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मुस्लिम का कृष्ण प्यार: पूरे पाकिस्तान को देखना चाहिए, कोई फसाद ही नहीं रहेगा

इंसान एक मगर खूबियां अनेक। ऐसी ही शख्सियत के है मौलाना हसरत मोहानी साहब। जो एक स्वतंत्रता सेनानी, एक पत्रकार, एक शायर, संविधान सभा के सदस्य और 'इंकलाब ज़िन्दाबाद' का नारा इजाद करनेवाले के रूप में जाने जाते है।

Vidushi Mishra
Published on: 23 Aug 2019 1:52 PM IST
मुस्लिम का कृष्ण प्यार: पूरे पाकिस्तान को देखना चाहिए, कोई फसाद ही नहीं रहेगा
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नई दिल्ली : इंसान एक मगर खूबियां अनेक। ऐसी ही शख्सियत के है मौलाना हसरत मोहानी साहब। जो एक स्वतंत्रता सेनानी, एक पत्रकार, एक शायर, संविधान सभा के सदस्य और 'इंकलाब ज़िन्दाबाद' का नारा इजाद करनेवाले के रूप में जाने जाते है। इन अनेको खूबियों के धनी मौलाना हसरत का एक रूप और भी है जिसे कम ही लोग जानते होगें। उनके इस रूप का नाम है कृष्ण भक्ति। भगवान श्री कृष्ण के भक्त है मौलाना हजरत साहब।

देश की आजादी में इंकलाब जिंदाबाद का नारा क्रांतिकारियों के मुंह से आजादी की पहचान बना। आपको बता दें कि देश की आजादी में हसरत मोहानी खुद भी आजादी के सिपाही थे। हसरत मोहानी जिन्होंने मात्र 20 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ अखबार उर्दू-ए-मोअल्ला में एक लेख लिखी।

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जिसके बाद उनके इस लेख के कारण उन्हें सन् 1903 में ब्रिटिशों ने एक साल के लिए जेल में डाल दिया। जेल में जाने के पीछे इस सिर्फ यह ही कसूर था कि आजादी को लेकर उन्होंने एक क्रांतिकारी लेख लिखा था। इस घटना के समय वह अलीगढ़ में रहते थे।

आपको बता दें कि हसरत मोहानी ने अपनी जिंदगी श्री कृष्ण प्रेम से विभोर थे। उनका लगभग ज्यादातर बचपन कृष्ण नगरी मथुरा में गुजरी। इसके बाद ही वह बचपन से ही मंदिरों में जाकर कृष्ण लीला के प्रवचन सुनते थे। बचपन से ही हसरत मोहानी कृष्ण जी के भक्त थे और उनकी इस भक्ति से वह पूरी जिंदगी ही उन्हीं के होकर रह गये।

मौलाना हसरत का मजहब क्या है?

आपको बता दें कि मौलाना हसरत का नाम सय्यद फ़ज़ल-उल-हसन था। उनका तख़ल्लुस 'हसरत' था। वो क़स्बा मोहान जिला उन्नाव यूपी के रहनेवाले थे। मौलाना हसरत का बचपन से ही भगवान के लिए अटूट प्रेम होने के कारण उनकी कविताओं और गजलों में भी भक्ति और प्रेम की छाप दिखाई देती है।

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मौलाना हसरत कृष्ण को "हज़रत कृष्ण अलैहिररहमा" लिखा करते थे। हसरत की कुछ किताबों में इस बात का ज़िक्र मिलता है कि वे कृष्ण को 'रसूल' या 'पैग़ंबर' समझते थे। मौलाना हसरत के शब्दों में भगवान कृष्ण प्रेम और सौन्दर्य के देवता थे, और यही बात उन्हें कृष्ण भक्ति के रंग में रंगती थी।

एक बार की बात है जब हसरत एक बार लखनऊ से दिल्ली के सफर पर थे। इस दौरान वो कृष्ण भक्ति में एक नज़्म गुनगुना रहे थे। रास्ते में किसी अजनबी शख्स ने उनसे पूछा कि "मौलाना साहिब देखने से तो आप अच्छे-खासे मुसलमान लगते हैं, फिर कृष्ण के गीतों क्यों गा रहे हैं, आपका मजहब क्या है? इस मासूम से सवाल पर हसरत को हंसी आई और उन्होंने कहा....

"दरवेशी-ओ-इंकलाब है मसलक मेरा

सूफ़ी मोमिन हूं इश्तेराकी मुस्लिम"

जो वे गुनगुना रहे थे उसका मतलब है, "मेरा मज़हब फ़क़ीरी और इंक़लाब है, मैं सूफ़ी मोमिन हूं और साम्यवादी मुसलमान।"

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हसरत का वो शेर जो उनके मजहबी खयालों की अक्कासी करता है, वो कुछ इस तरह है...

"मसलक-ए-इश्क़ है परसतिश-ए-हुस्न

हम नहीं जानते अज़ाब-ओ-सवाब"

इसका मतलब है, "प्रेम करना और सौन्दर्य को पूजना ही मज़हब है मेरा, पाप और पुण्य के बारे में मुझे कुछ नहीं पता।

श्री कृष्ण भक्त हसरत के बारे में ये बात काफी मशहूर है कि वे अपने पास हमेशा एक मुरली रखा करते थे, और हर साल जन्माष्टमी आने पर वो मथुरा जाया करते थे।

एक बार जेल में होने की वजह से हसरत मथुरा नहीं जा पाए तो इसका दुख उन्होंने ने अपनी एक कविता में की है। हसरत एक शायर थे। यूं कहा जाए कि एक सूफ़ी शायर थे। भगवान कृष्ण से वो बेपनाह मोहब्बत करते थे। इसी मोहब्बत को उन्होंने कविताओं और उर्दू ग़ज़लों में बड़ी खूबसूरती से दिखाया है। मौलाना हसरत की शायरी और उनकी कृष्ण भक्ति हिन्दुस्तान की उस गंगा-जमुनी तहजीब की निशानी है जिसने दुनिया को सेक्युलरिज़्म का पाठ पढ़ाया है।

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मौलाना हसरत के काव्य संग्रह "कुल्लीयात-ए-हसरत" में ये कृष्ण भक्ति की सभी कविताएं और ग़ज़लें दर्ज हैं।

कृष्ण भक्ति में लिखी गई हसरत की कुछ कविताएं:

मोसे छेर करत नंदलाल

मोसे छेर करत नंदलाल

लिए ठारे अबीर गुलाल

ढीठ भयी जिन की बरजोरी

औरन पर रंग डाल डाल

हमहूं जो दिये लिपटाए के हसरत

सारी ये छलबल निकाल

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बिरह की रैन कटे न पहार

बिरह की रैन कटे न पहार

सूनी नगरिया परी उजार

निर्दयी श्याम परदेस सिधारे

हम दुखियारन छोरछार

काहे न हसरत सब सुख सम्पत

तज बैठन घर मार किवार

मन तोसे प्रीत लगाई कान्हाई

मन तोसे प्रीत लगाई कान्हाई

काहू और की सूरत अब काहे को आई

गोकुल ढूंढ बृंदाबन ढूंढो

बरसाने लग घूम के आई

तन मन धन सब वार के हसरत

मथुरा नगर चली धूनी रमाई

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मथुरा कि नगर है आशिक़ी का

मथुरा कि नगर है आशिक़ी का

दम भर्ती है आरज़ू उसी का

हर ज़र्रा ए सरज़मीने गोकुल

दारा है जमाल ए दिलबरी का

बरसाना ओ नंदगांव में भी

देख आए हैं जलवा हम किसी का

पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदां था

हर नग़मा कृष्ण बांसुरी का

वो नूरे सियाह था कि हसरत

सरचश्मा फ़रोग़-ए-आगही का

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मोपे रंग न डार मुरारी

मोपे रंग न डार मुरारी

बिनती करत हूं तिहारी

पनिया भरन के जाय न देहें

श्याम भरे पिचकारी

थर थर कंपन लाजन हसरत

देखत हैं नर नारी

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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