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जातिवादी राजनीति के जन्मदाता हैं वीपी सिंह, ऐसा रहा राजनीतिक सफर

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के साथ ही उन्हे देश के वित मंत्री की जिम्मेदारी भी कांग्रेस ने दी लेकिन राजीव गांधी की सरकार में वह उन्ही खिलाफ खड़े हो गए।

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Published on: 27 Nov 2020 12:07 PM IST
जातिवादी राजनीति के जन्मदाता हैं वीपी सिंह, ऐसा रहा राजनीतिक सफर
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जातिवादी राजनीति के जन्मदाता हैं वीपी सिंह, ऐसा रहा राजनीतिक सफर (Photo by social media)

नई दिल्ली: देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का आज के ही दिन निधन हुआ था। उन्हे मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने को लेकर याद किया जाता है लेकिन दुर्भाग्य है कि मंडल के कारण जहां वह सवर्णो के निशाने पर रहे वहीं पिछड़े और दलितों के दिलों में भी जगह नहीं बना पाए और इसका लाभ दूसरे दलों ने खूब उठाया। आज ही के दिन 27 नवम्बर 2008 को विश्वनाथ प्रताप सिंह का निधन हुआ था।

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भारत के बोफोर्स कम्पनी की 410 तोपों का सौदा हुआ था

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के साथ ही उन्हे देश के वित मंत्री की जिम्मेदारी भी कांग्रेस ने दी लेकिन राजीव गांधी की सरकार में वह उन्ही खिलाफ खड़े हो गए। उन्होंने दावा किया कि भारत के बोफोर्स कम्पनी की 410 तोपों का सौदा हुआ था, उसमें 60 करोड़ की राशि कमीशन के तौर पर दी गई थी। इस पूरे प्रकरण में मिस्टर क्लीन की छवि रखने वाले राजीव गांधी की छवि पर बेहद खराब असर पड़ा।

लोगों को लगा कि यह पता चला कि 60 करोड़ की दलाली में राजीव गांधी का हाथ था। बोफोर्स कांड के सुर्खियों में रहते हुए 1989 के चुनाव राजीव गांधी को करारी हार मिली और विश्वनाथ प्रताप सिंह भाजपा के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बन गए। हांलाकि जाँच-पड़ताल से यह साबित हो गया कि राजीव गांधी के विरुद्ध जो आरोप लगाया गया था वो बिल्कुल गलत है।

Vishwanath Pratap Singh Vishwanath Pratap Singh (Photo by social media)

प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को मानकर देश में वंचित समुदायों की सत्ता में हिस्सेदारी पर मोहर लगा दी। जातिवादी पार्टियों और जातिवादी नेताओं की ताकत बढ़ गयी और जाति की राजनीति नशे की भांति देश को धीरे धीरे निगलने लगी।

विश्वनाथ प्रताप सिंह को क्षत्रियों ने ही नकार दिया और हाशिये पर चले गए

विश्वनाथ प्रताप सिंह को क्षत्रियों ने ही नकार दिया और हाशिये पर चले गए। जातिवादी पार्टियों और जातिवादी नेताओं की ताकत बढ़ गयी और जाति की राजनीति नशे की भांति देश को धीरे धीरे निगलने लगी। विश्वनाथ प्रताप सिंह को क्षत्रियों ने ही नकार दिया और हाशिये पर चले गए। इनको लगता था कि अभी भी क्षत्रिय सोने की चम्मच में भोजन कर रहे हैं। सरकारी पदों पर ब्राह्मणों और कायस्थों का वर्चस्व को गिराकर कांग्रेस और ब्राह्मण कायस्थ बनियों से बदला लेने की नियत से मंडल कमीशन को बिना बहस और बिना जमीनी आंकड़ों को देखे लागू कर दिया।

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मंडल कमीशन के खिलाफ न जाने कितने छात्रों ने आत्मदाह कर लिया। इसके खिलाफ पूरे देश में आंदोलन चला। लेकिन एक आग लगा गए जो धीरे-धीरे हिन्दू धर्म को निगलती जा रही है। अगर कहीं भी हिंदुओं के विघटन का इतिहास लिखा जाएगा तो विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम उस सूची में सबसे लिखा होगा।

रिपोर्ट- श्रीधर अग्निहोत्री

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