बिगुल बजाकर श्रीकृष्ण के जन्म की सूचना दी जाती है और इस बिगुल की आवाज आधे किमी दूर स्थित 'रिसाले के चौक' तक पहुंचती है। वहां पर श्री कृष्ण की पलटन के कर्मचारी इसे सुनते ही यहां रखी हुई 400 साल पुरानी तोप से 21 गोले दागकर सलामी देते हैं।

सलामी ठीक वैसे ही दी जाती है जैसे गोलों को सालों पहले दागा जाता था। नंद महोत्सव में भोग लूटने आते हैं ग्वाले जन्माष्टमी के अगले दिन नंद महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण और नवनीत प्रियजी के मंदिर के प्रमुख नंदबाबा और यशोदा मैया का रूप धारण करते हैं और आठ अन्य सेवक चार गोपियों और चार ग्वालों का रूप धारण करते हैं। ये तब तक नृत्य करते हैं, जब तक भगवान के दर्शन के लिए द्वार नहीं खुलते।

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बाल गोपाल को झूला झुलाने के बाद मंदिर की 'आरती वाली गली' में रखी हुई दही-दूध की नांद, गोवर्धन पूजा के चौक रखे जाते हैं। इनमें से मिश्रित दूध-दही लेकर दर्शनार्थी एक-दूसरे को होली के रंगों की तरह भिगोते हैं। भक्त इस दूध-दही से सराबोर हो जाने को अपना सौभाग्य समझते हैं। पूरा मंदिर और दर्शनार्थी दूध-दही से नहा जाता हैं। मंदिर की सफाई के बाद नंद महोत्सव की तैयारियां शुरू होती हैं। जिसमें क्षेत्र के आदिवासी ग्वाले बनकर आते हैं तथा मंदिर में चढ़ाए विशेष भोग की लूट शुरू होती है।

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