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राजनारायण थे फक्कड़ नेता, इंदिरा गांधी को कोर्ट में हराया, चुनाव मैदान में भी दी मात

राजनारायण का जन्म 25 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मोतीकोट गंगापुर नामक गांव के भूमिहार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम अनंत प्रताप सिंह था।

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Published on: 31 Dec 2020 10:24 AM IST
राजनारायण थे फक्कड़ नेता, इंदिरा गांधी को कोर्ट में हराया, चुनाव मैदान में भी दी मात
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राजनारायण थे फक्कड़ नेता, इंदिरा गांधी को कोर्ट में हराया, चुनाव मैदान में भी दी मात (PC: Social media)

लखनऊ: समाजवादी नेता लोकबंधु राजनारायण भारतीय सियासत का ऐसा चेहरा रहे हैं जिन्हें आज भी काफी शिद्दत से याद किया जाता है। राजनारायण ने ताकतवर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कोर्ट में भी हराया था और वोट से भी।

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फक्कड़, भुक्खड़ और मस्तमौला समाजवादी नेता से विधायक, सांसद व केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले राजनारायण ने साल के आखिरी दिन यानी 31 दिसंबर 1986 को अंतिम सांस ली थी। बीमारी के कारण राजधानी दिल्ली के लोहिया अस्पताल में जब इस बड़े समाजवादी नेता का निधन हुआ तो उनके बैंक खाते में केवल साढ़े चार हजार रुपए थे।

बीएचयू से की थी पढ़ाई

राजनारायण का जन्म 25 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मोतीकोट गंगापुर नामक गांव के भूमिहार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम अनंत प्रताप सिंह था।

राजनारायण की पढ़ाई वाराणसी के चर्चित काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हुई थी और यहां से उन्होंने एमए और एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उन्होंने 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का सदस्य बनकर अपना सियासी सफर शुरू किया था और उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अंग्रेजी हुकूमत ने घोषित किया था इनाम

महात्मा गांधी ने जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया तो राजनारायण ने भी उसमें सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। इस आंदोलन के दौरान राजनारायण ने वाराणसी में क्रांतिकारी गतिविधियों का बेमिसाल ढंग से संचालन करके गोरी सरकार को परेशान कर दिया।

Raj Narain Raj Narain (PC: Social media)

राजनारायण को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए गोरी सरकार को पांच हजार का इनाम घोषित करना पड़ा। आखिरकार राजनारायण को 28 सितंबर 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया और फिर उन्हें 1945 तक का समय जेल में ही काटना पड़ा।

आजादी के बाद भी आंदोलनों में जुटे रहे

आजादी के बाद भी राजनारायण आंदोलनकारी राह से विमुख नहीं हुए। आचार्य नरेंद्र देव, डॉ राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के साथ सोशलिस्ट पार्टी में रहते हुए उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया।

वे इतने सक्रिय रहा करते थे कि उनका एक पैर रेल में तो दूसरा पर जेल में रहता था। 1954-55 के दौरान वे सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष भी बने।

गरीबों को दे दी अपने हिस्से की जमीन

राजनारायण ऐसे नेता थे जो सर्वसाधारण के लिए हर समय सुलभ थे। वे हर किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहा करते थे। गरीबों के प्रति उनके मन में अलग भाव रहता था। बनारस के जमींदार घराने से ताल्लुक रखने वाले राजनारायण ने अपने हिस्से की सारी जमीन गरीबों को दे दी थी।

उनके खुद के परिवार में उनके इस कदम का काफी विरोध हुआ और भाइयों ने भी इसे गलत कदम बताते हुए नाराजगी जताई मगर राजनारायण टस से मस नहीं हुए। यहां तक कि उन्होंने अपने बेटों के लिए भी कोई संपत्ति नहीं छोड़ी।

इंदिरा के खिलाफ संसद से सड़क तक संघर्ष

राजनारायण काफी जीवट वाले नेता थे और उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ हर जगह लड़ाई लड़ी। संसद से लेकर सड़क तक इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा खोलने में वे सबसे आगे रहे।

उन्होंने चुनाव के मैदान से लेकर अदालत तक में इंदिरा गांधी को नहीं छोड़ा। 1971 के लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार खड़ा करना चाहता था मगर कोई इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने को तैयार नहीं था।

इंदिरा के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए न तो चंद्रभानु गुप्ता तैयार हुए और न चंद्रशेखर। ऐसे में राजनारायण सिंह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बनकर इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे।

इंदिरा गांधी के चुनाव को दी कोर्ट में चुनौती

राजनारायण इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली से 1971 का लोकसभा चुनाव हार गए। चुनाव के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी की हर गलत हरकतों पर नजर बनाए रखी थी और चुनाव खत्म होते ही ही उन्होंने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अदालत में चुनौती दे दी। इस मामले में इंदिरा गांधी को खुद अदालत में हाजिर होना पड़ा और सफाई देनी पड़ी। उनसे 6 घंटे तक पूछताछ भी हुई।

इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित

आखिरकार जब इस मामले में फैसला आया तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के रायबरेली चुनाव को अवैध घोषित कर दिया और उन पर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक भी लगा दी।

जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था और इसके 14वें दिन इंदिरा गांधी ने देश भर में आपातकाल लगा दिया था। इस तरह राजनारायण को देश में इमरजेंसी का बड़ा कारण माना जाता है।

आपातकाल में हुई गिरफ्तारी

आपातकाल की घोषणा के कुछ ही घंटों के भीतर सबसे पहले राजनारायण को ही गिरफ्तार किया गया। बाद में सरकार ने जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, सत्येंद्र नारायण सिन्हा और अटल बिहारी वाजपेई जैसे बड़े नेताओं को भी जेल के भीतर डाल दिया था।

रायबरेली के चुनाव में इंदिरा को हराया

इमरजेंसी के दौरान इंदिरा सरकार की जोर जबर्दस्ती के कारण लोगों में भारी नाराजगी थी और उसके बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। 1977 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजनारायण जनता पार्टी के टिकट पर रायबरेली से फिर चुनाव मैदान में उतरे। इस बार उन्होंने इंदिरा गांधी को चुनाव में हराकर सनसनी फैला दी।

राजनारायण का सहयोगियों से विवाद

1977 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी मगर यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। जनता पार्टी के सहयोगी रहे नेता यह आरोप लगाते थे कि राजनारायण विध्वंसक प्रवृत्ति के थे और उन्हीं के कारण जनता पार्टी असमय टूट गई और प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

वैसे यह बात काफी हद तक सही है क्योंकि राजनारायण का लगभग अपने सभी सहयोगियों से विवाद हुआ और वह उनके खिलाफ ताल ठोककर खड़े हो गए।

कमलापति त्रिपाठी से हारे चुनाव

जनता पार्टी के विघटन के बाद 1980 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजनारायण ने रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि मैं उन्हें कोर्ट से भी हरा चुका और वोट से भी। अब यह तो कोई बहादुरी नहीं कि मैं बार-बार हराने के लिए उनका पीछा करता रहूं।

1980 के चुनाव में राजनारायण ने वाराणसी संसदीय सीट से किस्मत आजमाई। उन्होंने उस समय के कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी को इस चुनाव में चुनौती दी थी। दोनों प्रत्याशियों के बीच जोरदार मुकाबला हुआ मगर आखिरकार पंडित जी ने राजनारायण को मात दे दी।

rajnarayan Raj Narain (PC: Social media)

फकीर की भांति रही जिंदगी

बाद के दिनों में उन्हीं के सियासी साथी उनसे परहेज करने लगे थे। यहां तक कि उनके साथियों ने उन्हें भारतीय राजनीति का विदूषक तक करार दिया। वैसे जानकारों का कहना है कि राजनारायण ने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए कभी कोई समझौता नहीं किया। वे एक फकीर की भांति दुनिया से विदा हुए। 31 दिसंबर 1986 को उनका निधन हुआ और उस समय उनके बैंक खाते में नाम मात्र का पैसा था।

80 बार की जेल यात्रा

राजनारायण को भारतीय सियासत का फक्कड़ नेता माना जाता है। अपनी 69 साल की जिंदगी में उन्होंने 80 बार जेल यात्रा की और जेल में कुल 17 साल बिताए।‌ आजादी से पहले वे 3 साल तक जेल में रहे और आजादी के बाद उन्होंने 14 साल का वक्त जेल में काटा।

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उनके बारे में कहा जाता था कि लौह महिला इंदिरा गांधी को अगर किसी ने डराया था तो वह राजनारायण ही थे। देश में समाजवाद को मजबूती देने वाले नेताओं में राजनारायण का नाम आज भी काफी सम्मान के साथ लिया जाता है।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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