×

अस्सी और वरुणा को 'जिंदा' करने की कोशिश

seema
Published on: 3 Jan 2020 7:00 AM
अस्सी और वरुणा को जिंदा करने की कोशिश
X

आशुतोष सिंह

वाराणसी। गंगा की सफाई को लेकर 'नमामि गंगे योजना' के तहत केंद्र की भाजपा सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी है। लेकिन पांच साल गुजर जाने के बाद भी गंगा में कोई ठोस बदलाव नहीं दिख रहा है। 14 दिसम्बर को कानपुर में राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक में भाग लेने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गंगा की सफाई से बहुत खुश नहीं दिखे। इस दौरान उन्होंने इशारों-इशारों में कहा कि जब तक गंगा की सहायक नदियों को साफ नहीं किया जाएगा, तब तक नमामि गंगे अभियान कामयाब नहीं हो पाएगा। इसी अभियान के तहत अब वाराणसी में गंगा की सहायक नदियों, वरुणा और अस्सी को बचाने की कयावद फिर से शुरू हो गई है। इन दोनों नदियों को प्रदूषण की मार से बचाने और अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए अभियान छेड़ा गया है। लेकिन सवाल ये है कि नगर निगम अपने इस अभियान को लेकर कितना संजीदा है? क्या हर बार की तरह इस बार भी सफाई अभियान सिर्फ रस्म अदायगी साबित होगा या फिर ये अपने असल मुकाम तक पहुंचेगा?

वरुणा को बचाने के लिए 'स्वर्ण कलश अभियान'

धर्म नगरी वाराणसी का नामकरण दो नदियों को लेकर हुआ है। ये नदियां हैं - वरुणा और अस्सी। प्रदूषण के कारण दोनों ही नदियों का वजूद खतरे में है। अस्सी लगभग सूख चुकी है और वरुणा भी उसी राह पर है। ऐसे में वरुणा को बचाने के लिए वाराणसी नगर निगम की ओर से अब प्रयास शुरू किए गए हैं। नदी में प्रदूषण को रोकने के लिए नगर निगम ने 'स्वर्ण कलश' का सहारा लिया है। सफाई का विशेष अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत वरुणा नदी पर बने सभी चारों पुलों के ऊपर एक स्वर्ण कलश लगाया जा रहा है। मकसद है कि पुल से नीचे नदी में माला फूल को फेंकने से रोका जाए। नदी में फेंकने के बजाय लोग माला फूल इत्यादि 'स्वर्ण कलश' में डालेंगे। नगर आयुक्त गौरांग राठी कहते हैं, 'हमारा मकसद है वरुणा नदी को प्रदूषण मुक्त करना। लोगों की धार्मिक भावनाएं भी आहत न हों और वरुणा प्रदूषण से मुक्त रहे, इसी उद्देश्य से स्वर्ण कलश लगाया गया है। नदी किनारे रहने वालों को सफाई के लिए जागरूक किया जा रहा है। गंदगी करने वालों को चिन्हित करके नोटिस भेजा जा रहा है। अगर प्रदूषण नहीं रुका तो जुर्माना भी वसूला जाएगा। अगर वरुणा को बचाना है तो सख्ती करनी ही होगी।

यह भी पढ़ें : Madhya Pradesh : ज्योतिरादित्य सिंधिया जाएंगे राज्यसभा

कब पूरा होगा वरुणा कॉरिडोर?

वरुणा को बचाने के लिए करीब तीन साल पहले तत्कालीन अखिलेश सरकार में बड़ी पहल हुई। गोमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर वाराणसी में वरुणा कॉरिडोर बनाने की नींव रखी गई। 201 करोड़ रुपये की इस योजना के तहत वरुणा नदी को संवारा जाना था, नदी के दोनों किनारों को डेवलप किया जाना था। नदी को साफ करने के साथ पक्के घाट बनाये जाने थे। नदी के दोनों तरफ तटबंध बनाने के साथ पाथवे, रेलिंग, छह स्थानों पर घाट, पार्क, लाइट्स तथा पर्यटकों के बैठने के लिए कुर्सी आदि व्यवस्था की जानी थीं। 50-50 मीटर पर ग्रीन बेल्ट बनाने के अलावा पाथ वे भी प्रस्तावित है। लेकिन अफसरों की हीलाहवाली के कारण अभी तक काम पूरा नहीं हो पाया है। काम में देरी के कारण योजना की लागत 18 से 20 फीसदी बढ़ चुकी है। शिलान्यास के बाद से लेकर अभी तक आधा दर्जन बार परियोजना पूरी करने की मियाद बढ़ानी पड़ी है। पहली बार दिसम्बर में 2016 में कॉरिडोर पूरा करने का लक्ष्य रखा गया। इसके फरवरी 2017 तक निर्माण पूरा करने का अधिकारियों ने समय मांगा। तत्कालीन मंडलायुक्त ने जून 2017 तक निर्माण पूरा करने का लक्ष्य दिया था। इसके बाद दिसम्बर 2017 में शासन ने कॉरिडोर के उद्धघाटन का लक्ष्य रखा। फिर दिसम्बर 2018, फरवरी 2019 में और अब फरवरी 2020 तक पीएम के हाथों लोकार्पण कराने का निर्देश दिया गया है।

अतिक्रमण के जंजाल में सिसकती वरुणा

वरुणा, रामेश्वर के बाद जैसे-जैसे शहर की ओर बढती हैं उसमें कूड़ा कचरा डालने का सिलसिला बढ़ता ही जाता है। कुछ दिन पूर्व तक कचहरी-नदेसर पुल, नक्खी घाट, सरैया पुल आदि से खुले आम कूड़ा और गंदगी नदी में प्रवाहित किया जा रहा था। कैन्टोमेंट क्षेत्र के होटलों और गाडिय़ों के कारखानों, सर्विस सेंटर आदि से सीधे प्रदूषित पानी आज भी वरुणा में जा रहा है। कचहरी के पास कुरैशी बस्ती में स्लॉटर हाउस से निकलने वाला खून, मांस, चमड़ा युक्त कचरा सीधे खुले गटर के होता हुआ स्टेट बैंक के पीछे से वरुणा में डाला जा रहा है। पूजा पाठ और अन्य धार्मिक कर्मकांडों के अवशेष भी प्लास्टिक की पन्नियों में वरुणा में लगातार डाले जा रहे हैं। वरुणा को अतिक्रमण के जंजाल से निकालने के लिए काफी प्रयास हुए, लेकिन कभी अफसरों के नकारेपन के चलते तो कभी अदालत की कार्यवाही में देरी के चलते ये पूरा नहीं हो पा रहा है। दरअसल एनजीटी के आदेश के तहत वरुणा के 200 मीटर के दायरे में आने वाले मकानों से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया गया है। लेकिन जब भी वीडीए की टीम इसे हटाने की कोशिश करती है, कोई न कोई अड़ंगेबाजी लग जाती है।

यह भी पढ़ें पीएम मोदी ने कहा- कृषि में सहायक टेक्नॉलजी के क्षेत्र में क्रांति की जरूरत:

अस्सी के वजूद सहेजने को कोशिश

वरुणा की तरह अस्सी नदी का वजूद भी अब समाप्त होने पर है। शहर के बीचोंबीच होकर गुजरने वाली ये नदी लगभग मृतप्राय है। नदी के अधिकांश क्षेत्र पर भूमाफिया ने कब्जा जमा रखा है। आलीशान इमारतें भी खड़ी हो गई है। राजस्व विभाग नदी को मुक्त कराने के लिए अभी तक कागजी कार्रवाई में ही उलझा हुआ है। स्वयंसेवी संस्थाओं ने कई बार आंदोलन किया, लेकिन अफसरों ने इसे परवान नहीं चढऩे दिया। आलम ये है कि कंचनपुर ताल, काशीपुर, चितईपुर, सुन्दरपुर, इंदिरानगर, आदित्य नगर, कौशलेश नगर, साकेत नगर, रवींद्रपुरी सहित कई जगहों पर नदी दो फीट की पाइप से गुजर रही है। नदी के प्रवाह क्षेत्र में कई मंजिले भवन खड़े हो गए हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में इंग्लैण्ड के विद्वान जेम्स प्रिन्सेप ने तत्कालीन बनारस के कई मानचित्र बनाये थे जिसमें उन्होंने वरुणा और अस्सी को नदी ही बताया था। लेकिन अस्सी को कागजों में कब नाला बना दिया गया यह बताने वाला आज कोई नहीं है।

अस्सी घाट से दूर होती गंगा

बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के गंगा रिसर्च सेंटर के अनुसार अस्सी नदी में कभी मौलिक जल बहता था और यह गंगा के गुण, जल की मात्रा और आवेग में मददगार था। अस्सी नदी के कारण ही पहले अस्सी घाट पर पानी बहता था। अब यह स्थिति बदल गयी है। इस नदी को दो किलोमीटर पहले गंगा में मिलाने के कारण अब पानी अस्सी घाट से दूर चला गया है। अब विशालकाय सीढियां अस्सी घाट पर आपका स्वागत करतीं हैं, पर गंगा का पानी दूर चला गया है। देश की अन्य नदियों की तरह अस्सी नदी में भी आबादी और उद्योगों से निकला गंदा जल ही मुख्य समस्या है। इसमें जगह-जगह कचरे के ढेर भी मिलते हैं। इसके गंगा में मिलने के स्थान पर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित भी हो गया है लेकिन ये चलता नहीं है। सरकारें अगर गंगा के स्थान पर अस्सी नदी की ही सफाई कर देतीं तो अच्छा होता, नदियों को साफ करने का अनुभव होता और गंगा भी साफ होती। लेकिन बिना किसी अनुभव और ठोस योजना के ही देश की सबसे बड़ी नदी की सफाई में हजारों करोड़ रुपये बहा दिए गए और एक नदी की सफाई के नाम पर दूसरी नदी को विस्थापित कर नाला बना दिया गया।

seema

seema

सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!